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Malti Computer Center Tikamgarh

created May 6th, 02:20 by Ram999


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कंबन, तमिल भाषा के ग्रंथ कंबरामायण के रचियता थे। इनका जन्म तमिलनाडु के चोल राज्य में तिरुवलुंपूर नामक गांव में हुआ था। कंबन वैष्णव थे। उनके समय तक बारह प्रमुख आलवार हो चुके थे और भक्ति तथा प्रपति का शास्त्रीय विवेचन करने वाले यामुन, रामानुज आदि की परंपरा भी आरम्भ हो चुकी थी। कंबरामायण का प्रचार-प्रसार केवल तमिलनाडु में ही नहीं, उसके बाहर भी हुआ। यह तमिल साहित्यकी कृति एवं एक बृहत ग्रंथ है। जनश्रुति केअनुसार कंबन का जन्म ईसा की नवीं शताब्दी में हुआ था। कुछ इनका समय बारहवीं शताब्दी और कुछ नवीं शताब्दी मानते हैं। कंबन के वास्तविक नाम का पता नहीं है। कंबन उनका उपनाम था।इनके माता-पिता का उनकी बाल्यावस्था में ही देहांत हो गया। अनाथ बालक को पालने वाला कोई नहीं था।अर्काट जिले के सदैयप्पवल्लल नामक धनी किसान ने अपने बच्चों की देख-रेख केकाम के लिए अपने घर में रख लिया। जब उन्होंने देखा कि उन के बच्चों के साथ कंबन भी अध्ययन में रुचि लेने लगा है तो सदैयप्पवल्लल ने कंबन की शिक्षा का भी पूरा प्रबंध कर दिया। इस प्रकार कंबन को शिक्षा प्राप्त हुई और उनके अंदर से काव्य की प्रतिभा प्रस्फुटित हो गई। कंबरामायण तमिल साहित्य की कृति एवं एक बृहत ग्रंथ है और इसके रचयिता कंबन कवि चक्रवर्ती की उपाधि से विभूषित हुए। इस ग्रंथ में छ: कांडों का विस्तार इसमें मिलता है। इससे संबंधित एक उत्तर काण्ड भी प्राप्त है, जिसके रचयिता कंबन केसमसामयिक एक अन्य महाकवि माने जाते हैं।पौराणिकों के कारण कंबरामायण में अनेक प्रक्षेप भी गए हैं, किंतु इन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है,क्योंकि कंबन की सशक्त भाषा और विलक्षण प्रतिपादन शैली का अनुकरण शक्य नहीं है। कंबरामायण का कथानक वाल्मीकि रामायण से लिया गया है, परंतु कंबन ने मूल रामायण का अनुवाद अथवा छायानुवाद करके, अपनी दृष्टि और मान्यता के अनुसार घटनाओं में कई परिवर्तन किए हैं। विविध परिस्थितियों के प्रस्तुतीकरण, घटनाओं के
चित्रण, पात्रों के संवाद, प्राकृतिक दृश्यों के उपस्थापन तथा पात्रों की मनोभावनाओं की अभिव्यक्ति में पदे-पदेमौलिकता मिलती है। तमिल भाषा की अभिव्यक्ति और संप्रेषणीयता को सशक्त बनाने के लिए भी कवि ने अनेक नए प्रयोग किए हैं। छंदोविधान, अलंकार प्रयोग तथा शब्द नियोजन केमाध्यम से कंबन ने अनुपम सौंदर्य की सृष्टि की है। सीता राम का विवाह, शूर्पणखा प्रसंग, बालिवध, हनुमान द्वारा सीता संदर्शन, मेघनाद वध, राम-रावण संसंग्राम आदिप्रसंग अपने-अपने काव्यात्मक सौंदर्य के कारण विशेष आकर्षक हैं। प्रत्येक प्रसंग अपने में पूर्ण हैऔर नाटकीयता से ओतप्रोत है। घटनाओं के विकास के सुनिश्चितक्रम हैं। प्रत्येक घटना आरंभ, विकास और परिसमाप्ति में एक विशिष्टशिल्प विधान लेकर सामने आती है।वाल्मीकि ने राम के रूप में पुरुष पुरातन का नहीं, अपितु महामानव का चित्र उपस्थित किया था, जबकि कंबन ने अपने युगादर्श केअनुरूप राम को परमात्मा केअवतार के साथ आदर्श महामानव के रूप में भी प्रतिष्ठित किया। वैष्णव भक्ति तत्कालीन मान्यताओं और जनता की भक्ति पूत भावनाओं से संयुक्त रहकर इस महाकवि ने राम के चरित्र को महत्ता पूरित एवं परमपूर्णत्व समन्वित आयामों में प्रस्तुत किया जो सहज ग्राह्य होते हुए भी अकल्पनीय रूप से मनोहर किं वामनोरम था।

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