eng
competition

Text Practice Mode

पंचायती राज

created Sep 19th 2017, 04:26 by Sandeepkr150


1


Rating

429 words
134 completed
00:00
भारत मूलतः गांवों का देश है। आज भी हमारी कुल जनसंख्या का 80 प्रतिशत गांवों में निवास करता है। यह आवश्यक है कि ग्रामीण जनता की भागीदारी ग्राम विकास में हो और यह तभी सम्भव है जब उन्हें विकास हेतु संसाधन उपलब्ध कराए जाएं और वे इस सम्बन्ध में योजनीओं का प्रारूप बनाने एवं उन्हें क्रियान्वित करने हेतु अधिकार सम्पत्र एवं सक्षम हों पंचायती राज व्यवस्था इसी उद्देश्य ताकी पूर्ति करती है।
     “पंचायत” का मूल अर्थ है पांच लोगों की सभी प्राचीन काल में इन पाँच लोगों का चयन गांव की जनता ही करती थी और वे सभी ग्रामीण समस्याओं का निदान मिल-जुलकर कर लेते थे। भारत की ग्रामीण व्यवस्था में “पंच परमेश्र्वर”की अवधारणा बद्धमूल है। ग्रामीणों को पंच में परमेश्वर दिखाई पड़ता है अतः वे उसके निर्णय को सिर झुकाकर स्वीकार कर लेते थे। पंचायत का कार्य केवल विवादों का निर्णय करना ही था अपितु ग्राम विकास की योजनाओं को कार्यान्वित करना तथा उसके लिए संशाधन जुटाना भी था।
     स्वतन्त्रता के पशत पंचायी राजव्यवस्था की अवधारणा गांधी जी ने प्रदाम की भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 में राज्यों को पंचायतों के गठन के निर्देश दिया गाया है। दिसम्बर 1992 में पारित संविधान का 73वां संशोधन पंचायत सम्बन्धी उपबन्धों पर प्रकाश डालता हैं इसमें यह व्यवस्था है कि प्रत्येक राज्य में गांव तथा जिला स्तर पर पंचायतें स्थापित की जाएगी। पंचायतों का चुनाव कराना अनिवार्य है। सभी पंचायतों में महिलाओं, अनुसूचित जातियों को नियमानुसार आरक्षण प्राप्त है, उन्हों कराधान करने की शक्ति प्राप्त है। पंचायतों का कार्यकाल पांच वर्ष का है। उनका अपना बजट होगा तथा अपने अधिकार क्षेत्र की सूची होगा। पंचायतों का कार्यकाल पांच वर्ष का है। उनका अपना बजट होगा तथा अपने अधिकार क्षेत्र की सूची होगा। पंचायतों को आर्थिक सहायता वित्त आयोग प्रदान करेगा। लोकतन्त्र में सत्ता का विकेन्द्रीकरण होना चाहिए इसी सिद्धान्त के आधार  पंचायती राज की परिकल्पना की गई है। 12 सितम्बर, 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में पंजायती राज का उद्घटन किया।  
     पंचायतों को अपने क्षेत्र का विकास करने, योजना बनाने, संसाधन जुटाने तथा पारस्परिक विवाद सुलझाने का अधिकार प्राप्त है। उनका महत्व किसी भी प्रकार से कम करके नहीं आंका जा सकता। इससे ग्रामीणों में राजनितिक चेतना उप्तत्र हुई है और महिलाओं में जागरूकता आई है। यदि पंचायती राज व्यवस्था को सुचारु रूप से क्रियान्वित किया जा सका तो वह दिन दूर नही जब भारत के गावों का कायाकल्प हो जाएगा। भले ही इन पंचायतों ने राजनीतिक एवं जातिगत विद्वेष बढा दिए हों किन्तु इनकी प्रभावी भूमिका से इन्कार नहीं किया जा सकता। गांधी जी के स्वराज की कल्पना ही इन पंचायतों से ही साकार हो सकेगी।

saving score / loading statistics ...