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created Nov 14th 2017, 18:09 by AnkurSachan


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यह एक स्थापित सत्य है कि बीते कुछ वर्षों में जिस प्रकार की आतंकी घटनाएं कश्मीर, न्यूयॉर्क, लंदन, मैनचेस्टर, पेरिस, नीस, काबुल, लाहौर, ढाका आदि शहरों में हुई हैं वे लगभग सभी मजहबी जुनून और एक किस्म के जहरीले चिंतन से प्रेरित रही हैं। आखिर यह मानसिकता कहां पैदा होती है और इसका प्रचार-प्रसार करने वाले संस्थानों में मदरसों की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है? इस प्रश्न पर विचार किया जाना आवश्यक है। मदरसा शिक्षा पद्धति मूलत: मजहब पर आधारित है। मदरसा आधारित तालीम की मूल अवधारणा में अपनी मजहबी मान्यताओं को सर्वश्रेष्ठ और अन्य मजहब के अनुयायियों को काफिर-कुफ्र घोषित करना निहित है। प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने वाला मूर्तिपूजक हिंदू, ईसाई, यहूदी, पारसी, बौद्ध के साथ मुस्लिम समाज के भी कुछ वर्ग उनके लिए काफिर हैं। इस चिंतन के अनुसार काफिरों के पास केवल दो विकल्प होते हैं- या तो वे इस्लाम में मतांतरित हो जाएं या फिर मौत को स्वीकार करें। विश्व को दारुल-इस्लाम में परिवर्तित करना हर सच्चे अनुयायी का धार्मिक कर्तव्य माना जाता है। यही दर्शन बीती कई सदियों से वैश्विक शांति, मानवता और सामाजिक सौहार्द के मार्ग में सबसे बड़ा अवरोधक बना हुआ है। पिछले दिनों न्यूयॉर्क में मैनहट्टन की सड़क पर निरपराध को कुचलने वाला आतंकी ट्रक ड्राइवर अल्लाह हू अकबर चिल्ला रहा था, जिसका शाब्दिक अर्थ अल्लाह सबसे बड़ा है। इस नारे का उद्घोष करते हुए निरपराध लोगों को मारने के पीछे की मानसिकता को बल देने में मदरसों में मिलने वाली मजहबी शिक्षा का बहुत बड़ा हाथ माना जाता है। उक्त हमला उसी लोन वूल्फ (आतंकी हमले को अकेले अंजाम देने वाला) का ही एक प्रकार था। दुनिया ऐसे हमले मैनहट्टन से पहले 14 जुलाई 2016- नीस, 19 दिसंबर 2016- बर्लिन, 22 मार्च 2017- लंदन, 7 अप्रैल 2017- स्टॉकहोम, 17 अगस्त 2017- बार्सिलोना समेत अन्य शहरों में देख चुकी है।
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार का प्रदेश के मदरसों के संबंध में 30 अक्टूबर को यह निर्णय सामने आया कि सरकारी सहायता प्राप्त इस्लामी शैक्षणिक संस्थानों में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद यानी एनसीईआरटी और यूपी बोर्ड का पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा। इसके तहत गणित और विज्ञान आदि आधुनिक विषयों को मदरसों में अनिवार्य करने की योजना है। इस बारे में उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार का उद्देश्य मदरसों को आधुनिक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करके उनमें पढ़ने वाले छात्रों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाना है। इसके बावजूद कुछ कट्टरपंथी तत्व योगी सरकार की इस योजना का विरोध कर रहे हैैं। आखिर जब 2010 में पारित शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत देश के हर बच्चे को मौलिक शिक्षा पाने का अधिकार है और यह सुनिश्चित करना राज्य सरकारों का दायित्व है तो फिर उत्तर प्रदेश सरकार के निर्णय पर संदेह क्यों? यदि कानूनी पक्ष को छोड़ भी दिया जाए तो आज के आधुनिक और प्रतिस्पर्धा से भरे दौर में केवल वेद-पुराण, कुरान-हदीस या फिर बाइबल की शिक्षा देकर हम कैसी पीढ़ी विकसित करना चाहते हैं?  
आम तौर पर यह एक धारणा है कि कंप्यूटर, गणित, विज्ञान, अंग्रेजी आदि आधुनिक विषयों की शिक्षा से मजहबी कट्टरता और आतंकवाद के दानव का खात्मा किया जा सकता है और बच्चों के भीतर समाज के प्रति संवेदनशीलता और निष्ठा जैसे गुणों का विकास भी किया जा सकता है,लेकिन यदि वास्तव में ऐसा होता तो 2001 के 9/11 आतंकी हमले में कंप्यूटर शिक्षित, अंग्रेजी बोलने वाले और आधुनिक विषयों में स्नातक या फिर परास्नातक रहे युवा क्यों शामिल हुए?

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