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created Nov 22nd 2017, 12:35 by AnkurSachan


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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किसानों से धान खरीद की सीमा 150 क्विंटल से बढ़ाकर 200 क्विंटल करने का फैसला करके स्पष्ट संकेत दे दिया है कि राज्य सरकार धान किसानों के हित को लेकर संवेदनशील है। इस फैसले से उन बड़े किसानों को बेशक सहूलियत मिलेगी जिन्हें 150 क्विंटल से अधिक उपज बाजार में बेचनी पड़ती थी। इसी प्रकार छोटे किसानों से धान खरीदने की सीमा 50 से बढ़ाकर 75 क्विंटल कर दी गई है। इससे पहले सरकार धान खरीद के लिए पैक्सों को मिलने वाले कर्ज की ब्याज दर घटाने का भी फैसला कर चुकी है। जाहिर है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार धान किसानों को हर संभव सहायता देने के लिए प्रयत्नशील हैं यद्यपि क्रय केंद्रों पर किसानों के साथ सद्व्यवहार एवं तय मूल्य पर उनकी उपज क्रय किए जाने की गारंटी मिलना फिलहाल शेष है। इसकी एक अहम वजह धान की उपज में नमी की मात्रा है जिसका पेच अब तक केंद्र और राज्य सरकार के बीच फंसा हुआ है। "केंद्र सरकार ने इस बारे में जो प्रस्ताव राज्य सरकार के पास भेजा है उससे किसानों की कठिनाई बढऩा तय है।" केंद्र सरकार का कहना है कि राज्य सरकार का प्रस्ताव मिलने पर एक केंद्रीय टीम बिहार आकर धान की उपज में नमी के स्तर का आकलन करेगी। इसके बाद ही खरीद में नमी की अनुमन्यता बढ़ाने पर विचार किया जाएगा। यह योजना पूरी तरह अनिश्चित और अव्यवहारिक है। जब तक नमी की दर तय नहीं होगी, क्रय केंद्रों के कर्मचारी इसी बहाने किसानों को टरकाते रहेंगे। किसानों की मजबूरी यह है कि वे अपनी उपज रोकने का जोखिम नहीं उठा सकते क्योंकि उनके हाथ में जब तक धान का पैसा नहीं जाएगा, वे रबी की फसल का इंतजाम नहीं कर पाएंगे। विडंबना यह है कि केंद्र सरकार में कृषि और खाद्य आपूर्ति विभागों के मंत्री बिहार के ही हैं, इसके बावजूद किसानों से संबंधित फैसलों में विलंब हो रहा है। राज्य सरकार से अपेक्षा है कि इस मुद्दे को पुरजोर ढंग से केंद्र सरकार के सामने रखे ताकि धान खरीद संबंधी दुविधा का शीघ्र निवारण हो सके। धान खरीद की प्रक्रिया में बिचौलियों को खदेड़कर ही किसानों को लाभ दिलाया जा सकता है।
सामाजिक दायित्वों से बचने की साफ-साफ चालाकी दिखाई देती है। ऐसा इसलिए भी कि हम संपूर्ण संदर्भ से अनजान बन रहे हैं। मुझे लगता है कि इस घटना के यथार्थवादी विश्लेषण के लिए कुछ ऐसे अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों को जानना बेहद जरूरी है।
पुलिस अधिकारी सरीफ करीम मुख्यत: इलेक्ट्रीकल इंजीनियर हैं। कैट की परीक्षा में उनके टॉप पर्सेंटाइल थे। और वह आइआइएम के किसी भी संस्थान में दाखिला लेकर एमबीए कर किसी भी बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छा-खासा पैकेज हासिल कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा करके आइएएस में जाने का फैसला किया। यहां सवाल उठता है कि क्यों? जैसा कि हर कोई इंटरव्यू में लगभग यही कहता है, ‘क्योंकि वह समाज और देश के लिए कुछ करना चाहता है।’ यह रटा-रटाया वह मशीनीकृत उत्तर है जिसे सुनकर यूपीएससी के परीक्षक हल्का सा मुस्करा देते हैं। इसकी सच्चाई क्या है? दरअसल सच्चाई इसके एकदम परे है। आप ऐसे चयनित उम्मीदवारों से व्यक्तिगत तौर पर बात कीजिए तो सुनकर चौंक जाएंगे।  
 

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