Text Practice Mode
4.5
Rating visible after 3 or more votes
00:00
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में गड़बड़ी की शिकायतों की यह नौबत आती है, भर्ती संस्थाओं की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता की कमी के कारण।
राजस्थान लोक सेवा आयोग की भर्ती परीक्षाओं में पारदर्शिता लाने के लिए राजस्थान राज्य सूचना आयोग द्वारा दिए फैसले की जितनी सराहना की जाए कम है। एक जमाना था जब राजस्थान की तमाम संस्थाएं नम्बर एक पर थीं। फिर चाहे वह राजनेता हों या प्रशासनिक अधिकारी। राज्य लोक सेवा आयोग हो या माध्यमिक शिक्षा बोर्ड। लेकिन ये सब बीते जमाने की बात हो गई है यानी यूं कहना चाहिए कि वक्त ने सब पर अपनी धूल जमाना शुरू कर दिया। समय रहते साफ-सफाई न होने से ये सारी संस्थाएं धीरे-धीरे अपनी चमक खाेने लगीं। लगातार आरोपों से घिरने लगीं।
राजस्थान लोक सेवा आयोग का तो हाल यह हो गया कि उसकी कोई परीक्षा विवदों में फंसने से नहीं बची। ज्यादातर परीक्षाएं तो किसी न किसी मुद्दे को लेकर कोर्ट-कचहरियों तक पहुंच गईं, जिसकी वजह से भर्तियां ही अटक गईं। बेरोजगार लम्बे समय से सरकारी नौकरी की आस लगाए बैठे हैं। अधिकांश तो सरकारी नौकरी की आयु सीमा पार कर चुके हैं। यह हाल अकेले राजस्थान का ही नहीं है। कमोबेश देश के हर राज्य के लोक सेवा आयोग की भी यही स्थिति है। राजस्थान में तो उसके पुराने अध्यक्ष और सदस्यों पर विभिन्न मामलों को लेकर जांच-मुकदमें तक चल रहे हैं। मध्यप्रदेश में व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) की ओर से हुई परीक्षाओं की जांच सीबीआई कर रही है।
परीक्षाओं में गड़बड़ी की शिकायतों की यह नौबत आती है भर्ती संस्थाओं की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता की कमी के कारण। राज्य सूचना आयोग का ताजा फैसला जिससे हर परीक्षार्थी के नम्बर आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध होंगे, इनमें इस पारदर्शिता को लाने वाला होगा। इससे परीक्षार्थी जान सकेगा कि उसके नम्बर कितने हैं? उतने हैं या नहीं, जितनी उसे उम्मीद थी।
यह फैसला भले राजस्थान का हो, राजस्थान के सन्दर्भ में हो लेकिन यह उम्मीद की जानी चाहिए कि देश के अन्य राज्यों के लोक सेवा आयोग भी पहल करके इसे अपने यहां लागू करेंगे जिससे युवा शक्ति में नए भरोसे का संचार हो सके। इसी के साथ अब साक्षात्कार प्रक्रिया भी पूरी तरह पारदर्शी हो जाए तो लोकहित का बड़ा काम हो जाएगा। साक्षात्कार में जिस प्रकार चयन किया गया इसका ब्योरा भी सार्वजनिक किया जाना चाहिए। भेदभाव के सबसे ज्यादा आरोप भी यहीं लगते हैं।
राजस्थान लोक सेवा आयोग की भर्ती परीक्षाओं में पारदर्शिता लाने के लिए राजस्थान राज्य सूचना आयोग द्वारा दिए फैसले की जितनी सराहना की जाए कम है। एक जमाना था जब राजस्थान की तमाम संस्थाएं नम्बर एक पर थीं। फिर चाहे वह राजनेता हों या प्रशासनिक अधिकारी। राज्य लोक सेवा आयोग हो या माध्यमिक शिक्षा बोर्ड। लेकिन ये सब बीते जमाने की बात हो गई है यानी यूं कहना चाहिए कि वक्त ने सब पर अपनी धूल जमाना शुरू कर दिया। समय रहते साफ-सफाई न होने से ये सारी संस्थाएं धीरे-धीरे अपनी चमक खाेने लगीं। लगातार आरोपों से घिरने लगीं।
राजस्थान लोक सेवा आयोग का तो हाल यह हो गया कि उसकी कोई परीक्षा विवदों में फंसने से नहीं बची। ज्यादातर परीक्षाएं तो किसी न किसी मुद्दे को लेकर कोर्ट-कचहरियों तक पहुंच गईं, जिसकी वजह से भर्तियां ही अटक गईं। बेरोजगार लम्बे समय से सरकारी नौकरी की आस लगाए बैठे हैं। अधिकांश तो सरकारी नौकरी की आयु सीमा पार कर चुके हैं। यह हाल अकेले राजस्थान का ही नहीं है। कमोबेश देश के हर राज्य के लोक सेवा आयोग की भी यही स्थिति है। राजस्थान में तो उसके पुराने अध्यक्ष और सदस्यों पर विभिन्न मामलों को लेकर जांच-मुकदमें तक चल रहे हैं। मध्यप्रदेश में व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) की ओर से हुई परीक्षाओं की जांच सीबीआई कर रही है।
परीक्षाओं में गड़बड़ी की शिकायतों की यह नौबत आती है भर्ती संस्थाओं की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता की कमी के कारण। राज्य सूचना आयोग का ताजा फैसला जिससे हर परीक्षार्थी के नम्बर आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध होंगे, इनमें इस पारदर्शिता को लाने वाला होगा। इससे परीक्षार्थी जान सकेगा कि उसके नम्बर कितने हैं? उतने हैं या नहीं, जितनी उसे उम्मीद थी।
यह फैसला भले राजस्थान का हो, राजस्थान के सन्दर्भ में हो लेकिन यह उम्मीद की जानी चाहिए कि देश के अन्य राज्यों के लोक सेवा आयोग भी पहल करके इसे अपने यहां लागू करेंगे जिससे युवा शक्ति में नए भरोसे का संचार हो सके। इसी के साथ अब साक्षात्कार प्रक्रिया भी पूरी तरह पारदर्शी हो जाए तो लोकहित का बड़ा काम हो जाएगा। साक्षात्कार में जिस प्रकार चयन किया गया इसका ब्योरा भी सार्वजनिक किया जाना चाहिए। भेदभाव के सबसे ज्यादा आरोप भी यहीं लगते हैं।
saving score / loading statistics ...