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टाईपिंग वर्ल्‍ड सटई रोड छतरपुर (म.प्र) - अमित कुमार साहू 7697055315

created Feb 20th 2018, 02:26 by chhayasahu


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    विशेषज्ञ का मत है कि भारत में चालीस पार 40 प्रतिशत लोग खर्राटे लेते हैं। प्राय: रात में रेल का सफर करने वाले मुसाफिर जानते हैं कि कि पूरे डिब्‍बे  में एक व्‍यक्ति के खर्राटे  शेष सारे मुसाफिरों को रात भर जगाए रख सकते हैं। आभास होता है कि मानो रेलवे इंजन डिब्‍बो के भीतर ही लगा हो। यह रोग प्राय: मोटे लोगों को होता है। आवश्‍यक्‍ता से अधिक भोजन करने वाले  भी खर्राटे लेते हैं। हमारे देश में खर्राटे लेने वालों की संख्‍या देखकर यह भ्रम होता है कि यहां कोई भूखा नहीं सोता। यह भ्रम सरकार को कितना भाता होगा कि उसने ही भूख की समस्‍या समाप्‍त कर दी है। नाक से सांस नहीं ले पाने के कारण यह कष्‍ट होता है। खर्राटे लेने को प्राय: गंभीरता से नहीं लिया जाता और बात हसी में उड़ा दी जाती है। एक दौर में 'लव स्‍टोरी,' 'बेताब' और 'अर्जुन' जैसी रोचक फिल्‍में बनाने निर्देशित करने वाले फिल्‍मकार राहुल रवैल रात में सोतेसमय आॅक्‍सीजन का मास्‍क लगा कर सोते थे परंतु अपना वजन घटाकर उन्‍होंने इस रोग से मुक्ति पा ली थी। फिल्‍म बनाने के तकनीकी पक्ष पर उनकी पकड़ गहरी रही है। राहुल रवैल 'जोकर' और 'बॉबी' के निर्माण के समय राज कपूर के सहायक निर्देशक रहे। उनके पिता एचएस रवैल 'मेरे मेहबूब,' 'लैला मजनू' और संघर्ष जैसी फिल्‍मों के निर्देशक रहे हैं।
    पश्चिमी देशों की अदालते खर्राटे लेने के कारण तलाक की अर्जी मंजूर कर लेती हैं। फ्रांस में विवाहित लोगों के अलग अलग शयन कक्ष होते हैं, जिनके बीच दरवाजा हमेशा खुला रहता है। विवाहित लोगों के लिए एक शयन कक्ष इंग्‍लैड में होता है, क्‍योंकि चारों ओर समुद्र से घिरा यह छोटा द्वीप है। जिन देशों में इंग्‍लैण्‍ड की हुकुमत रही उन सभी देशों पर उनके रहन-सहन और विचार शैली का प्रभाव रहा है। अंग्रेजी भाषा भी उनके साथ उनके साथ ही आई और उनके जाने के बाद भी कायम है।

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