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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP)

created Feb 20th 2018, 12:19 by VivekSen1328209


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जीएसटी से संबंधित नियम-कानूनों में फेरबदल करने की तैयारी कारोबारियों के लिए राहत की खबर है। चूंकि करीब चार दर्जन संशोधन संभावित हैं, इसलिए यह उम्‍मीद की जाती है कि इसके बाद कारोबारियों की समस्‍याओं का समाधान होगा, लेकिन इससे यह भी पता चलता है कि शायद कुछ नियम-कानूनों का निर्माण जल्‍दबाजी में किया गया या फिर उनके संभावित नतीजों के बारे में सही ढंग से आकलन नहीं किया गया। जो भी हो, कम से कम अब तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि संभावित संशोधनों के बाद फिर नए सिरे से फेरबदल की जरूरत उभर आए और अन्‍य प्रकार की जटिलताएं सामने आने पाएं।
    यह सुनिश्चित करना इसलिए आवश्‍यक है, क्‍योंकि कानूनों में संशोधनों पर संसद की मंजूरी चाहिए होगी और यह आसान काम नहीं है। बेहतर होगा कि जीएसटी परिषद नियम-कानूनों में संभावित संशोधन के मसौदे को अंतिम रूप देने से पहले कारोबार जगत के लोगों से व्‍यापक सलाह-मशविरा करे। यह सही है कि जीएसटी टैक्‍स ढांचे में अमूलचूल बदलाव लाने वाला एक नया कानून था और सारे देश में उस पर अमल करना आसान काम नहीं था, लेकिन अब जब इस कानून को लागू हुए आठ माह होने वाले हैं, तब फिर यह देखा ही जाना चाहिए कि कारोबारी नियम-कानूनों की जटिलता से परेशान हों। कम से कम यह तो बिलकुल नहीं होना चाहिए कि कारोबारियों को जीएसटी नेटवर्क की सुस्‍ती लगातार परेशान करती रहे। आखिर यह कैसा नेटवर्क है जो आठ माह बाद भी पटरी पर आने का नाम नहीं ले रहा है?
    जीएसटी नेटवर्क की खामी ने शासन की तकनी‍की दक्षता के साथ ही प्रशासनिक क्षमता पर भी प्रश्‍नचिन्‍ह लगाने का काम किया है। दुर्भाग्‍य से यही काम जीएसटी के तहत बने ईवे बिल सिस्‍टम ने भी किया। ईवे बिल सिस्‍टम को स्‍थगित करना पड़ा तो इसीलिए क्‍योंकि उसका तकनीकी सिस्‍टम लाखों बिल तैयार करने में सक्षम नहीं था। यदि किसी को तकनीकी खामियों के लिए जवाबदेह नहीं बनाया जाता तो आगे भी संकट खड़े हो सकते हैं और उनकी आड़ में वे कारोबारी जीएसटी को कोसने का काम करने रह सकते हैं, जो संकट खड़े हो सकते हैं, जो टैक्‍स बचाने की जुगत में रहते हैं। ऐसे कारो‍बारियों को तभी हतोत्‍साहित किया जा सकता है जब जीएसटी संबंधी प्रक्रियाएं और तकनीकी सिस्‍टम सही तरह संचालित होने लगें। जीएसटी का पूरा तंत्र ऐसा होना चाहिए जिससे एक ओर जहाँ टैक्‍स चोरी रुके, वहीं दूसरी ओर कारोबार करने में आसानी भी हो। ऐसा होने पर ही वांछित राजस्‍व हासिल हो सकता है। सरकार और साथ ही जीएसटी परिषद को यह समझना होगा कि अब इस तर्क के लिए गुंजाइश नहीं रह गई है कि नई व्‍यवस्‍था में प्रारंभ में कुछ समस्‍या आती ही है। करोबारी जगत के बीच से ऐसे स्‍वर उभरना ठीक नहीं कि जीएसटी ने अनावश्‍यक अड़चनें पैदा कर दी हैं। अब जब जीएसटी कानूनों में व्‍यापक संशोधन की तैयारी हो रही है तो फिर उचित यह होगा कि टैक्‍स दरों में फेरबदल को भी अंतिम रूप दिया जाए। इसके अलावा पेट्रोलियम पदार्थों और शराब के साथ रियल एस्‍टेट को भी जीएसटी के दायरे में लाने पर आम सहमति कायम की जाए।

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