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बंगाल की खाड़ी के तटीय क्षेत्र का विशाल, खूबसूरत और दुनिया के प्राकृतिक चमत्कारों में से एक सुंरदवन खतरे में है, लेकिन इसकी अनदेखी हो रही है। चंद रोज पहले इसे एक और आपदा का सामना करना पड़ा, जब पासुर नदी के रास्ते 775 टन कोयला लेकर जा रहा जहाज नदी में डूब गया। बीते तीन वर्षों में यह ऐसा चौथा बड़ा हादसा है, जब कोयले से लदा कार्गो जंगल के बीच डूबा है। इतनी भारी मात्रा में बार-बार कोयला डूबने से पानी में होने वाली रासायनिक प्रतिक्रिया समूचे वन क्षेत्र के लिए खतरा बन गई है। विशेषज्ञ भी इसके कारण पानी में बढ़ती अम्लता को वनों के लिए विनाशक मान रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में सुंदरवन और आसपास के इलाके में कई तेल टैंकर भी डूबे, जो पारिस्थितिक विविधता के लिए बहुत नुकसानदेह है। लगता है, हमने इन घटनाओं से कोई सबक नहीं लिया और किसी बड़े नतीजे तक यूं ही सोते रहेंगे। चिंता की बात है कि इन खतरों को तो नहीं ही समझा गया, अब विशेषज्ञों की तमाम चेतावनियाँ दरकिनार करते हुए सरकार ने सुंदरवन के दस किलोमीटर दायरे में 150 उद्योगों को अनुमति दे दी है। कल्पना ही की जा सकती है कि इतने उद्योग लगने के बाद इस जलमार्ग की हालत क्या होगी और तब खतरे का स्तर क्या होगा? पिछली घटनाएं गवाह हैं कि इस इलाके में जहाज संचालन में कैसी-कैसी लापरवाहियाँ हो रही हैं, और उद्योगों के कारण इनकी संख्या कई गुना बढ़ जाने पर कितने भयावह नतीजे सामने आएंगे। यह सब करने वाले शायद समझ नहीं रहे कि वे पहले ही तमाम खतरों से जूझ रहे सुंदरवन और इस इलाके की लुप्तप्राय जैव विविधता को किस खतरे में धकेल रहे हैं? सरकार तो घटनाओं से सबक लेकर नीति बनानी थी कि खतरा नियंत्रित कर इलाके को बचाने का इंतजाम होता। उसे इलाके में उद्योगों को मिली अनुमति पर पुनर्विचार कर उन्हें कहीं और ले जाने पर सोचना होगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सुंदरवन और मैंग्रोव के प्राकृतिक जंगल तमाम तरह की प्राकृतिक आपदाओं के मामले में हमारी रक्षा की पहली पंक्ति हैं।
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