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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) | VIVEK SEN

created May 18th 2018, 05:45 by VivekSen1328209


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कर्नाटक विधानसभा चुनाव के मतदान से पहले जबरदस्‍त राजनीतिक प्रचार अभियान के बाद मंगलवार को जब चुनाव के नतीजे घोषित हुए तो उन्‍होंने आगे राजनीतिक जोड़तोड़ की जमीन तैयार कर दी। राज्‍य में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला और त्रिशंकु विधानसभा बनी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। वह बहुमत हासिल करने के करीब पहुंची लेकिन कुछ सीटों का फासला रह गया। मामला और जटिल हो गया क्‍योंकि शेष सीटों में से अधिकांश सीटें दो अन्‍य बड़े दलों जनता दल और कांग्रेस को मिलीं। केवल दो स्‍वतंत्र विधायक चुने गए और वे पहले ही कांग्रेस और जद के गठबंधन की ओर झुकाव दिखा चुके हैं। इन दोनों दलों में से किसी भी दल के विधायकों को तोड़ने का प्रयास खरीद-फरोख्‍त के आरोपों को न्‍योता देना होगा। वर्ष 2008 में जब भाजपा बहुमत से तीन सीट दूर थी तो उस पर विधायकों को खरीदने का आरोप लगा था। भाजपा के लिए दिक्‍कत की बात यह भी रही कि जनादेश गंवाने वाली कांग्रेस ने अत्‍यंत द्रुत गति से जद के नेतृत्‍व वाली सरकार को समर्थन देने की घोषणा कर दी। भाजपा ने जो काम मणिपुर, गोवा और मेघालय में कांग्रेस के साथ किया था, कांग्रेस कर्नाटक में भाजपा के साथ वही दोहराने का प्रयास कर रही है। वह सत्‍ता के करीब पहुंच चुकी भाजपा से यह मौका छीन लेना चाहती है।
    निश्चित तौर पर मौजूदा हालात में कोई राजनीतिक दल ऐसा नहीं है जिसे अच्‍छा कहा जा सके। इसमें कोई शक नहीं है कि भाजपा अगर दोनों प्रमुख दलों में से बड़ी तादाद में विधायक नहीं तोड़ती तो वह स्थिर सरकार का गठन नहीं कर पाएगी। दलबदल निरोधक कानून के मुताबिक विधायकों के दलबदल के लिए कुल संख्‍या के कम से कम दो-तिहाई विधायकों का राजी होना आवश्‍यक है। ऐसे में यह स्‍पष्‍टा नहीं कि आखिर क्‍यों भाजपा सरकार बनाने पर जोर दे रही है या फिर वह बहुमत के लिए जरूरी आंकड़ा कैसे हासिल करेगी? कांग्रेस की हालत और दयनीय है। मतदाताओं द्वारा नकार दिए जाने के बाद वह केवल भाजपा सत्‍ता से दूर रखने के लिए जद को समर्थन दे रही है। जद के पास भी महज 17 फीसदी सीटों के साथ शासन करने का कोई खास नैतिक आधार नहीं है। बहरहाल, राजनीतिक नैतिकता वैसे भी किसी दल की प्राथमिकता में है नहीं।

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