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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || AKASH KHARE

created Aug 8th 2018, 11:01 by akash khare


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पिछले कुछ दिनों से ऐसे बच्‍चों का अवलोकन कर रहा था जिन्‍होंने इसी वर्ष स्‍कूल जाना शुरू किया है। इस अवलोकन ने यह समझने में मदद की कि स्‍कूल की संस्‍थागत मौजूदगी बच्‍चे की रोजमर्रा की जिंदगी में क्‍या बदलाव लाती है? अक्‍सर बच्‍चे जीवन में स्‍कूल के प्रभाव की चर्चा स्‍कूल में प्रवेश के साथ आरंभ करते हैं। मुझे ऐसा लगता है कि इस कहानी के सूत्र को थोड़ा पहले से पकड़ने की जरूरत है। आजकल स्‍कूल में प्रवेश लेने से पहले ही बच्‍चे स्‍कूल से परिचित हो चुके थे।
    स्‍कूल से इनका परिचय अभिभावक सहित अन्‍य वयस्‍क दो तरीकों से कराते हैं। पहला, वे स्‍कूल में प्रवेश के पूर्व ही साक्षरता-अक्षर ज्ञान और गणित का अभ्‍यास कराने लगते हैं। दूसरा, वे स्‍कूलों के प्रतीकों जैसे- बैग, ड्रेस, टिफिन आदि से बच्‍चे के मन में स्‍कूल की छवि उकेरने लगते हैं। जैसे ही बच्‍चे हाव-भाव या शब्‍दों के सहारे संवाद आरंभ करते हैं वैसे ही अभिभावक अक्षर और गिनती के उच्‍चारण और इसे दोहराने के द्वारा पढ़ाई-लिखाई से परिचित कराने लगते हैं। इसके अलावा अभिभावकों का जोर होता है कि उनके बच्‍चे रोजमर्रा के उपयोग की वस्‍तुओं का अंग्रेजी शब्‍द-ज्ञान कर ले। दो या तीन वर्ष के छोटे बच्‍चे के साथ इन अभ्‍यासों को करना बच्‍चे को शैक्षिक सफलता के लिए अभिभावकों को होमवर्क मान सकते हैं।  
    यह 'होमवर्क' इस मान्‍यता से संचालित है कि सीखने की सामग्री साक्षरता है और इसे ज्‍यादा मात्रा में सीखने के लिए, सीखने का समय अधिक होना चाहिए। सीखी सामग्री को दोहराने की आवृत्ति अधिक होनी चाहिए। सीखने की प्रतियोगिता में अागे रहने के लिए अतिरिक्‍त तैयारी करना अभिभावक की जिम्‍मेदारी है। क्‍या हमने कभी सोचा है कि साक्षरता के इन माध्‍यमों के अलावा प्रकृति और परिवेश में बहुत कुछ है जिसके प्रति बच्‍चे को संवेदनशील किया जा सकता है? मसलन फूलों के अलग-अलग प्रकार, चिड़िया की आवाजें, घर और आसपास के कीट पतंगें। ऐसा करके बच्‍चे को कुदरत के निकट ले जाया जा सकता था।  

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