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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) II ☺ II आकाश खरे
created Aug 14th 2018, 10:52 by akash khare
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जलवायु परिवर्तन की धमक तेज होती जा रही है। इस वर्ष जून और जुलाई महीनों में अकेले कैलिफोर्निया के वनों में 140 बार आग लगी। ग्रीस के जंगलों में लगी आग से 80 लोग मारे गए। यूरोप हवाओं से तपता रहा, भारत में बिना मौसम के आए धूल के तूफानों से 500 से अधिक लोगों की जान ले ली। जापान तथा अन्य जगहों पर बेतहाशा बारिश होने से फसल नष्ट हो रही हैं, लोगों के घरों को नुकसान पहुंच रहा है। ये सारी घटनाएं असामान्य हैं। अतीत में इन घटनाओं की स्थिरता के बजाय अब हम ऐसे युग में हैं जहां सबकुछ अनजाना और अप्रत्याशित है। हमें यह अवश्य पता है कि आने वाले दिनों में अजीबोगरीब मौसम की यह तीव्रता और अधिक बढ़ने वाली है। मौसम में इस अतिरंजित बदलाव और जलवायु परिवर्तन के आपसी संबंधों का भी अध्ययन किया जा रहा है। विश्व मौसम संबंध नेटवर्क का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण यूरोप में गरम हवा के थपेड़ों की तादाद दोगुनी हो सकती है। दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन शहर में सूखे की आशंका में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है।
अभी हाल ही में इस शहर में पानी खत्म होते-होते बचा है। प्रश्न यह है कि अब आगे क्या? आने वाले महीने में जब वैश्विक तापवृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगी तब जलवायु परिवर्तन का अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) 1.5 डिग्री सेल्सियस वाली अपनी रिपोर्ट पेश करेगा। रिपोर्ट वही बातें बताएगी जो हम सब पहले से जानते हैं। अगर मौसम से जुड़ी ऐसी विपत्तियां 1 डिग्री सेल्सियस पर महसूस की जा सकती हैं जो कि औद्योगिक युग के पूर्व का स्तर है तो 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि पर तो परिस्थितियां और खराब होती जाएंगी। अब हमें क्या करना होगा? एक बात एकदम स्पष्ट है कि हालात बद से बदतर होते जाएंगे। सच तो यह है कि हम 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीेचे नहीं रह सकते। एक वक्त था जब इस तापवृद्धि को काफी हद तक सुरक्षित माना गया था।
हम बहुत तेजी से उत्सर्जन और तापमान के सभी अवरोध तोडने की ओर बढ़ रहे हें लेकिन मुद्दा यह है कि अब जबकि अमीरों पर जलवायु परिवर्तन का असर पड़ रहा है और ताप वृद्धि और जलवायु परिवर्तन का संबंध स्पष्ट नजर आ रहा है।
अभी हाल ही में इस शहर में पानी खत्म होते-होते बचा है। प्रश्न यह है कि अब आगे क्या? आने वाले महीने में जब वैश्विक तापवृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगी तब जलवायु परिवर्तन का अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) 1.5 डिग्री सेल्सियस वाली अपनी रिपोर्ट पेश करेगा। रिपोर्ट वही बातें बताएगी जो हम सब पहले से जानते हैं। अगर मौसम से जुड़ी ऐसी विपत्तियां 1 डिग्री सेल्सियस पर महसूस की जा सकती हैं जो कि औद्योगिक युग के पूर्व का स्तर है तो 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि पर तो परिस्थितियां और खराब होती जाएंगी। अब हमें क्या करना होगा? एक बात एकदम स्पष्ट है कि हालात बद से बदतर होते जाएंगे। सच तो यह है कि हम 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीेचे नहीं रह सकते। एक वक्त था जब इस तापवृद्धि को काफी हद तक सुरक्षित माना गया था।
हम बहुत तेजी से उत्सर्जन और तापमान के सभी अवरोध तोडने की ओर बढ़ रहे हें लेकिन मुद्दा यह है कि अब जबकि अमीरों पर जलवायु परिवर्तन का असर पड़ रहा है और ताप वृद्धि और जलवायु परिवर्तन का संबंध स्पष्ट नजर आ रहा है।
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