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created Oct 9th 2018, 05:30 by AnujGupta1610


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आर्थिक सिद्धांत हमें बताते हैं कि किसी देश की मुद्रा तब महंगी होती जाती है जब अन्‍य देशों की तुलना में उसकी उत्‍पादकता का स्‍तर बढ़ता है। इसकी वजह उन वस्‍तुओं और सेवाओं की तुलना है जिनका अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर कारोबार किया जा सकता है या नहीं किया जा सकता है। मिसाल के तौर पर कार कार कारोबार संभव है जबकि बाल कटाने का नहीं। अगर मारुति कंपनी में उत्‍पादकता बढ़ती है तो बाल कटाने की लागत इससे कहीं अधिक तेजी से बढ़ेगी क्‍योंकि बाल काटने वाला अपनी उत्‍पादकता उतनी तेजी से नहीं बढ़ा सकता है जितनी तेजी से कार कंपनी बढ़ा सकती है। यही वजह है कि उच्‍च आय वर्ग वाले देशों, मसलन अमेरिका आदि में बाल कटाने की लागत भारत जैसे देशों की तुलना में अधिक है।  
    मुद्रा कीमतों में उतार-चढ़ाव उत्‍पादकता के अलावा अन्‍य वजहों से भी आता है। मिसाल के तौर पर मुद्रास्‍फीति की दर, कच्‍चे माल के रूप में लगने वाला संसाधन और अर्थव्‍यवस्‍था की विदेशी पूंजी जुटाने की क्षमता। अगर मुद्रास्‍फीति की दर अधिक हो या पूंजी आने के बजाय बाहर जा रही हो या फिर व्‍यापार अधिक हो तो देश की मुद्रा का अवमूल्‍यन होगा। ऐसे में देखा जाए तो बेहतर प्रबंधन वाली अर्थव्‍यवस्‍था की मुद्रा मजबूत होगी जबकि खराब प्रबंधन वाली अर्थव्‍यवस्‍था में वह कमजोर होगी। बीते दशक के दौरान सबसे खराब प्रदर्शन उन मुद्राओं का रहा है जिनके देश संकट से दो चार रहे हैं। अर्जेंटीना, तुर्की और रूस उदाहरण हैं। ब्राजील का प्रदर्शन भी अच्‍छा नहीं रहा है।
    उस दृष्टि से देखा जाए तो देश का प्रदर्शन कैसा रहा है एशियाई संदर्भ में देखें तो बहुत अच्‍छा नहीं। बीते एक दशक के दौरान रुपये के मूल्‍य में श्रीलंकाई या पाकिस्‍तानी रुपये के संदर्भ में जहां बहुत अधिक बदलाव नहीं आया है, वहीं सभी प्रमुख एशियाई मुद्राओं की तुलना में गिरा है।

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