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created Oct 10th 2018, 04:28 by Buddha academy
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वाद यदि न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त के विरूद्ध आगे कार्यवाही करने के पर्याप्त आधार नहीं है तो वह कारणों को लिखते हुये अभियुक्त को उन्मोचित करेगा। इसका अर्थ यह है कि केवल अभियोजन के दस्तावेजों को ही दृष्टि में लेना आवश्यक है और अभियुक्त द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों को दृष्टि में लेना आवश्यक नहीं है। हालांकि अभियुक्तगण की ओर से कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किये गये हैं।
केवल शिकायत आवेदन में नहीं बल्कि धारा-161 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत लिखित कथनों में भी अभियोगी और अन्य साक्षीगण ने दहेज प्रताडना के संबंध में आक्षेपों की पुष्टि की है वास्तव में ये आक्षेप सही है या गलत, आरोप विर्चित होते समय इनके गुण-दोषों पर विचार नहीं किया जा सकता। साक्ष्य लेख होने के वाद ही इस संबंध में अंतिम निष्कर्ष प्राप्त किया जा सकता है। इसी प्रकार यदि सामान्य आक्षेप लगाये गये हैं और तिथि, महीना, मौसम, अवसर आदि चिन्हित नहीं हैं तो इस संबंध में वचाव पक्ष को अभियोगी और उसके सभी साक्षीगण से कूट परीक्षण करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है। दहेज प्रताड़ना के संबंध में अभियोगी ने केवल पति पर ही नहीं, बल्कि सभी अभियुक्तगण पर क्रूरता के आक्षेप लगाये है। अत: विचारण न्यायालय के अभिलेख में प्रस्तुत समस्त सामग्री और दस्तावेजों को देखते हुये विचारण न्यायालय ने उचित रूप से आरोप-पत्र विर्चित किया है और आरोप-पत्र विर्चित कर तद्संबंधी आदेश पारित करने में विचारण न्यायालय ने कोई सारबान अनियमितता, अवैधता या भूल नहीं की है। बचाव पक्ष को उसके द्वारा प्रस्तुत न्यायदृष्टांतों में दिये गये मार्गदर्शक सिद्धांतों से कोई लाभ प्राप्त नहीं होता है। क्योंकि इन न्यायदृष्टातों में माननीय उच्च न्यायालय ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की शक्तियों को प्रयोग कर प्रथम सूचना रिपोर्ट निरस्त की है।
इस न्यायालय को ऐसी कोई अंतर्निहित शक्ति प्राप्त नहीं है। आलौच्य आदेश स्थिर रखे जाने योग्य है और यह पुनरीक्षण याचिका खारिज किये जाने योग्य है।
अत: यह पुनरीक्षण याचिका सराहनीय होने से खारिज की जाती है और आलौच्य आदेश एवं उक्त आदेश के माध्यम से अभियुक्तगण पर लगाये गये आरोप स्थिर रखे जाते हैं। यह दांडिक पुनरीक्षण, पुनरीक्षणकर्तागण/अभियुक्तगण की तरफ से दिनांक 2.02.18 को अंतर्गत धारा 397 दण्ड प्रक्रिया संहिता के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी भोपाल श्री मति ज्योति तिवारी के न्यायालय के आपराधिक प्रकरण 55/2014 में पारित आदेश दिनांक 17.12.2015 व्यथित होकर प्रस्तुत की गई है।
केवल शिकायत आवेदन में नहीं बल्कि धारा-161 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत लिखित कथनों में भी अभियोगी और अन्य साक्षीगण ने दहेज प्रताडना के संबंध में आक्षेपों की पुष्टि की है वास्तव में ये आक्षेप सही है या गलत, आरोप विर्चित होते समय इनके गुण-दोषों पर विचार नहीं किया जा सकता। साक्ष्य लेख होने के वाद ही इस संबंध में अंतिम निष्कर्ष प्राप्त किया जा सकता है। इसी प्रकार यदि सामान्य आक्षेप लगाये गये हैं और तिथि, महीना, मौसम, अवसर आदि चिन्हित नहीं हैं तो इस संबंध में वचाव पक्ष को अभियोगी और उसके सभी साक्षीगण से कूट परीक्षण करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है। दहेज प्रताड़ना के संबंध में अभियोगी ने केवल पति पर ही नहीं, बल्कि सभी अभियुक्तगण पर क्रूरता के आक्षेप लगाये है। अत: विचारण न्यायालय के अभिलेख में प्रस्तुत समस्त सामग्री और दस्तावेजों को देखते हुये विचारण न्यायालय ने उचित रूप से आरोप-पत्र विर्चित किया है और आरोप-पत्र विर्चित कर तद्संबंधी आदेश पारित करने में विचारण न्यायालय ने कोई सारबान अनियमितता, अवैधता या भूल नहीं की है। बचाव पक्ष को उसके द्वारा प्रस्तुत न्यायदृष्टांतों में दिये गये मार्गदर्शक सिद्धांतों से कोई लाभ प्राप्त नहीं होता है। क्योंकि इन न्यायदृष्टातों में माननीय उच्च न्यायालय ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की शक्तियों को प्रयोग कर प्रथम सूचना रिपोर्ट निरस्त की है।
इस न्यायालय को ऐसी कोई अंतर्निहित शक्ति प्राप्त नहीं है। आलौच्य आदेश स्थिर रखे जाने योग्य है और यह पुनरीक्षण याचिका खारिज किये जाने योग्य है।
अत: यह पुनरीक्षण याचिका सराहनीय होने से खारिज की जाती है और आलौच्य आदेश एवं उक्त आदेश के माध्यम से अभियुक्तगण पर लगाये गये आरोप स्थिर रखे जाते हैं। यह दांडिक पुनरीक्षण, पुनरीक्षणकर्तागण/अभियुक्तगण की तरफ से दिनांक 2.02.18 को अंतर्गत धारा 397 दण्ड प्रक्रिया संहिता के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी भोपाल श्री मति ज्योति तिवारी के न्यायालय के आपराधिक प्रकरण 55/2014 में पारित आदेश दिनांक 17.12.2015 व्यथित होकर प्रस्तुत की गई है।
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