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created Oct 10th 2018, 10:58 by GuruKhare
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भारत की आधी आबादी महिला सशक्तिकरण और मुक्ति की परिभाषा गढने में कोई कसर नहीं छोडती। परंतु पुरूष प्रधान समाज की सरजमीन पर आज भी औरतों के हक में बने सरकारी कानूनों को न तो सही तरीके से अमल में लाया गया है और न ही उन पर सामाजिक अनुमति की मुहर लगी है। बिहार के सुशासन में महिलाओं को पंचायत चुनावों में पचास फीसदी आरक्षण देकर नीतेश कुमार की सरकार ने अच्छी पहल की है। लेकिन यदि महिलाओं से संबंधित दहेज निषेध अधिनियम, बाल विवाह अधिनियम आदि संबंधित कानूनों को तत्तपरता से लागू नहीं किया गया तो बिहार का हाल पंजाब जैसा हो जाएगा। कहा जाता है कि पंजाब राज्य में हर उस गांव को पुरस्कार दिया जाता है जो प्रत्येक एक हजार की आबदी पर नौ सौ इक्कीस औरतें हैं। बिहार में कई ऐसे परिवार है जो सोचते हैं कि लड़कियों का जन्म एक अभिशाप है और उनके पैदा होने से जीवन की कमाई का एक बडा हिस्सा गायब ही हो जाता है। हाल में ही एक महिला आई पी एस अधिकारी ने टिप्पणी की है कि बिहार में गाय को लाेग संपत्ति मानते हैं क्योंकि वह दूध देगी, बछिया या बछडा जनेगी। लेकिन जब एक इंसान के घर कन्या पैदा होती है तो मातम पिट जाता है। लोग सोचने लगते हैं कि शादी होने के बाद यह तो जाएगी ही पर साथ में पूरे जीवन की कमाई का एक बडा हिस्सा भी ले जाएगी। यही कारण है कि दहेज उत्पीडन, मादा भ्रूण हत्या, बाल विवाह जैसी कूरीतियों ने समाज को जकड़ा हुआ है। वसंत का मौसम शुरू होते ही बिहार में शादियों का सिलसिला शुरू हो जाता है। लडकी चाहे कितनी भी पढी लिखी और समझदार क्यों न हो लेकिन उसके पिता को अपनी अंटी में में मोटी रकम रखकर ही अपनी औकात के मुताबिक दामाद खोजना होगा। इसके लिए बाकायदा रेट तय है। सिपाही या फौजी दूल्हें के लिए तीन लाख, स्कूल टीचर या कर्ल्क के चार लाख, इंजीनियर, डाक्टर के पंद्रह लाख और यदि लडका आई ए एस अथवा आई पी एस जैसी सेवा में हो तो लडकी के बाप का करोडपति होना जरूरी है। बिहार के लिए यह कोई चोरी वाली बात नहीं हैं। और ऐसा भी नहीं है कि सरकार इसे नहीं जानती। पर सवाल ये है कि आखिर सामाजिक सुधारों में कोई हाथ क्यों नही डालना चाहता। सरकार यह मानती है कि दहेज प्रथा हमारे समाज की सबसे बुरी कुरीतियों मे से एक है जिसका निराकरण भी समाज के हित में जरूरी है। इसके लिए भारतीय दंड विधान संहिता के प्रावधानों के अलावा विशेष रूप से दहेज निषेध अधिनियम लागू हैं।
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