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created Oct 11th 2018, 12:15 by subodh khare


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पुरानी कहानी है। राजा के एक मंत्री ने दरबार में अपनी ठसक दिखाई। नाराज राजा ने सजा सुनाई कि या तो वह भरे दरबार में सौ जूते खाए या बाल्‍टी भर हुक्‍के का पानी पिए। हुक्‍के का पानी यानी वह पानी जिसमें चिलम की धुंआ छन कर गुजरती है। मंत्री ने सोचा कि सौ जूतों से बेहतर है हुक्‍के का पानी पीना। दो घूंट पीते ही हाल खराब तो सौ जूते खाना तय किया। लेकिन दस जूते खाते ही वह पस्‍त हो गया ओर हुक्‍के का पानी पीने को तैयार हुआ। इसी के चलते सौ जूते भी खाए ओर हुक्‍के का पानी भी पिया।     
    डॉक्‍टरों की हड़ताल में सरकार का यही हाल हुआ। आखिर चिकित्‍सा मंत्री को वे सारे बातें माननी पड़ी जो वे शुरुआत में ही मान सकते थे। लाखों मरीज परेशान हुए। हजारों ऑपरेशन टले। सैकड़ों डॉक्‍टर हिरासत में लिए गए। करोड़ों रुपए बरबाद हो गए। मजे की बात देखिए हड़ताल की समाप्ति पर दोनों पक्ष हंसते एक दूजे को लड्डू खिला रहे हैं। कसम से ऐसी तस्‍वीर देख कर तो हम शर्म से गड़ गए। एक आजाद भारत का 'राजा' दूसरा कलजुग का भगवान। दोनों चक्‍की के दो पाट। इनसे बैर मोल लेने का मतलब है आप तो गए बारह के भाव। लेकिन हाय। पूरे मामले में सरकार का मुखिया चिड़ीचुप थे जैसे प्रदेश की जनता से कोई लेना-देना ही नहीं। सरकार की बागडोर संभालने वालों का फर्ज नहीं था कि हड़ताल को रोके?

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