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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT & MP High Court
created Dec 6th 2018, 12:28 by VivekSen1328209
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किसी भी देश में सुचारू प्रशासन चलाने के लिए जिम्मेदार नौकरशाही की आवश्यकता होती है। आज के दौर में कर्मठता, ईमानदारी और संवेदनशीलता को लेकर नौकरशाही पर सवाल उठने लगे हैं। यह आम धारणा बन गई है कि देश को चुने हुए प्रतिनिधि नहीं, नौकरशाही चला रही है तथा रोजमर्रा के कामों में होने वाली देरी एवं बढ़ते भ्रष्टाचार के लिए नौकरशाही ही जिम्मेदार है। अंग्रेजों ने इस देश में नौकरशाही के कामकाज का तरीका इस प्रकार का बनाया था कि कोई मनमर्जी नहीं कर सके। प्रत्येक फैसले का पूरा रिकार्ड रखा जाता था। ताकि पारदर्शीता बनी रहे एवं फैसले के अहम बिन्दुओं व मुद्दों को छुपाया नहीं जा सके। नौकरशाही को असहमति का अधिकार था पर अनुशासनहीनता, अनादर व अवहेलना का नहीं।
स्वतंत्रता के बाद प्रारंभिक वर्षों में इस देश के प्रशासनिक अधिकारियों ने इस शासन व्यवस्था को बनाये रखा। बाद के दौर में राजनीतिक दलों एवं नेताओं के कार्य-व्यवहार व आचरण में गिरावट के मुताबिक नौकरशाही के कामकाज का तौर-तरीका भी बदलने लगा। प्रशासनिक सुधार के संबंध में अनेक आयोग बने लेकिन उनकी रिपोर्ट भी ठंडे बस्तों में रह गई या तो इनकी सिफारिशों को तवज्जो ही नहीं दी गई या फिर आधी-अधूरी पालना की गई। चयन प्रक्रिया व प्रशिक्षण में भी खामियां रहीं। सामाजिक सोच, समाज के प्रति प्रतिबद्धता व जिम्मेदारी की भावना, योग्यता का मापदंड नहीं रहे।
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अधिकारियों की जवाबदेही तय करने के लिए नए आधारों की बात करते हुए योग्य अधिकारियों के चयन एवं पदोन्नति के युक्तिसंगत तरीके अपनाने पर जोर दिया है। यह किसी से छिपा नहीं है कि प्रशासन में भ्रष्टाचार की शिकायतें बढ़ती जा रहीं हैं। नियम-कायदे आम आदमी के लिए नहीं रहे। नियम-कयदों, उचित-अनुचित, आवश्यक-अनावश्यक व न्याय-अन्याय को स्वेच्छा से परिभाषित किया जा रहा है। पटवारी से लेकर एसडीओ तक राजस्व कानूनों की जानकारी व कानून-व्यवस्था संबंधी प्रावधानों की जानकारी का अभाव कई परेशानियां खड़ी करने वाला रहता है।
स्वतंत्रता के बाद प्रारंभिक वर्षों में इस देश के प्रशासनिक अधिकारियों ने इस शासन व्यवस्था को बनाये रखा। बाद के दौर में राजनीतिक दलों एवं नेताओं के कार्य-व्यवहार व आचरण में गिरावट के मुताबिक नौकरशाही के कामकाज का तौर-तरीका भी बदलने लगा। प्रशासनिक सुधार के संबंध में अनेक आयोग बने लेकिन उनकी रिपोर्ट भी ठंडे बस्तों में रह गई या तो इनकी सिफारिशों को तवज्जो ही नहीं दी गई या फिर आधी-अधूरी पालना की गई। चयन प्रक्रिया व प्रशिक्षण में भी खामियां रहीं। सामाजिक सोच, समाज के प्रति प्रतिबद्धता व जिम्मेदारी की भावना, योग्यता का मापदंड नहीं रहे।
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अधिकारियों की जवाबदेही तय करने के लिए नए आधारों की बात करते हुए योग्य अधिकारियों के चयन एवं पदोन्नति के युक्तिसंगत तरीके अपनाने पर जोर दिया है। यह किसी से छिपा नहीं है कि प्रशासन में भ्रष्टाचार की शिकायतें बढ़ती जा रहीं हैं। नियम-कायदे आम आदमी के लिए नहीं रहे। नियम-कयदों, उचित-अनुचित, आवश्यक-अनावश्यक व न्याय-अन्याय को स्वेच्छा से परिभाषित किया जा रहा है। पटवारी से लेकर एसडीओ तक राजस्व कानूनों की जानकारी व कानून-व्यवस्था संबंधी प्रावधानों की जानकारी का अभाव कई परेशानियां खड़ी करने वाला रहता है।
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