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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT & MP High Court
created Dec 7th 2018, 11:30 by subodh khare
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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की गवाह संरक्षण योजना को हरी झंडी दिखाकर आपराधिक न्याय प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए जरूरी कदम उठाया है। देखना है कि कितनी राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेश इसे तत्परता से लागू करते हैं और कितने दिनों में संसद से यह कानून बनकर आता है। हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली साक्ष्य पर आधारित है और साक्ष्य इकट्ठा करने और उसे पेश करने का तरीका एकदम भदेस और अवैज्ञानिक है। आज भी हमारे देश में कितने अपराधी इसलिए छुट जाते हैं कि गवाह मुकर गया या कितने गवाह इसलिए मार दिए जते हैं कि उन्होंने मुकरने से इनकार कर दिया। कई बार गवाह न्यायालय की चौखट तक नहीं पहुंच पाते। दबाव में बड़े-बड़े पुलिस अधिकारी तक आ जाते हैं दबाव के लिए पूंजी, नौकरशाही और राजनीतिक सत्ता सभी का इस्तेमाल होता है।
केंद्र सरकार ने नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी और ब्यूरो आॅफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट के साथ मिलकर गवाह सुरक्षा योजना तैयार की है और इसे कानून बनाए जाने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को लागू किए जाने के निर्देश दिए हैं। इसमें गवाहों को चौबीसों घंटे सुरक्षा देना जरूरत पड़ने पर उन्हें किसी सुरक्षित जगह ले जाना, उनकी पहचान गुप्त रखना और उनका व अभियुक्त का आमना-सामना न होने देने तक की व्यवस्था करनी है। बल्कि गवाहों की सुरक्षा के लिए अलग कोष बनाए जाने की भी बात है। अदालत ने इसे न्याय को मानवाधिकार से जोड़ते हुए यह भी कहा है कि जहां किसी बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिए वहीं किसी पीड़ित को न्याय से वंचित नहीं रहना चाहिए। इसके बावजूद तेजी से राजनीतिक होती जा रही आपराधिक न्याय प्रणाली से यह आशा करना कठिन है कि वह इस बारे में कोई निष्पक्ष व्यवस्था कर पाएगी। इसी प्रणाली का ही हिस्सा पुलिस है और उसके सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट कई वर्ष पहले फैसला दे चुका है। इसके बावजूद सुधार लागू नहीं हो पा रहे हैं। पुलिस के बड़े अधिकारी दर्द के साथ कह रहे हैं कि पुलिस तंत्र कानून के राज और न्याय के लिए नहीं राजनेताओं के लिए समर्पित बना दिया गया। यह एक विडंबना है, जिससे न्यायिक प्रणाली को निकालना बहुत जरूरी है लेकिन, महज सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उसका निकल पाना आसान नहीं है।
केंद्र सरकार ने नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी और ब्यूरो आॅफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट के साथ मिलकर गवाह सुरक्षा योजना तैयार की है और इसे कानून बनाए जाने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को लागू किए जाने के निर्देश दिए हैं। इसमें गवाहों को चौबीसों घंटे सुरक्षा देना जरूरत पड़ने पर उन्हें किसी सुरक्षित जगह ले जाना, उनकी पहचान गुप्त रखना और उनका व अभियुक्त का आमना-सामना न होने देने तक की व्यवस्था करनी है। बल्कि गवाहों की सुरक्षा के लिए अलग कोष बनाए जाने की भी बात है। अदालत ने इसे न्याय को मानवाधिकार से जोड़ते हुए यह भी कहा है कि जहां किसी बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिए वहीं किसी पीड़ित को न्याय से वंचित नहीं रहना चाहिए। इसके बावजूद तेजी से राजनीतिक होती जा रही आपराधिक न्याय प्रणाली से यह आशा करना कठिन है कि वह इस बारे में कोई निष्पक्ष व्यवस्था कर पाएगी। इसी प्रणाली का ही हिस्सा पुलिस है और उसके सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट कई वर्ष पहले फैसला दे चुका है। इसके बावजूद सुधार लागू नहीं हो पा रहे हैं। पुलिस के बड़े अधिकारी दर्द के साथ कह रहे हैं कि पुलिस तंत्र कानून के राज और न्याय के लिए नहीं राजनेताओं के लिए समर्पित बना दिया गया। यह एक विडंबना है, जिससे न्यायिक प्रणाली को निकालना बहुत जरूरी है लेकिन, महज सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उसका निकल पाना आसान नहीं है।
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