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VSCTI HINDI TYPING FOR HIGH COURT 10/12/2018
created Dec 10th 2018, 11:20 by bhavna sharma
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स्मृतियों ने इस बात की आवश्यकता पर बल दिया है कि न्याय प्रशासन का उत्तरदायित्व स्वयं राजा को वहन करना चाहिए। कोई भी व्यक्ति आरंभिक याचिका द्वारा अथवा किसी निचले न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध राजा से अपील कर न्याय मांग सकता था। अपरिहार्य परिस्थितियों को छोड़कर (उदाहरण के लिए यदि राजा राज्य के किन्हीं महत्वपूर्ण विषयों में व्यस्त हो) राजा को सदैव राजधानी में स्थित उच्चतम न्यायालय की अध्यक्षता करते हुए यथाविधि न्याय प्रदान करना होता था। सम्राट केवल अपवाद के रूप में ही मुख्य न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय की अध्यक्षता करने के लिए प्रतिनियुक्त अथवा प्राधिकृत कर सकता था। न्याय करना राजा का दैवी कर्तव्य माना जाता था। राजा के लिए राजसभा में सामान्यतया मुकुट और राजसी वेश धारण करके उपस्थित होना आवश्यक था। वह राजसिंहासन पर बैठकर ही कार्यपालक दायित्वों का निर्वाह करता था। किंतु न्यायिक दायित्वों का निर्वाह करते समय राजा इस प्रकार के बहुमूल्य वेश का त्याग करना पड़ता था और उसे न्याय मंदिर में ‘सादा वेश’और ‘प्रसन्न मुद्रा’ में प्रवेश करना होता था । इससे राजा के कार्यपालक और न्यायपालक दायित्वों के बीच भेद स्पष्ट हो जाता है। आज न्यायालयों में हम जो साज-सज्जा देखते हैं, वह संभवतया मुस्लिम शासकों की देन है। जिसमें ब्रिटिश शासकों ने और वृद्धि कर दी क्योंकि वे शान-शौकत बहुत पसंद करते थे। यदि व्यापारियों,शिल्पियों,दस्तकारों, कलाकारों आदि के विवादों में निहित तकनीकी समस्याओं के कारण न्यायालयों को सही निर्णय देने में कठिनाई अनुभव होती थी तो वे संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों की परामर्शक के रूप में सहायता ले सकते थे। ये परामर्शक उन्हें विवाद के तथ्यात्मक प्रश्नों का निर्णय करने में सहायता कर सकते थे। ऐसे विशिष्ट क्षेत्रों से संबंधित विवादों का निपटारा करने में विशेषज्ञों को मदद करने की उपयोगिता आधुनिक प्रणाली में भी स्वीकार की गई और अपनाई गई है। साक्ष्य अधिनियम निर्णय पर पहुंचने के लिए विशेषज्ञों के साक्ष्य को सुसंगत मानता है। अाधुनिक काल में विशेष प्रकार के मामलों का निपटारा करने में विशेषज्ञों की सहायता ली जाती है। राजमहल के सभाकक्ष को धर्माध्किरण (न्याय मंदिर) कहा जाता था। स्मृतियों में यह विहित था कि राजसभा के लिए राजमहल में एक विशाल सभागार होना चाहिए। उसके परिसर में वृक्ष लगाए जाएं और उसके निकट जल की व्यवस्था की जाए। न्याय कक्ष में अपेक्षित संख्या में असान हों जिन्हें फूलों और रत्नों से सजाया जाए और कक्ष की दीवरों नर देवी-देवताओं के चित्र और मूर्तियां लगी हों।
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