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created Dec 14th 2018, 10:26 by Buddha academy
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बापू आज भी विश्व में उन लाखों-करोड़ों लोगों के लिए आशा की किरण हैं, जो समानता, सम्मान, समावेश और सशक्तीकरण से भरपूर जीवन जीना चाहते हैं। विरले ही लोग होंगे, जिन्होंने मानव समाज पर उनके जैसा गहरा प्रभाव छोड़ा हो। महात्मा गांधी ने भारत को सही अर्थों में सिद्धांत और व्यवहार से जोड़ा था। सरदार पटेल ने ठीक ही कहा था, यदि कोई ऐसा व्यक्ति था, जिसने उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष के लिए सभी को एकजुट किया, जिसने लोगों को मतभेदों से ऊपर उठाया और विश्व मंच पर भारत का गौरव बढ़ाया, तो वह केवल महात्मा गांधी ही थे। बापू ने भविष्य का आकलन किया और स्थितियों को व्यापक संदर्भ में समझा।
इक्कीसवीं सदी में भी महात्मा गांधी के विचार उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उनके समय में थे और वे ऐसी अनेक समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, जिनका सामना आज विश्व कर रहा है। एक ऐसे विश्व में, जहां आतंकवाद, कट्टरपंथ, उग्रवाद और विचारहीन नफरत देशों और समुदायों को विभाजित कर रही है, वहां शांति और अहिंसा के महात्मा गांधी के स्पष्ट आह्वान में मानवताको एकजुट करने की शक्ति है। ऐसे युग में, जहां असमानताएं होना स्वाभाविक है, बापू का समानता और समावेशी विकास का सिद्धांत विकास के आखिरी पायदान पर रह रहे लाखों लोगों के लिए समृद्धि के एक नए युग का सूत्रपात कर सकता है।
महात्मा गांधी ने एक सदी से भी अधिक पहले, मानव की आवश्यकता और उसके लालच के बीच अंतर स्पष्ट किया। उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय संयम और करुणा, दोनों के पालन की सलाह दी, और स्वयं इनका पालन करके मिसाल पेश की थी। वह अपना शौचालय स्वयं साफ करते थे और आस-पास के वातावरण की स्वच्छता सुनिश्चित करते थे। गांधीजी यह सुनिश्चित करते थे कि पानी कम से कम बर्बाद हो और अहमदाबाद में उन्होंने इस बात पर विशेष ध्यान दिया कि दूषित जल साबरमती के जल में न मिले। गांधीजी के व्यक्तित्व की सबसे खूबसूरत बात यह थी कि उन्होंने हर भारतीय को एहसास दिलाया था कि वे भारत की स्वतंत्रता के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने अध्यापक, वकील, चिकित्सक, किसान, मजदूर उद्यमी, सभी में आत्म-विश्वास की भावना भर दी थी कि जो कुछ भी वे कर रहे हैं, उसी से स्वाधीनता संग्राम में योगदान दे रहे हैं।
करीब आठ दशक पहले जब प्रदूषण का खतरा इतना बड़ा नहीं था, तब महात्मा गांधी ने साइकिल चलानी शुरू की थी। जो लोग उस समय अहमदाबाद में थे, इस बात को याद करते हैं कि गांधीजी कैसे गुजरात विद्यापीठ से साबरमती आश्रम साइकिल से जाते थे। मैंने पढ़ा है कि गांधीजी के सबसे पहले विरोध-प्रदर्शनों में वह घटना शामिल है, जब उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में उन कानूनों का विरोध किया, जो लोगों को साइकिल का उपयोग करने से रोकते थे।
इक्कीसवीं सदी में भी महात्मा गांधी के विचार उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उनके समय में थे और वे ऐसी अनेक समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, जिनका सामना आज विश्व कर रहा है। एक ऐसे विश्व में, जहां आतंकवाद, कट्टरपंथ, उग्रवाद और विचारहीन नफरत देशों और समुदायों को विभाजित कर रही है, वहां शांति और अहिंसा के महात्मा गांधी के स्पष्ट आह्वान में मानवताको एकजुट करने की शक्ति है। ऐसे युग में, जहां असमानताएं होना स्वाभाविक है, बापू का समानता और समावेशी विकास का सिद्धांत विकास के आखिरी पायदान पर रह रहे लाखों लोगों के लिए समृद्धि के एक नए युग का सूत्रपात कर सकता है।
महात्मा गांधी ने एक सदी से भी अधिक पहले, मानव की आवश्यकता और उसके लालच के बीच अंतर स्पष्ट किया। उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय संयम और करुणा, दोनों के पालन की सलाह दी, और स्वयं इनका पालन करके मिसाल पेश की थी। वह अपना शौचालय स्वयं साफ करते थे और आस-पास के वातावरण की स्वच्छता सुनिश्चित करते थे। गांधीजी यह सुनिश्चित करते थे कि पानी कम से कम बर्बाद हो और अहमदाबाद में उन्होंने इस बात पर विशेष ध्यान दिया कि दूषित जल साबरमती के जल में न मिले। गांधीजी के व्यक्तित्व की सबसे खूबसूरत बात यह थी कि उन्होंने हर भारतीय को एहसास दिलाया था कि वे भारत की स्वतंत्रता के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने अध्यापक, वकील, चिकित्सक, किसान, मजदूर उद्यमी, सभी में आत्म-विश्वास की भावना भर दी थी कि जो कुछ भी वे कर रहे हैं, उसी से स्वाधीनता संग्राम में योगदान दे रहे हैं।
करीब आठ दशक पहले जब प्रदूषण का खतरा इतना बड़ा नहीं था, तब महात्मा गांधी ने साइकिल चलानी शुरू की थी। जो लोग उस समय अहमदाबाद में थे, इस बात को याद करते हैं कि गांधीजी कैसे गुजरात विद्यापीठ से साबरमती आश्रम साइकिल से जाते थे। मैंने पढ़ा है कि गांधीजी के सबसे पहले विरोध-प्रदर्शनों में वह घटना शामिल है, जब उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में उन कानूनों का विरोध किया, जो लोगों को साइकिल का उपयोग करने से रोकते थे।
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