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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || - Anshul Khare Guddu
created Apr 15th 2019, 05:13 by ddayal2004
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वन्यजीव संरक्षण में स्थानीय समुदायों को शामिल करने के अनेक तरीके हैं, लेकिन उन्हें इस देश में यदा-कदा ही आजमाया गया है। भारत में करीब 700 संरक्षित क्षेत्र हैं और इन सभी में बफर या प्रतिरोधी क्षेत्र भी हैं, लेकिन उन में से ज्यादातर बहुत खराब तरह से प्रतिबंधित हैं। ये वन सुरक्षा के द्वीप बन गए हैं और वन्यजीव जब अपने सुरक्षित स्वर्ग से बाहर निकलते हैं, तो अमूमन बचते नहीं हैं। वन्यजीवों और ऐसे मिले-जुले या बफर क्षेत्रों की रक्षा के लिए हमें ग्रामीण वन्यजीवन वॉलंटियर्स सेना की जरूरत है। भारत समुदायों का इस्तेमाल प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए कर सकता है। उन्हें पर्यटन व्यवसाय में लगाकर, उन्हें अपने लिए पैसा कमाने की छूट देकर ऐसा किया जा सकता है। ऐसे कुछ प्रयोग महाराष्ट्र के तादोबा टाइगर रिजर्व और राजस्थान के रणथंभौर टाइगर रिजर्व के आसपास चल रहे हैं, लेकिन ऐसे प्रयासों की सफलता के लिए दो-पक्षीय कार्ययोजना चाहिए। पहला वन विभाग को बफर क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण छोड़ना पड़ेगा। दूसरा स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित करना पड़ेगा। स्थानीय लोगों को मंजूरी देनी पड़ेगी कि वे बफर क्षेत्र में छोटे आवास बना सकें। और वहां वाहन से आना-जाना कर सकें। इस व्यवसाय के लिए शुरुआती धन संरक्षित क्षेत्रों में पर्यटन से होने वाली कमाई के जरिए आएगा। यह एक तरह से स्थानीय समुदायों के लिए वन्यजीवन स्टार्टअप खड़ा करने जैसा होगा। मेरा मजबूत विश्वास है कि ऐसे प्रयासों का घरेलू अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर होगा। स्थानीय समुदायों के साथ भागीदारी से ही इन क्षेत्रों का संरक्षण करना होगा। उदाहरण के लिए, रणथंभौर टाइगर रिजर्व में 55 ग्रामीण युवा वन्यजीवों की रक्षा और निगरानी कर रहे हैं। उनमें जो ज्ञान, लगाव है और जो स्थानीय विशेषज्ञता है, उसकी कोई तुलना नही है। वे जब वन विभाग के साथ मिलकर काम करते हैं, तो प्राकृतिक संसार के अवैध दोहन व शिकार से लड़ने में सबसे प्रभावी ताकत बन जाते हैं। दुखद है कि तादोबा और रणथंभौर टाइगर रिजर्व जैसे उदाहरण गिने-चुने हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वन विभाग किसी को भी अपने कंधो पर देखना नहीं चाहता। इसमें जरूर बदलाव होना चाहिए। हमारे जंगलों का भविष्य इन वन्यजीव स्टार्टअप में छिपा है। मेरी गणना के अनुसार आज रणथंभौर गेट टिकट या पास के जरिए ही सरकार के लिए 35 करोड़ रुपये हर वर्ष कमाता है और सवाई माधौपुर शहर पर्यटन से हर वर्ष 350 करोड़ रुपये अर्जित करता है। सोचिए बफर क्षेत्रों को स्थानीय समुदायों के लिए खोलने से क्या हो सकता है। हम कम से कम दस लाख लोगों की आय के बारे में बात कर रहे हैं। जिनके परिवारों को सीधे लाभ होगा। भारत में अनेक ऐसे जादुई या बेमिसाल क्षेत्र हैं, जो ऐसे बदलाव के लिए तड़प रहे हैं।
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