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राहुल की आमद से माकपा के राष्ट्रीय दर्जे पर संकट

created Apr 20th 2019, 07:58 by AkshayDohare


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केरल में लोकसभा चुनाव का परिचित पैटर्न रहा है। कांग्रेस के अच्छे समय में भी परिणाम अधिकतर बंटा रहा। राज्य में माकपा के नेतृत्व वाले एलडीएफ के शासन में भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ही अधिकांश सीटें जीतती रही है। हालांकि, 2004 जैसे कुछ ऐसे मौके भी आए जब एलडीएफ ने राज्य की 20 में से 16 सीटें जीतीं।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के अचानक ही अमेठी के साथ केरल के वायनाड से चुनाव लड़ने के फैसले से हर जगह यह चर्चा होने लगी थी कि इस चुनाव में वामदल गंभीर संकट में सकते हैं। ऐसा हो भी सकता था, लेकिन पहले की तरह इस बार भी संघर्ष कांटे का है। माकपा और उसके सहयोगी अपने अभियान में कोई भी कसर नहीं छोड़ रहे हैं, जबकि कांग्रेस ने राहुल गांधी के यहां से लड़ने से मिलने वाली बढ़त का फायदा उठाने की बहुत ज्यादा कोशिश नहीं की है
राहुल ने स्पष्ट किया है कि वह लेफ्ट को मुख्य प्रतिद्वंद्वी नहीं मानते हैं। उन्होंने सार्वजनिक रूप से लेफ्ट के खिलाफ एक भी प्रतिकूल शब्द नहीं कहा है। इसका परिणाम यह है कि वायनाड में तो मुकाबला कांग्रेस के पक्ष में एक तरफा है, लेकिन, अन्य सीटों पर ऐसा नहीं है। इसलिए एक बार फिर कांग्रेस और उसके सहयोगी राज्य में लेफ्ट से अधिक सीटें तो जीतेंगे पर परिणाम एकतरफा नहीं होंगे। यह संभव है कि कांग्र्रेस एक-दो सीटें लेफ्ट से छीन ले
सामान्यत: चुनाव में करो या मरो शब्द का इस्तेमाल होता है, लेकिन माकपा के लिए हकीकत मेें इस बार स्थिति अलग है। यह अकेला राज्य है माकपा जहां से कुछ सीटों की उम्मीद कर रही है। अगर वह यहां पर भी सिमट गई तो उसका राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खतरे में जाएगा। पार्टी को बंगाल समेत अन्य राज्यों से बहुत ही कम सीटों की उम्मीद है।
अगर यह चुनाव सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले हो गए होते तो एलडीएफ इस चुनाव को स्वीप कर सकता था। उस समय लोगों की राय पूरी तरह एलडीएफ के पक्ष में थी, क्योंकि राज्य सरकार ने अगस्त में आई बाढ़ के समय हालात को बहुत ही अच्छे तरीके से संभाला था। इसके लिए उसकी हर तरफ प्रशंसा हो रही थी।
लेकिन 28 सितंबर के फैसले के बाद हालात नाटकीय तौर पर बदल गए। सरकार द्वारा हर उम्र की महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने के निर्णय का जनता में भारी विरोध हुआ। विशेषकर प्रभावशाली नायर समुदाय ने इसका विरोध किया, जो राज्य की कुल जनसंख्या का 14 फीसदी हैं। अन्य हिन्दुओं में भी इससे नाराजगी है। इस चुनाव का परिणाम भी काफी हद तक इस एक मुद्दे पर निर्भर हो सकता है।  
कांग्रेस ने सरकार के फैसले पर सवाल उठाकर अपनी चाल चली और अब उसके नेताओं को इससे फायदे की उम्मीद है। लेकिन जो पार्टी इस मुद्दे को इस चुनाव में कैश करना चाहती है वह भाजपा है। पार्टी इस मुद्दे के भरोसे राज्य में अपना खाता खोलना  चाहती है। दक्षिण में केरल अकेला राज्य है, जो अब तक भाजपा की पहुंच से दूर है। भाजपा उसके सहयोगी संगठनों द्वारा सबरीमाला पर राज्यभर में चलाए गए आंदोलन की गूंज अब भी बरकरार है।
मुख्य चुनाव अधिकारी टीकाराम मीणा ने पार्टियों पर प्रचार में सबरीमाला और भगवान अयप्पा के नाम का इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी है। इससे भाजपा के लिए अपना अभियान पूरी ताकत से चलाने में दिक्कत हो रही है। हालांकि त्रिशूर से चुनाव लड़ रहे भाजपा नेता पूर्व एक्टर सुरेश गोपी समेत कुछ नेताओं ने इस फरमान का उल्लंघन भी किया है।
कोझीकोड में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सबरीमाला और अयप्पा शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया, लेेकिन तमिलनाडु में उन्होंने एलडीएफ सरकार पर प्रहार करते हुए कहा कि केरल में अयप्पा नाम लेने पर जेल भेजा जा रहा है। लेफ्ट इस विवाद से डरा हुआ है।
कांग्रेस अध्यक्ष प्रचार के लिए रहे हैं। 18 अप्रैल को मोदी भी राजधानी में रहेंगे। प्रियंका गांधी 20 21 अप्रैल को वायनाड में प्रचार करेंगी। ये रैलियां साबित करेंगी कि हवा किस ओर बह रही है।

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