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सीपीसीटी 28 अप्रैल 2019 शिफ्ट - 2 (सौरभ कुमार इन्दुरख्या)
created May 10th 2019, 09:42 by sourabh indurkhya
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हम्पी मध्यकालीन हिंदू राज्य विजयनगर साम्राज्य की राजधानी था। तुंगभ्रदा नदी के तट पर स्थित यह नगर हम्पी (पम्पा से निकला हुए नाम से जाना जाता है और केवल खंडहरों के रूप में ही अवशेष है।इन्हें देखने से ही यह प्रतीत होता है कि किसी समय यहां एक समृद्धशाली सभ्यता निवास करती हाेगी। भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित यह नगर यूनेस्कों के विश्व विरासत स्थलों में शमिल किया गया है। हम्मी का इतिहास प्रथम शताब्दी से प्रारंभ होता है। उस समय इसके आसपास बौद्धों का कार्यस्थल था। बाद में हम्पी विजयनगर साम्राज्य की राजधानी बना। विजयनगर हिंन्दूओं के सबसे विशाल साम्राज्यों में से एक था। हरिहर और बुक्का नामक दो भाईयों ने 1336 में इस साम्राज्य की स्थापना की थी। कृष्णदेव राय ने यहां 1401 से 1421 के बीच हम्पी में शासन किया और अपने साम्राज्य का विस्तार किया। हम्पी शेष रहे अधिकतर स्मारकों का निर्माण कृष्णदेव राय ने करवाया था। यहां चार पक्तियों की किलेबंदी नगर की रक्षा करती है। इस साम्राज्य की विशाल सेना दूसरे राज्यों से इसकी रक्षा करती थी। विजयनगर साम्राज्य के अंर्तगत कर्नाटक, महाराष्ट्र और आन्ध्र प्रदेश राज्य आते थे। कृष्णदेवराय की मृत्यु के बाद इस विशाल साम्राज्य को बीदर, बीजापुर, गोलकुंडा अहमदनगर और बरार की मुस्लिम सेनाओं ने 1565 में नष्ट कर दिया। कर्नाटक राज्य स्थित हम्पी रामायणकाल में पम्पा और किष्किन्धा के नाम से जाना जाता था। हम्पी को यह नाम हम्पादेवी का मंदिर होने से मिला। हम्पादेवी मंदिर ग्यारहवीं से तेरहवीं शताब्दी के बीच बनवाया गया था। विजयनगर के प्राचीन भवनों का विस्तृत विवरण ने अपनी पुस्तक हम्पी रूंइस में दिया है। विट्ठल मंदिर परिसर सबसे शानदार स्मारकों में से एक है। इसके मुख्य हाल में 46 स्तभों को थपथपाने पर उनमें से संगीत की लहरिया निकलती हैं। हाल की पूर्वी हिस्से में प्रसिद्ध शिला रथ है जो वास्तव में पत्थर के पहिए से चलता था। हम्पी में ऐसे अनेक आश्चर्य हैं, जैसे यहां के राजाओं को अनाज, सोने और रूपयों में तौला जाता था और उसे गरीब लोगों में बांट दिया जाता था। रानियों के लिए स्नानागार मेहराबदार गलियारों, झरोखेदार छज्जों और कमल के आकार के फव्वारों से सुसज्जित होते थे। इसके अलावा कमल महल और जनानखाना भी ऐसे आश्चर्यो में शमिल हैं। एक सुंदर दो मंजिला स्थान जिसके मार्ग ज्यामितीय ढंग से बने हैं और धूप और हवा लेने के लिए किसी फूल की पत्तियों की तरह बने हैं। यहांं हाथी खाने के प्रवेश द्वार और गुबंद मेहराबदार बने हुए हैं और शहर के शाही प्रवेश द्वार पर हजारा राम मंदिर बना है। विरूपाक्ष मंदिर कृष्णदेव राय ने निर्माण कराया था भगवान विष्णु को समर्पित है मंदिर का शिखर जमीन से 40 मीटर ऊपर है।
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