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UP Police ASI,Computer operator (Raghvendra Pratap Singh) Hindi 20-05-2019

created May 20th 2019, 12:11 by Raghvendra002


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अब बस नतीजों का इंतजार है। सातवें चरण का मतदान पूरा होने के साथ ही अब सारे उम्मीदवारों, सभी दलों और दरअसल पूरे देश का भविष्य इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों और वीवीपैट की पर्चियों में बंद हो चुका है। देश के 17वें  आम चुनाव की घोषणा 10 मार्च को हई थी। तब से अब तक देश को जिन लहरों, हवाओं और तनावों से गुजरना पड़ा है, वह अपने आप में अभूतपूर्व है। इस दौरान देश का राजनीतिक विमर्श कई बार जिस निचले स्तर पर पहुंचता दिखा, वह अपने आप में चिंता का विषय है। ऐसा नहीं है कि चुनाव के दौरान आरोप-प्रत्यारोप और एक-दूसरों की नीचा दिखाने की कोशिशें पहले नहीं होती थीं, लेकिन इस बार के चुनावी हंगामें ने इतिहास को बख्शा और पूर्वजों को। विरोधियों पर कीचड़ उछालने के प्रयास  उन स्तंभों को घेरे में लेने की कोशिश की गई, जिनका जनमानस आज भी सम्मान करता है और जिन पर हमारा वर्तमान टिका है। फिर पश्चिम बंगाल में जिस तरह की हिंसा हुई, वह बताती है कि लोतांत्रिक लड़ाई की हमारी परंपराओं में सब कुछ अच्छा नहीं है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, दुनिया में कहीं भी इस तरह करोड़ों लोग घरों से निकलकर, लाइनों में लगके अपनी किस्मत का फैसला करने नहीं जाते, जैसे वे भारत में जाते हैं। अगर यह हमारे लोकतंत्र की ताकत है, तो पिछले दो महीनों क्यों हमारी व्यवस्था का ऐसा दोष माना जाए, जिसे अविलंब सुधारना जरूरी है। लोकतंत्र कुछ आम सहमितियों पर टिका होता है, ये आम सहमतियां सिर्फ लोकतंत्र को एक संतुलन देती हैं, बल्कि वे सीमा-रेखा भी खींच देती हैं, जिनके बीच रहकर प्रतिद्वंदियों को एक-दूसरे से लड़ना होता है। ऊपर जितनी भी गड़बड़ियां गिनाई गईं, उनकी एक वजह यह भी रही कि इस बार कई मौकों पर या शायद बार-बार ऐसी कई आम सहमतियां टूटती दिखीं। विदेश नीति और सेना वगैरह को इस देश ने हमेशा चुनावी लड़ाई से दूर रखा है, लेकिन इस बार इसे भी चुनाव मैदान में खींचा जाता रहा। चुनाव प्रक्रिया को लेकर जितने शक इस बार उठे उतने शायद पहले कभी नहीं उठे हों। आयोग को देश की ऐसी सबसे महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित संस्था माना जाता है, जिस पर ज्यादा संदेह नहीं उठते रहे हैं। आयोग की कुछ उपलब्धियां ऐसी हैं कि पश्चिमी देशों की चुनाव व्यवस्थाएं भी उससे ईर्ष्या कर सकती हैं। अगर यह सिलसिला टूट रहा है, तो लोकतंत्र के लिए एक बुरी खबर है। रेफरी पर ही सवाल उठते रहे तो प्रतियोगिता कहीं कहीं अर्थ खोने लगेगी। चुनाव बाद की सबसे जरूरी चीज है कि आम सहमतियों की ओर फिर से लौटा जाए। यह ऐसी चीज है, जिस दलगत राजनीति से दूर रखना होगा। चुनाव प्रक्रिया और मतगणना ऐसी चीज है, जिस पर सभी दलों और निर्वाचन आयोग को मिलकर सहमतियां बनानी होंगी। ताकि बीच चुनाव में इस पर सवाल खड़े हों। यहां एक बात और ध्यान देने योग्य है। भारतीय लोकतंत्र को धन-बल के प्रभाव से मुक्त कराने की कोशिशें जाने कब से जारी हैं और यह चुनाव बताता है कि हम इसमें पूरी तरह असफल रहे हैं। लेकिन इस बीच बहुत सारी नई बुराइयां हमने लोकतंत्र के साथ जोड़ ली हैं। भारतीय लोकतंत्र को ऐसी प्रवृत्तियों से मुक्त कराने की जरूरत बढ़ती जा रही है। दर्शक सहजता से उपलब्ध हैं, तो इसका अर्थ यह नहीं कि उनके सामने कोई भी तमाशा परोस दिया जाए। कई ऐसी चीजें हैं, जिन्हें दिखाना अवैध है, लेकिन लोग उन्हें भी मजे से देखने के लिए तैयार हो जाएंगे। बहुत सारी ऐसी चीजें भी हैं, जिन्हें कोई कानून रोकता नहीं है, लेकिन प्रसारक उनका प्रदर्शन नहीं करते जेरेमी कायले शो इमसें नई कड़ी है, इस कार्यक्रम के प्रसारण को आईटीवी ने रद्द कर दिया है, कार्यक्रम के दौरान एक भागीदार की मौत हो गई थी। यह एक सही निर्णय है, लेकिन त्रासद यह कि यह निर्णय देर से लिया गया। 14 वर्ष पुराने इस शो को लेकर विवाद उठते रहे हैं वर्ष 2007 में भी एक जज् ने इस कार्यक्रम की आलोचना की थी। अपने बचाव में प्रसारक का कहना है, लोग अपनी सहमति से कार्यक्रम में भाग लेते हैं और जो बुद्धिजीवी इस कार्यक्रम की आलोचना करते हैं, ठीक इसी तरह के तर्क एक अन्य रियलिटी शो लव आइलैंड के लिए भई दिए जाते हैं। आरोप है कि इस रियालटी शो में भागीदारों के हित को नजरंदाज रहती हैं, लेकिन मूलभूत सामाजिक अवधारणाएं अल्पकालिक नहीं हैं। टीवी कार्यक्रम निर्माताओं की नैतिक रूप से सही व्यवहार करने की जिम्मेदारी मात्र इस वजह से कम नहीं हो जाती कि लोग पहले से ज्यादा उदार हो गए हैं। पहले के दर्शक कई चीजों को देख चौंक जाते थे, लेकिन अब नहीं चौंकते, लेकिन मूलभूत सामाजिक अवधारणाएं अल्पकालिक नहीं हैं। टीवी कार्यक्रम निर्माताओं की नैतिक रूप से सही व्यवहार करने की जिम्मेदारी मात्र इस वजह से कम नहीं हो जाती कि लोग पहले से ज्यादा उदार हो गए हैं।

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