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Up police computer Operator and Asi (10-06-2019 Hindi) Raghvendra Singh
created Jun 10th 2019, 16:32 by Raghvendra002
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कोई आखिर कितना जी सकता है? जीवन से परेशान लोग यह सवाल पूछे, तो उनकी दिक्कत समझी जा सकती है। पर यह ऐसा सवाल है, जिसे इन दिनों वैज्ञानिक भी पूछ रहे हैं। लंबी उम्र जीने वालों का इतिहास बहुत लंबा है। शतायु होना हमारे यहां सिर्फ मुहावरा नहीं है, इसके कई उदाहरण प्राचीन से वर्तमान दौर तक मिल जाते हैं। यह ठीक है कि आम बोलचाल में हम अक्सर यह कह देते है कि आज का दौर सेहत के लिए उतना अच्छा नहीं, जितना कि बीता हुआ समय था। प्रदूषण वगैरह को देखते हुए कुछ हद तक यह बात सही भी है, लेकिन पूरी तरह सही नहीं है। सच यही है कि भारत समेत दुनिया भर में औसत पूरी तरह सही नहीं है। सच यही है कि भारत समेत दुनिया भर में औसत उम्र लगातार बढ़ रही है। इसका श्रेय किसी और को नहीं, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं का ही है। औसत उम्र का यह बढ़ना कई तरह से है। एक तरफ तो बाल मृत्यु-दर कम हो रही है, दूसरी तरफ अधिकतम शतायु होने वालों की संख्या भी बढ़ी है। एक दौर था, जब 110 साल की उम्र तक पहुंचते ही यह मान लिया जाता था कि जीवन की संध्या वेला आ गई है। पर अब इस उम्र से भी आघे जीने वालों की संख्या बढ़ रही है। अभी तक सबसे ज्यादा जीने का श्रेय फ्रांस की महिला ज्यां कामेंट को दिया जाता था, जिनका 122 साल की उम्र में 1997 में निधन हुआ था। लेकिन अब इंडोनेशिया के बॉ गोथो के बारे में माना जाता है कि वह 145 बरस की उम्र पार कर गए हैं। पिछले दिनों डेममार्क विश्वविद्यालय के तीन विशेषज्ञय यह जानने में जुटे कि इंसान की उम्र का अंतिम प्राकृतिक पड़ाव क्या है? इसे समझने के लिए डेनमार्क एक महत्वपूर्ण देश है, क्योंकि उसमें और उसके पड़ोसी स्वीडन में औसत उम्र सबसे ज्यादा है। डेनमार्क में तो शतायु लोगों की आबादी छह फीसदी तक पहुंच गई है। इन विशेषज्ञों ने इसका श्रेय वाहं की स्वास्थ्य सेवा को दिया, पर यह भी कहा कि 125 साल को उम्र की अंतिम सीमा माना जा सकता है। वैसे दुनिया के अन्य विशेषज्ञों के आकलन भी इसी के आस-पास ठहरते हं। इलियन विश्वविद्यलाय के प्रोफेसर जे ओलशंकस्की के अनुसार, आदर्श स्थितियों में एक इंसान जितना जी सकता है, उम्र को उससे आगे सामान्य तौर पर नहीं खींचा जा सकता। अगर ऐसा करना है, तो हमें एक नए विज्ञान की जरूरत होगी। वैसे विज्ञान की कुछ शाखाएं इंसान को हमेशा के लिए अमर कर देने की कोशिश भी कर रही हैं, लेकिन वह एक अलग मामला है। यहां मामला यह है कि इंसान का शारीरिक तंत्र उसे कितनी लंबी उम्र तक जीने की इजाजत देता है या प्रकृति ने उसे कितने लंबे समय तक जीने के लिए बनाया है। यह सच है कि हर इंसान ज्यादा से ज्यादा जीना चाहता है। साहित्य और लोकोक्तियों में जब जिंदगी के लिए चार दिनों की उपमा दी जाती है, तो आशय यही होता है कि यह बहुत छोटी है, इसे और लंबा होना चाहिए। ऐसा तो नहीं कि इंसान की ज्यादा जीने की यह लालसा ही उसकी उम्र को लगातार बढ़ा रही हो? प्रोफेसर ओलशंस्की ऐसा नहीं मानते। उनका अध्ययन बताता है कि भले ही पिछली एक सदी में औसत उम्र 30 साल बढ़ी, पर जौविक मंत्र में कोई ऐसा बदलाव नहीं हुआ कि हम ज्यादा जी सकें। आइए हम फिर लौटते हैं बॉ गोथो की तरफ। कुछ समय पहले उन्होंने एक पत्रकार से कहा था कि जीवन का अनुभव बहुत हो गया, अब मरने का अनुभव लेना चाहता हूं।
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