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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT_Admission_Open
created Jun 14th 2019, 11:00 by akash khare
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चुनावी शोर-शराबा थम चुका है और नई सरकार आ गई है। ऐसे में चुनाव के अहम मुद्दों-राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद पर विचार-विमर्श किया जाना चाहिए। हालांकि राष्ट्रवाद की अलग-अलग व्याख्या हो सकती है और इसका विश्लेषण करना मुश्किल है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा एक निश्चित शब्दावली ही है। दो साल पहले सर्जिकल स्ट्राइक हुई। उसके बाद इस साल फरवरी में पुलवामा आतंकी हमला हुआ, जिसके तत्काल बाद बालाकोट पर जवाबी हमला किया गया। इस मुद्दे पर चुनाव प्रचार में तगड़ी बयानबाजी देखने को मिली। पाकिस्तान को दुश्मन देश मानते हुए उसे कड़ा सबक सिखाने की बात कही गई।
रोचक बात यह है कि इन बयानों में चीन का कोई जिक्र नहीं हुआ। भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित नियंत्रण रेखा करीब 700 किलोमीटर है, लेकिन चीन के साथ करीब 4,000 किलोमीटर की सीमा को लेकर विवाद है। इतना ही नहीं, चीन आक्साई चीन में हमारी जमीन दबाए बैठा है और अरुणाचल प्रदेश पर भी दावा करता है, इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर थोड़ा अधिक यथार्थवादी नजरिया अपनाना जरूरी है।
किसी भी देश की सुरक्षा के बहुत से आयाम होते हैं। इनमें सैन्य दृष्टिकोण केवल एक आयाम है, लेकिन यह सबसे अहम है। इस नजरिये को ध्यान में रखते हुए हम यहां प्रासंगिक समीकरणों की पड़ताल करते हैं। जमीन पर हमने उत्तरी सीमाओं पर सेनाएं तैनात कर रखी हैं। लेकिन यह मुश्किल से ही कभी देखने को मिला हो कि पाकिस्तान के किसी सैन्य मुख्यालय ने भारत के साथ टकराव का समर्थन किया हो। दोनों देशों की वायु सेनाओं के बीच संतुलन को लेकर भी ऐसा कहा जा सकता है। यह सही है कि पाकिस्तान की वायु सेना ने बालाकोट हमले के अगले ही दिन पलटवार किया था और हमारे एक मिग-21 को गिरा दिया था, लेकिन उसके विमान हमारी सीमा के अंदर नहीं आए थे। नौसेना के लिहाज से हमें बढ़त हासिल है। ऐसे में पाकिस्तानी सेना हमारी क्षेत्रीय अखंडता को नुकसान पहंचाने की आशंका दूर-दूर तक नजर नहीं आती है।
हां पाकिस्तान की तरफ से भारत में और विशेष रूप से कश्मीर घाटी में आतंकी गतिविधियों को अप्रत्यक्ष मदद आगे भी जारी रहने के आसार हैं। हालांकि इस समय पांकिस्तान के खस्ता आर्थिक हालात, अंतरराष्ट्रीय दबाव और भारत की कड़ी कार्रवाई से अंकुश लगेगा।
रोचक बात यह है कि इन बयानों में चीन का कोई जिक्र नहीं हुआ। भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित नियंत्रण रेखा करीब 700 किलोमीटर है, लेकिन चीन के साथ करीब 4,000 किलोमीटर की सीमा को लेकर विवाद है। इतना ही नहीं, चीन आक्साई चीन में हमारी जमीन दबाए बैठा है और अरुणाचल प्रदेश पर भी दावा करता है, इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर थोड़ा अधिक यथार्थवादी नजरिया अपनाना जरूरी है।
किसी भी देश की सुरक्षा के बहुत से आयाम होते हैं। इनमें सैन्य दृष्टिकोण केवल एक आयाम है, लेकिन यह सबसे अहम है। इस नजरिये को ध्यान में रखते हुए हम यहां प्रासंगिक समीकरणों की पड़ताल करते हैं। जमीन पर हमने उत्तरी सीमाओं पर सेनाएं तैनात कर रखी हैं। लेकिन यह मुश्किल से ही कभी देखने को मिला हो कि पाकिस्तान के किसी सैन्य मुख्यालय ने भारत के साथ टकराव का समर्थन किया हो। दोनों देशों की वायु सेनाओं के बीच संतुलन को लेकर भी ऐसा कहा जा सकता है। यह सही है कि पाकिस्तान की वायु सेना ने बालाकोट हमले के अगले ही दिन पलटवार किया था और हमारे एक मिग-21 को गिरा दिया था, लेकिन उसके विमान हमारी सीमा के अंदर नहीं आए थे। नौसेना के लिहाज से हमें बढ़त हासिल है। ऐसे में पाकिस्तानी सेना हमारी क्षेत्रीय अखंडता को नुकसान पहंचाने की आशंका दूर-दूर तक नजर नहीं आती है।
हां पाकिस्तान की तरफ से भारत में और विशेष रूप से कश्मीर घाटी में आतंकी गतिविधियों को अप्रत्यक्ष मदद आगे भी जारी रहने के आसार हैं। हालांकि इस समय पांकिस्तान के खस्ता आर्थिक हालात, अंतरराष्ट्रीय दबाव और भारत की कड़ी कार्रवाई से अंकुश लगेगा।
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