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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT_Admission_Open
created Aug 21st 2019, 06:08 by VivekSen1328209
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जहां वादी ने वाद प्रस्तुत करने से पूर्व पक्षकारों के मध्य हुए पूर्ववर्ती समझौते के आधार पर घोषणा चाही थी, पूर्ववर्ती पारिवारिक समझौते के निबन्धनों को सम्मिलित करते हुए पक्षकारों द्वारा समझौता फाईल किया गया। समझौता केवल वाद की सम्पतित से संबंधित है तथा वाद में की स्थावर संपत्ति से भिन्न कोई अन्य स्थावर संपत्ति समझौते में निर्दिष्ट नहीं थी। इस प्रकार अधिनियम की उप-धारा 17(2) के प्रकाश में समझौते का रजिस्ट्रीकरण अपेक्षित नहीं था। वर्तमान समझौता डिक्री स्वयं के बल पर पक्षकारों के पक्ष में कोई अधिकार या हक सृष्ट नहीं करती है, अपितु यह परिवार में प्रत्येक सदस्य के संबंध में पूर्व से विद्यमान अधिकार को मान्यता देने के लिए प्रवर्तित है। दावा प्रस्तुत होने से पूर्व ही समझौता पहले से हो चुका था।
अभिव्यक्ति ''वाद की विषय-वस्तु'' अनुध्यात करती है कि विनिर्दिष्ट स्थावर सम्पत्ति को मुकदमे का विषय होना चाहिए। मुकदमे में किसी विनिर्दिष्ट स्थावर सम्पत्ति पर या स्थावर सम्पत्ति में दावा या अधिकार प्राख्यात किया जाना चाहिए तथा उसके संबंध में अनुतोष मांगा जाना चाहिए, तभी उक्त सम्पत्ति वाद की विषय वस्तु बन सकती है। यह प्रश्न कि क्या किसी समझौते का एक विशिष्ट निबन्धन वाद की विषय-वस्तु से संबंधित है अथवा नहीं, यह स्पष्टत: ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर विशिष्ट वाद की विरचनाएं उसमें दावा किए गए अनुतोष तथा पक्षकारों के अभिवचनों पर विनिश्चय के लिए उद्भूत मामले के परिप्रेक्ष्य में दिया जाना चाहिए। जब कोई समझौता वास्तव में पक्षकारों के मध्य सभी मामलों के संबंध में मतभेदों तथा अधिकारों के समायोजन का है तथा समझौते का तात्पर्य सभी को स्वीकार्य उचित एवं संतोषजनक आधार के रूप में झगड़ों के समायोजन तथा अंतिम निपटारे का हो, तब इसे वाद से संबंधित होना धारित किया जाना चाहिए।
गुजरात उच्च न्यायालय का दृष्टिकोण यह रहा कि उन संपत्तियों जोकि वाद की विषय-वस्तु हैं के संबंध में समझौते के निबन्धनों में पारित डिक्री विधिमान्य होगी, चाहे डिक्री में वाद की विषय-वस्तु से भिन्न सम्पत्तियां सम्मिलित हों। यह रजिस्ट्रीकरण से छूट प्राप्ति के लिए उस सीमा तक हकदार होगी, जिस सीमा तक यह उन सम्पत्तियों से संबंधित है जोकि वाद की विषय वस्तु थीं।
अभिव्यक्ति ''वाद की विषय-वस्तु'' अनुध्यात करती है कि विनिर्दिष्ट स्थावर सम्पत्ति को मुकदमे का विषय होना चाहिए। मुकदमे में किसी विनिर्दिष्ट स्थावर सम्पत्ति पर या स्थावर सम्पत्ति में दावा या अधिकार प्राख्यात किया जाना चाहिए तथा उसके संबंध में अनुतोष मांगा जाना चाहिए, तभी उक्त सम्पत्ति वाद की विषय वस्तु बन सकती है। यह प्रश्न कि क्या किसी समझौते का एक विशिष्ट निबन्धन वाद की विषय-वस्तु से संबंधित है अथवा नहीं, यह स्पष्टत: ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर विशिष्ट वाद की विरचनाएं उसमें दावा किए गए अनुतोष तथा पक्षकारों के अभिवचनों पर विनिश्चय के लिए उद्भूत मामले के परिप्रेक्ष्य में दिया जाना चाहिए। जब कोई समझौता वास्तव में पक्षकारों के मध्य सभी मामलों के संबंध में मतभेदों तथा अधिकारों के समायोजन का है तथा समझौते का तात्पर्य सभी को स्वीकार्य उचित एवं संतोषजनक आधार के रूप में झगड़ों के समायोजन तथा अंतिम निपटारे का हो, तब इसे वाद से संबंधित होना धारित किया जाना चाहिए।
गुजरात उच्च न्यायालय का दृष्टिकोण यह रहा कि उन संपत्तियों जोकि वाद की विषय-वस्तु हैं के संबंध में समझौते के निबन्धनों में पारित डिक्री विधिमान्य होगी, चाहे डिक्री में वाद की विषय-वस्तु से भिन्न सम्पत्तियां सम्मिलित हों। यह रजिस्ट्रीकरण से छूट प्राप्ति के लिए उस सीमा तक हकदार होगी, जिस सीमा तक यह उन सम्पत्तियों से संबंधित है जोकि वाद की विषय वस्तु थीं।
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