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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT_Admission_Open
created Aug 21st 2019, 11:31 by AnujGupta1610
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अगस्त का महीना भारत के लिए हमेशा ही बाढ़ का महीना होता है। इस महीने तक अगर बाढ़ की खबरें न आने लगें, तो मान लिया जाता है कि सूखा पड़ गया है। बाढ़ जो विनाश लाती है, वह भी हमारे लिए नया नहीं रखा है। लेकिन इस बार यह सब जिस तरह से और जिस बड़े पैमाने पर हो रहा है, वह डराने वाला है। कहीं बादल फट रहे हैं, तो कहीं भू-स्खलन हो रहे हैं, कहीं पुल बह रहे हैं, तो कहीं भू-स्खलन हो रहे हैं, कहीं पुल बह रहे हैं, तो कहीं पूरी सड़क ही अतिवृष्टि की भेंट चढ़ रही है। सिर्फ यह कहना कि देश का एक बड़ा हिस्सा बाढ़ की चयपेट में है या यह कि बाढ़ के चलते देश के एक बड़े हिस्से में जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है, इस समस्या को कम करके आंकना होगा। समस्या को अगर एक अन्य तरह से देखें, तो यह वह साल है, जब शुरू में मौसम के सारे आकलन कह रहे थे कि इस बार मानसून औसत से कम रहेगा। देश के कई हिस्सों में सूखा पड़ने की आशंकाएं अप्रैल और मई के महीनों से ही गहरा रही थीं। और जून खत्म होते-होते जब मानसून आमतौर पर पूरे देश को भिगो चुका होता है, तब यह सुनने में आ रहा था कि देश के ज्यादातर हिस्सों में सूखे के हालात हैं और इसका असर फसलों की बुवाई पर पड़ा है। कहां औसत के कितनी कम बारिश हुई है, इसके आंकडे तक आने लगे थे। फिर मौसम ने अचानक करवट ली और देश का एक बड़ा हिस्सा अतिवृष्टि से जूझता नजर आया। इस समय हालत यह है कि दक्षिण, पश्चिम और उततर भारत तकरीबन हर जगह से अतिवृष्टि के कहर की खबरें आ रही हैं। पहाड़ो पर भू-स्खलन और बादल फटने की वजह से हुए नुकसान की खबरें तो आ ही रही हैं, राजस्थान जैसा सूखा माना जाने वाला प्रदेश भी भीषण बाढ़ से त्रस्त दिख रहा है। देश के सभी जलाशय पहले ही लबालब हो चुके थे और भारी बारिश जारी रहने के कारण बांध के गेट खोल दिए गए हैं, जिसका पानी एक और खतरा बनकर चारों और फैल रहा है। जान-माल का नुकसान बहुत बड़ा है, पर शायद यह अभी उसे गिनने का समय नहीं है। अभी जरूरत उन लोगों को बचाने और राहत पहुंचाने की है जो या तो बाढ़ में फंसे हैं या इसकी वजह से बेघर हो चुके हैं। अतिवृष्टि का यह नया रूप पिछले कुछ साल से हमें परेशान कर रहा है। हर बार पहले से ज्यादा। पिछले साल कुछ ही दिनों की बारिश ने केरल के एक बड़े हिस्से के लिए भारी मुसीबतें खडत़ी कर दी थीं, इस साल केरल समेत देश के तकरीबन सभी प्रदेश इस भयावह अनुभव से गुजर रहे हैं। वैज्ञानिक मौसम के इस बदलते मिजाज को जलवायु परिवर्तन के एक लक्षण की तरह देख रहे हैं, जो शायद एक सच भी है। लेकिन इसके साथ एक सच यह भी है कि इस बीच हमने पहाड़ो के गाद-गदेरों ओर नदियों-नालों के उस रूप को भी काफी बदल दिया है।
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