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साँई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक- लकी श्रीवात्री मो. नं. 9098909565
created Aug 24th 2019, 04:16 by lucky shrivatri
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कश्मीर में अनुच्छेद 370 अब इतिहास के पन्नों हवाले हो गया है। भारत का ये अभिन्न हिस्सा संवैधानिक मायनों में भी अभिन्न अंग बन गया है। लगभग तीन दशकों से अलगाववाद की आग में झुलस रही घाटी में सुकून है। कश्मीर में नई सुबह का इंतजार अब खत्म होगा। हमें सबसे पहले ये समझने की जरूरत है कि कश्मीर केवल कोई भूभाग नहीं है। ये कल्हण और केसर की सरजमीं है। सदियों से ये भारत का अंग रही है और रहेगी। अब बात करते हैं कि कश्मीर के लागों, विशेषकर घाटी के लोगों की, जिनका विश्वास जीतना ही होगा। अनुच्छेद 370 और 35 ए के खात्मे के बाद कश्मीर के लोगों में शक के बादल घुमड़ सकते है। स्वाभाविक लगता है। लेकिन इसके लिए हमें एक रोडमैप की जरूरत होगी। जिस पर कश्मीर को नया सफर तय करना होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के पीछे सरकार की मंशा बताते हुए कह चुके हैं कि स्थितियों सामान्य भी होंगी, जल्द ही विधानसभा चुनाव भी कराए जाएंगे और जम्मू और कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा फिर से बहाल भी किया जाएगा। चूंकि राज्य का विशेष दर्जा खत्म किए जाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, इसलिए यदि मान लें कि शीर्ष अदालत केंद्र सरकार के कदम को सही ठहराती है तो क्या देश के बाकी हिस्सों से जम्मू और कश्मीर का एकीकरण सहज होगा और क्या जम्मू-कश्मीर एक सामान्य क्षेत्र की तरह हो पाएगा? क्या घाटी के लोग बदलाव को स्वीकार करेंगे और नए राजनीतिक ओर आर्थिक समीकरणों के साथ खुद को समायोजित कर लेंगे।
स्वाभाविक है कि इन सवालों के जवाब केंद्र उसका प्रतिनिधि शासन ही दे सकेगा। जम्मू कश्मीर के स्थानीय लोगों, बाकी देश और दुनिया के बीच विश्वास मजबूत करने के लिए तेजी से और सबसे पहले आगे बढ़ना होगा, जमीनी कदम उठाने होगे। विकास के लिहाज से क्षेत्र के पिछडेपन को देखते हुए केंद्र को फंड के साथ विशेषज्ञता भी मुहैया करानी होगी ताकि क्षेत्र दूसरे राज्यों के साथ कदम से कदम मिला सके। सामाजिक आर्थिक योजनाएं तो पहले से ही है, बेहतर क्रियान्वयन के लिए प्रावधानों को राज्य की विशिष्ट स्थिति के अनुरूप ढाला जा सकता है। इसके अलावा उत्पादक और रोजगार सृजित करने वाले निवेश के लिए निची पूंजी को आकर्षित करने का माहौल भी बनना होगा। जब केंद्र सरकार का ये फैसला सही होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के पीछे सरकार की मंशा बताते हुए कह चुके हैं कि स्थितियों सामान्य भी होंगी, जल्द ही विधानसभा चुनाव भी कराए जाएंगे और जम्मू और कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा फिर से बहाल भी किया जाएगा। चूंकि राज्य का विशेष दर्जा खत्म किए जाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, इसलिए यदि मान लें कि शीर्ष अदालत केंद्र सरकार के कदम को सही ठहराती है तो क्या देश के बाकी हिस्सों से जम्मू और कश्मीर का एकीकरण सहज होगा और क्या जम्मू-कश्मीर एक सामान्य क्षेत्र की तरह हो पाएगा? क्या घाटी के लोग बदलाव को स्वीकार करेंगे और नए राजनीतिक ओर आर्थिक समीकरणों के साथ खुद को समायोजित कर लेंगे।
स्वाभाविक है कि इन सवालों के जवाब केंद्र उसका प्रतिनिधि शासन ही दे सकेगा। जम्मू कश्मीर के स्थानीय लोगों, बाकी देश और दुनिया के बीच विश्वास मजबूत करने के लिए तेजी से और सबसे पहले आगे बढ़ना होगा, जमीनी कदम उठाने होगे। विकास के लिहाज से क्षेत्र के पिछडेपन को देखते हुए केंद्र को फंड के साथ विशेषज्ञता भी मुहैया करानी होगी ताकि क्षेत्र दूसरे राज्यों के साथ कदम से कदम मिला सके। सामाजिक आर्थिक योजनाएं तो पहले से ही है, बेहतर क्रियान्वयन के लिए प्रावधानों को राज्य की विशिष्ट स्थिति के अनुरूप ढाला जा सकता है। इसके अलावा उत्पादक और रोजगार सृजित करने वाले निवेश के लिए निची पूंजी को आकर्षित करने का माहौल भी बनना होगा। जब केंद्र सरकार का ये फैसला सही होगा।
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