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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT_Admission_Open

created Aug 24th 2019, 09:54 by DeendayalVishwakarma


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उपनिषदिक परंपरा में अपने अस्तित्‍व के बीज ढूंढने वाला अद्वैत वेदांतशास्‍त्र जीवन के प्रति एक ऐसा दृष्टिकोण है, जो आत्‍मा और ब्रह्म के अद्वैत में विश्‍वास रखता है। इस श्रृंखला में यह प्रकृति यानि सांसारिक जगत को निरंतर परिवर्तनशील वस्‍तु के रूप में देखता है। यह सिद्धांत जीवन के स्‍वरूपों में कोई भेद नहीं करता। यह मानव, पशु या पौधे जैसे सभी जीवन रूपों को बराबर मानता है। इन सबको विशाल ब्रह्माण्‍डीय चेतना का अंश मानता है।
    आधुनिक राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक संदर्भों से अद्वैत वेदांत को संबंद्ध करते हुए पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय ने अविभाज्‍य मानवतावाद और एक विचार निकला। उन्‍होंने इसे राष्‍ट्रवाद और अंतर्राष्‍ट्रवाद के सिद्धांतों में अद्वैत की कल्‍पना को साकार करने का एक विकल्‍प माना। नस्‍ल, रंग, जाति या धर्म आदि को विभिन्‍नताओं को परे रखते हुए उन्‍होंने माना कि सभी मानव एक ही जैविक जगत के जीव हैं, जो एक समान राष्‍ट्रीय चेतना के विचारों की साझेदारी कर रहे हैं।
    औद्योगिक और तकनीकी क्रांति ने भौतिक प्रगति और विकास की पृष्‍ठभूमि तैयार की, तथा विश्‍व को खंड में बंटे बाहरी आधार पर विकसित होने एवं मूल्‍यांकन करने का पैमाना दे दिया। जबकि जीवन की अभिन्‍नता की समझ की समग्र दृष्टिकोण रखती है। उदाहरण के लिए स्‍वास्‍थ्‍य का चिकित्‍सकीय स्‍वरूप शरीर की जैविक जरूरतों से जुड़ा होता है। परन्‍तु मानव जीवन की समग्र समझ, शरीर, मन, बुद्धि आत्‍मा को लेकर चलती है। योग इसी प्रकार की समग्रता को लेकर चलता है।
    यह सत्‍य है कि विज्ञान में होने वाली आधुनिक प्रगति, जीवन के समग्र दृष्टिकोण पर ही आधारित है। आज हम बिग बैंग जैसे सिद्धांत को मानने लगे हैं। इसमें कहा गया है कि एक विस्‍फोट ने मौलिक ऊर्जा की उत्‍पत्ति की, जिससे जीवन के अनेक स्‍वरूप पैदा हुए।
    17-18वीं शताब्‍दी के यूरोप में राष्‍ट्र-राज्‍यों के उदय के साथ ही राष्‍ट्रवाद के सिद्धांत का पदार्पण हुआ। अर्थशास्‍त्र से लेकर दार्शनिकता में सरवाइवक ऑफ फिटेस्‍ट वाले सिद्धांत ने ही राज किया। अपवर्जनात्‍मक राष्‍ट्रवाद के इस रूप ने ही दो विश्‍व युद्धों और संभवत: एशिया और अफ्रीका में उपनिवेशवाद को अंजाम दिया।
    नस्‍ल, जाति, लिंग और भौगोलिकता की विभन्‍नता से परे, अंतरराष्‍ट्रीय पैमाने पर एकता का विचार ही मूलभूत है। संयुक्‍त राष्‍ट्र और आधुनिक प्रजातंत्र की धारणा से कदम ताल करता हुआ अभिन्‍नता का सिद्धांत शायद मानव अधिकारों का पहला खाका तैयार करता है।

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