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साँई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक- लकी श्रीवात्री मो. नं. 9098909565
created Sep 17th 2019, 03:59 by lucky shrivatri
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सभी जानते हैं कि आज तनाव हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है। तनाव के सकारात्मक व नकारात्मक स्वरूप से भी हम परिचित हैं, जैसे तनाव जब तब हमारी कार्यकुशलता को बढ़ाने में सहायक है, हमारे विकास में सहायक है, तब तक यह हमारे लिए सकारात्मक है और जब तनाव के कारण हमारा जीवन बुरी तरह से प्रभावित होने लगता है तो यही तनाव हमारे लिए नकारात्मक बन जाता है। व्यक्ति को सफलता मिलने से पूर्व भी तनाव होता है, लेकिन यह सकारात्मक होता है और असफल होने का भी उसे तनाव होता है जो कि नकारात्मक होता है। तनाव चाहे सकारात्मक रूप में हो या नकारात्मक स्वरूप में हम उसके प्रति क्या प्रतिक्रिया करते हैं- यह महत्वपूर्ण होता है और इसी प्रतिक्रिया के फलस्वरूप तनाव का हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ता है।
सर्वेक्षण यह बताते हैं कि हर किसी के मन में कम या ज्यादा मात्रा में कुछ न कुछ तनाव है। किसका तनाव कितना है, इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि वह अपने तनाव का सामना किस तरह करता है। ऐसा आकलन है कि देश की आठ से दस फीसदी आबादी तनाव, चिंता, अवसाद, सिजोफ्रेनिया या नशे की वजह से किसी न किसी तरह के मनोरोग से पीडित है। मनोचिकित्सकों का कहना है तनाव को जीने वाले अधिकतर लोग डॉक्टरों के पास तभी जाते हैं, जब उन्हें यह लगता है कि तनाव के कारण उनके हालात अब पूरी से बिगड़ गए हैं। जिस तरह से कोई भी व्यक्ति अपनी कार के ब्रेक के टूट जाने पर ही उसे नहीं सुधरवाता, बल्कि बीच-बीच में कुछ भी खामियां होने पर उसे सुधरवाता रहता है, इसी तरह से व्यक्ति को भी अपना मानसिक स्वास्थ्य पूरी तरह से खराब होने की स्थिति का इंतजार नहीं करना चाहिए, बल्कि किसी भी तरह का तनाव यदि मन में हैं, तो उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
तनाव हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को भी नुकसान पहुंचा सकता है, जिस कारण संक्रामक रोगों की गिरफ्त में आने का खतरा बढ़ जाता है। यह अस्थमा जैसे रोगों को भी बढ़ा सकता है। और हमें चिंता व अवसाद के लंबे दौर में भी डाल सकता है, जिससे बचने के लिए अधिकांश लोग नशे की ओर बढ़ते है। जो लोग अपने तनाव का सामना नहीं कर पाते, वे आत्महत्या भी कर लेते है। जबकि जो धैर्य के साथ सभी मुश्किलों का सामना करते हुए तनाव से रूबरू होते हैं, वे जीवन में निरंतर आगे बढ़ते है।
सर्वेक्षण यह बताते हैं कि हर किसी के मन में कम या ज्यादा मात्रा में कुछ न कुछ तनाव है। किसका तनाव कितना है, इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि वह अपने तनाव का सामना किस तरह करता है। ऐसा आकलन है कि देश की आठ से दस फीसदी आबादी तनाव, चिंता, अवसाद, सिजोफ्रेनिया या नशे की वजह से किसी न किसी तरह के मनोरोग से पीडित है। मनोचिकित्सकों का कहना है तनाव को जीने वाले अधिकतर लोग डॉक्टरों के पास तभी जाते हैं, जब उन्हें यह लगता है कि तनाव के कारण उनके हालात अब पूरी से बिगड़ गए हैं। जिस तरह से कोई भी व्यक्ति अपनी कार के ब्रेक के टूट जाने पर ही उसे नहीं सुधरवाता, बल्कि बीच-बीच में कुछ भी खामियां होने पर उसे सुधरवाता रहता है, इसी तरह से व्यक्ति को भी अपना मानसिक स्वास्थ्य पूरी तरह से खराब होने की स्थिति का इंतजार नहीं करना चाहिए, बल्कि किसी भी तरह का तनाव यदि मन में हैं, तो उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
तनाव हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को भी नुकसान पहुंचा सकता है, जिस कारण संक्रामक रोगों की गिरफ्त में आने का खतरा बढ़ जाता है। यह अस्थमा जैसे रोगों को भी बढ़ा सकता है। और हमें चिंता व अवसाद के लंबे दौर में भी डाल सकता है, जिससे बचने के लिए अधिकांश लोग नशे की ओर बढ़ते है। जो लोग अपने तनाव का सामना नहीं कर पाते, वे आत्महत्या भी कर लेते है। जबकि जो धैर्य के साथ सभी मुश्किलों का सामना करते हुए तनाव से रूबरू होते हैं, वे जीवन में निरंतर आगे बढ़ते है।
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