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created Sep 17th 2019, 11:56 by VivekSen1328209
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मोदी सरकार ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए जम्मू-कश्मीर राज्य का भारतीय गणराज्य में पूर्ण रूप से विलय कर दिया है। इस हेतु राज्य को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 को हटाने के साथ ही राज्य को दो हिस्सों में बांटकर लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया है। विरोधी दलों में से कुछ ने सरकार के इस कदम का जबरदस्त विरोध करते हुए यहां तक कहा कि केन्द्र ने कश्मीर को एक खुली जेल में तब्दील कर दिया है। सरकार के इस कदम की संगतता-असंगतता पर विचार अवश्य किया जाना चाहिए।
पहले कानूनी पक्ष की जांच की जानी चाहिए। धारा 370 का प्रावधान कभी भी स्थायी नहीं था। धारा 370(3) में स्पष्ट कहा गया है कि राष्ट्रपति को अधिकार है कि वह एक जनविज्ञाप्ति के द्वारा कभी भी इस प्रावधान को खत्म कर सकता है। इसके लिए संविधान सभा की सिफारिश अनिवार्य होगी। संविधान सभा को तो 1956 में ही भंग कर दिया गया था। इसके साथ ही यह भी तथ्य है कि संविधान सभा ने न तो धारा 370 को खत्म करने की सिफारिश की और न ही इसे स्थायी बनाने की।
कानूनी दांवपेंचों के अनुसार धारा 370 राष्ट्रपति को यह अधिकार प्रदान करती है कि वह राज्य सरकार की सहमति से आदेश दे सकते हैं। यह विषय परिग्रहण के साधन में संलिप्त नहीं है। चूंकि राष्ट्रपति ने राज्य सरकार की सहमति से यह कदम उठाया है, अत: यह वैध ठहरता है।
सत्य यह भी है कि 1956 से लेकर अब तक जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे से जुड़े प्रावधानों में ढील देने के लिए राष्ट्रपति के 40 आदेशों का उपयोग किया गया है। धारा इतनी बार संशोधित की गई है कि यह राज्य को स्वायत्तता प्रदान करने के अपने विशेष प्रारूप का महत्व वैसे ही खो चुकी है।
दूसरे, कश्मीरियों ने तो हमेशा ही दो राष्ट्र वाले सिद्धांत का विरोध किया है। तभी तो राजा हरिसिंह और भारतीय सरकार ने परिग्रहण के साधन के अंतर्गत समझौता किया था। इसका कारण एक दार्शनिक प्रेरणा रही थी। पाकिस्तान के इस्लामिक राज्य के सांप्रदायिक दृष्टिकोण के साथ कश्मीरियत का निहित अंतद्र्वंद हमेशा ही होने वाला था। विभाजन के दौरान के नेताओं को इस बात का पहले से ही अनुमान था।
कश्मीरियत का उदय सदियों वर्ष पहले की धर्मनिरपेक्षता से संबंधित है, जब वहां बौद्ध मठों और हिन्दू भक्तों का जमावड़ा हुआ करता था। यह भी कहा जाता है कि मोक्ष की प्राप्ति हेतु प्रबोधन के लिए गुरूनानक भी वहां गए थे। घाटी में इस्लाम के आने के बाद इसने वहां पनपी अन्य दार्शनिक परंपराओं को भी समान जगह दी। हजरत बल दरगाह और शंकराचार्य मंदिर इस समन्वयता का जीवित उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
दरअसल, धारा 370 और 35 ए कश्मीरियत के विरोधी हैं। ये धाराएं पुरूष और महिला, बाहरी और निवासी के बीच भेदभाव करती हैं। कुछ लोग तो इन धाराओं को जनोफोबिक या विदेशियों के प्रति घृणा उत्पन्न करने वाली भी करार देते हैं।
पहले कानूनी पक्ष की जांच की जानी चाहिए। धारा 370 का प्रावधान कभी भी स्थायी नहीं था। धारा 370(3) में स्पष्ट कहा गया है कि राष्ट्रपति को अधिकार है कि वह एक जनविज्ञाप्ति के द्वारा कभी भी इस प्रावधान को खत्म कर सकता है। इसके लिए संविधान सभा की सिफारिश अनिवार्य होगी। संविधान सभा को तो 1956 में ही भंग कर दिया गया था। इसके साथ ही यह भी तथ्य है कि संविधान सभा ने न तो धारा 370 को खत्म करने की सिफारिश की और न ही इसे स्थायी बनाने की।
कानूनी दांवपेंचों के अनुसार धारा 370 राष्ट्रपति को यह अधिकार प्रदान करती है कि वह राज्य सरकार की सहमति से आदेश दे सकते हैं। यह विषय परिग्रहण के साधन में संलिप्त नहीं है। चूंकि राष्ट्रपति ने राज्य सरकार की सहमति से यह कदम उठाया है, अत: यह वैध ठहरता है।
सत्य यह भी है कि 1956 से लेकर अब तक जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे से जुड़े प्रावधानों में ढील देने के लिए राष्ट्रपति के 40 आदेशों का उपयोग किया गया है। धारा इतनी बार संशोधित की गई है कि यह राज्य को स्वायत्तता प्रदान करने के अपने विशेष प्रारूप का महत्व वैसे ही खो चुकी है।
दूसरे, कश्मीरियों ने तो हमेशा ही दो राष्ट्र वाले सिद्धांत का विरोध किया है। तभी तो राजा हरिसिंह और भारतीय सरकार ने परिग्रहण के साधन के अंतर्गत समझौता किया था। इसका कारण एक दार्शनिक प्रेरणा रही थी। पाकिस्तान के इस्लामिक राज्य के सांप्रदायिक दृष्टिकोण के साथ कश्मीरियत का निहित अंतद्र्वंद हमेशा ही होने वाला था। विभाजन के दौरान के नेताओं को इस बात का पहले से ही अनुमान था।
कश्मीरियत का उदय सदियों वर्ष पहले की धर्मनिरपेक्षता से संबंधित है, जब वहां बौद्ध मठों और हिन्दू भक्तों का जमावड़ा हुआ करता था। यह भी कहा जाता है कि मोक्ष की प्राप्ति हेतु प्रबोधन के लिए गुरूनानक भी वहां गए थे। घाटी में इस्लाम के आने के बाद इसने वहां पनपी अन्य दार्शनिक परंपराओं को भी समान जगह दी। हजरत बल दरगाह और शंकराचार्य मंदिर इस समन्वयता का जीवित उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
दरअसल, धारा 370 और 35 ए कश्मीरियत के विरोधी हैं। ये धाराएं पुरूष और महिला, बाहरी और निवासी के बीच भेदभाव करती हैं। कुछ लोग तो इन धाराओं को जनोफोबिक या विदेशियों के प्रति घृणा उत्पन्न करने वाली भी करार देते हैं।
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