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बंसोड टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा, छिन्‍दवाड़ा मो.न.8982805777 (सीपीसीटी की सम्‍पूर्ण तैयारी की जाती है समय तीन घण्‍टे) संचालक-सचिन बंसोड

created Oct 18th 2019, 02:14 by SARITA WAXER


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लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था में सत्‍तापक्ष और प्रतिपक्ष में कड़ी प्रतिस्‍पर्धा देश के बहेतर भविष्‍य को घोतक होता हैं। दोनों पक्षों की कड़ी टक्‍कर राजनीतिक दलों को ज्‍यादा से ज्‍यादा जन प्रतिबद्ध बनाती हैं। लेकिन, इस प्रतिस्‍पर्धा में संयम की अघोषित लक्ष्‍मण रेखा हमेशा खिंची रहनी चाहिए ताकि मुकाबला स्‍वस्‍थ बना रहे। कभी-कभी राजनीतिक दल उस लक्ष्‍मण रेखा को पार कर जाते हैं। वित्‍तमंत्री निर्मला सीतारमण ने न्‍यूयॉर्क में कोल‍ंबिया विश्‍वविद्यालय के स्‍कूल ऑफ इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स को संबोधित करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की नीतियों को आज की आर्थिक बदहाली के लिए जिम्‍मेदार बताते हुए कह दिया कि उस जमाने में यदि फोन कॉल पर कर्ज नहीं बांटे गए होते तो आज बैंकों की स्थिति बेहतर होती। वर्तमान हमेशा भूत के कंधो पर सवार रहता है। देश में भाजपा का उदय भी कांग्रेस की नाकामियों का ही प्रतिफल है। बावजूद इसके यह सवाल जरूर उठता है कि क्‍या एक अंतराष्‍ट्रीय मंच पर अपना बचाव करने के लिए पूर्ववर्ती सरकार पर ठीकरा फोड़ना जरूरी था? अंतराष्‍ट्रीय मंचो पर घरेलू राजनीति में लाभ-हानि के अनुसार चर्चा करनेकी प्रवृत्ति पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ी है। और तो और, अकादमिक व्‍यक्तित्‍वभी राजनीतिक आग्रहों के साथ अपनी बात रखने को आतुर हैं। प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी और पूर्व कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी समय-समय पर घरेलू विषयों को अंतराष्‍ट्रीय मंचों पर उठाते रहे हैं। वोटिंग मशीन की विश्‍सनीयता को लेकर आम चुनाव से पहले कांग्रेस नेता कपिल सिब्‍बल ने तो एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में अच्‍छा खासा  ड्रामा प्रस्‍तुत किया था। हालांकि ऐसा करने से भारतीय व्‍यवस्‍था की बदनामी के सिवाय कुछ भी हासिल नहीं हुआ। यह नहीं माना जा सकता कि हमारे राजनेता इतने नादान हैं कि उन्‍हें देश की ऐसी बदनामी अहसास हो।  पिछले कुछ सालों  में भौगोलिक राजनीतिक परिदृश्‍य बदला है और बड़ी संख्‍या में अनिवासी भारतीयों का विदेशों में प्रभाव बढ़ा है।

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