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created Nov 18th 2019, 06:01 by DeendayalVishwakarma
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इतिहासकार विलियम मैकनील ने शक्ति के चरित्र और निष्पक्षता एवं नैतिकता के साथ उसके संबंधों की व्याख्या कुछ इस तरह की है इसकी संभावना बेहद कम दिखती है कि ताकत को संगठित करने और अमल में लाने के लिए मानव क्षमताओं का हालिया एवं संभावित विस्तार उपयोग को लेकर हिचक का स्थायी भाव रखेगा। संक्षेप में, शक्ति खुद को सशक्त बनाने के लिए शक्ति के कमजोर केंद्र बनाती है या शक्ति के विरोधी केंद्रों को प्रोत्साहित करती है। मानवजाति के संपूर्ण इतिहास में यही तथ्य प्रभावी रहा है।
यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों के यथार्थवादी मत को परिलक्षित करता है जिसमें कोई भी नैतिक आश्रय नगण्य है लेकिन यह मौजूदा भू-राजनीतिक वास्तविकता को बखूबी दर्शाता है। एक अग्रणी ताकत बनने की आकांक्षा रखने वाला भारत भी मौजूदा एवं संभावित शक्ति पर अपना दांव लगा रहा है। यह खुद से अधिक ताकतवर निकाय द्वारा निगल लिए जाने की संभावना को नकारता है। लेकिन क्या उसे शक्ति के प्रतिद्वंद्वी केंद्र के तौर पर उभरने के लिए प्रेरित किया जाएगा।
मैकनील ने यह भी बताया है कि एक स्थापित निकाय के एक आकांक्षी निकाय को ताकत का हस्तांतरण किस तरह हो सकता है। वह कहते हैं, कोई भी जनसंख्या धरती पर कहीं भी मौजूद सबसे कारगर एवं ताकतवर साधनों का उपयोग किए बगैर बाकी दुनिया को पीछे नहीं छोड़ सकती है।
यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों के यथार्थवादी मत को परिलक्षित करता है जिसमें कोई भी नैतिक आश्रय नगण्य है लेकिन यह मौजूदा भू-राजनीतिक वास्तविकता को बखूबी दर्शाता है। एक अग्रणी ताकत बनने की आकांक्षा रखने वाला भारत भी मौजूदा एवं संभावित शक्ति पर अपना दांव लगा रहा है। यह खुद से अधिक ताकतवर निकाय द्वारा निगल लिए जाने की संभावना को नकारता है। लेकिन क्या उसे शक्ति के प्रतिद्वंद्वी केंद्र के तौर पर उभरने के लिए प्रेरित किया जाएगा।
मैकनील ने यह भी बताया है कि एक स्थापित निकाय के एक आकांक्षी निकाय को ताकत का हस्तांतरण किस तरह हो सकता है। वह कहते हैं, कोई भी जनसंख्या धरती पर कहीं भी मौजूद सबसे कारगर एवं ताकतवर साधनों का उपयोग किए बगैर बाकी दुनिया को पीछे नहीं छोड़ सकती है।
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