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बुंदेलखण्ड में कई प्रतापी शासक हुए हैं। बुंदेला राज्य की आधारशिला रखने वाले चंपतराय के पुत्र छत्रसाल महान शूरवीर और प्रतापी राजा थे। छत्रसाल का जीवन मुगलों की सत्ता खिलाफ संघर्ष और बुंदेलखंड की स्वतंत्रता स्थापित करने के लिए जूझते हुए निकला। महाराजा छत्रसाल अपने जीवन के अंतिम समय तक आक्रमणों से जूझते रहे।
चंपतराय जब समय भूमि में जीवन-मरण का संघर्ष झेल रहे थे उन्हीं दिनों टीकमगढ़ जिले के लिधोरा विकासखंड के अंतर्गत ककर कचनाए ग्राम के पास स्थित विंध्य-वनों की मोर पहाड़ियों में इतिहास पुरुष छत्रसाल का जन्म हुआ। अपने पराक्रमी पिता चंपतराय की मृत्यु के समय वे मात्र 12 वर्ष के ही थे। वनभूमि की गोद में जन्में, वनदेवों की छाया में पले, वनराज से इस वीर का उद्गम ही तोप, तलवार और रक्त प्रवाह के बीच हुआ।
पांच वर्ष में ही इन्हें युद्ध कौशल की शिक्षा हेतु अपने मामा साहेबसिंह धंधेर के पास देलवारा भेज दिया गया था। माता-पिता के निधन के कुछ समय पश्चात् ही वे बड़े भाई अंगद राय के साथ देवगढ़ चले गये। बाद में अपने पिता के वचन को पूरा करने के लिए छत्रसाल ने पंवार वंश की कन्या देवकुंअर से विवाह किया। जिसने आंख खोलते ही सत्ता संपन्न दुश्मनों के कारण अपनी पारंपरिक जागीर छिनी पायी हो, निकटतम स्वजनों के विश्वासघात के कारण जिसके बहादुर मां-बाप ने आत्महत्या की हो, जिसके पास कोई सैन्य बल अथवा धनबल भी न हो, ऐसे बाहर वर्षीय बालक की मनोदशा की क्या आप कल्पना कर सकते हैं परंतु उसके पास था बुंदेली शौर्य का संस्कार, बहादुर मां-बाप का अदम्य साहस और वीर वसुंधरा का गहरा आत्मविश्वास। इसलिए वह टूटा नहीं, डूबा नहीं, आत्मघात नहीं किया वरन् एक रास्ता निकाला। उसेन अपने भाई के साथ पिता के दोस्त राजा जयसिंह के पास पहुंचकर सेना में भर्ती होकर आधुनिक सैन्य प्रशिक्षण लेना प्रारंभ कर दिया।
छत्रसाल साहित्य के प्रेमी एवं संरक्षक थे। कई प्रसिद्ध कवि उनके दरबार में रहते थे। कवि भूषण उनमें से एक थे जिन्होंने छत्रसाल दशक लिखा है।
चंपतराय जब समय भूमि में जीवन-मरण का संघर्ष झेल रहे थे उन्हीं दिनों टीकमगढ़ जिले के लिधोरा विकासखंड के अंतर्गत ककर कचनाए ग्राम के पास स्थित विंध्य-वनों की मोर पहाड़ियों में इतिहास पुरुष छत्रसाल का जन्म हुआ। अपने पराक्रमी पिता चंपतराय की मृत्यु के समय वे मात्र 12 वर्ष के ही थे। वनभूमि की गोद में जन्में, वनदेवों की छाया में पले, वनराज से इस वीर का उद्गम ही तोप, तलवार और रक्त प्रवाह के बीच हुआ।
पांच वर्ष में ही इन्हें युद्ध कौशल की शिक्षा हेतु अपने मामा साहेबसिंह धंधेर के पास देलवारा भेज दिया गया था। माता-पिता के निधन के कुछ समय पश्चात् ही वे बड़े भाई अंगद राय के साथ देवगढ़ चले गये। बाद में अपने पिता के वचन को पूरा करने के लिए छत्रसाल ने पंवार वंश की कन्या देवकुंअर से विवाह किया। जिसने आंख खोलते ही सत्ता संपन्न दुश्मनों के कारण अपनी पारंपरिक जागीर छिनी पायी हो, निकटतम स्वजनों के विश्वासघात के कारण जिसके बहादुर मां-बाप ने आत्महत्या की हो, जिसके पास कोई सैन्य बल अथवा धनबल भी न हो, ऐसे बाहर वर्षीय बालक की मनोदशा की क्या आप कल्पना कर सकते हैं परंतु उसके पास था बुंदेली शौर्य का संस्कार, बहादुर मां-बाप का अदम्य साहस और वीर वसुंधरा का गहरा आत्मविश्वास। इसलिए वह टूटा नहीं, डूबा नहीं, आत्मघात नहीं किया वरन् एक रास्ता निकाला। उसेन अपने भाई के साथ पिता के दोस्त राजा जयसिंह के पास पहुंचकर सेना में भर्ती होकर आधुनिक सैन्य प्रशिक्षण लेना प्रारंभ कर दिया।
छत्रसाल साहित्य के प्रेमी एवं संरक्षक थे। कई प्रसिद्ध कवि उनके दरबार में रहते थे। कवि भूषण उनमें से एक थे जिन्होंने छत्रसाल दशक लिखा है।
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