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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT_Admission_Open

created Dec 12th 2019, 09:41 by GuruKhare


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अब यह साफ है कि एस एन्‍थ्रोपोसीन युग में पर्यावरण सुरक्षा को सबसे ज्‍यादा नुकसान  है। यह सर्वविदित है कि यह दुनिया निर्धारित सीमाओं के भीतर रहने की अपनी क्षमता तेजी से खोती जा रही है। स्‍वास्‍थ्‍य से जुड़े स्‍थानीय संकट की खबरें हमारे इर्दगिर्द छाने लगी हैं। ऐसा पर्यावरण के हमारे कुप्रबंधन और जलवायु परिवर्तन के असर के वैश्विक अस्तित्‍ववादी संकट के कारण हो रहा है। ऐसे में हम क्‍या कर सकते हैं। हम सभी हालात बदलना चाहते हैं। हम पर्यावरण की साफ-सफाई और संरक्षण में योगदान चाहते हैं। हम शिद्दत से जरूरत महसूस किए जा रहे बदलावों का हिस्‍सा बनना चाहते हैा। हम पर्यावरण की साफ-सफाई और संरक्षण में योगदान चाहते हैं। हम शिद्दत से जरूरत महसूस किए जा रहे बदलावों का हिस्‍सा बनना चाहते है। हम जिस हवा में सांस लेते हैं वह इतनी दूषित हो चुकी है कि हमारे स्‍वास्‍थ्‍य के लिए खतरनाक है। हमारी नदियां कूड़े-कचरे और गंदे पानी से खत्‍म हो रही हैं। हमारे जंगलों पर भी खतरा मंडरा रहा है। हम जानते है कि अपना पर्यावरण बचाने के लिए काफी कुछ किया जाना है क्‍योंकि इसके बगैर हमारी धरती का वजूद ही दांव पर होगा। हम इन चीजों के बारे में जानते हैं लेकिन सवाल यह है कि किया क्‍या जा सकता है। क्‍या कुछ ऐसा है जो हम एक इंसान या स्‍कूल, काॅलेज, काॅलोनी एवं सोसाइटी के तौर पर सामूहिक रूप से कर सकते हैं। क्‍या हम भी अपना योगदान दे सकते है। अगर हां तो फिर कैसे हम ऐसा कर सकते हैा बहुत साल पहले महात्‍मा गांधी ने कहा था कि हम दुनिया में जो भी बदलाव लाना चाहते हैं, उसे पहले हमें खुद पर लागू करना चाहिए। हमें आज भी वहीं काम करने की जरूरत है। यह साफ है कि हमारी जीवनशैली ने पर्यावरण पर खासा असर डाला है। हमारी गतिविधियों और उन्‍हें अंजाम देने के तरीकों का अहम फर्क होता है। इसीलिए बदलाव की दिशा में पहला कदम यह है कि हम अपने कार्यों को लेकर जागरूक हो। मसलन, हमें पता हो कि हम कितना पानी और बिजली इस्‍तेमाल कर रहे हैं और उससे कितना अवशिष्‍ट पैदा होता है। ऐसा तभी हो सकता है जब हम अपने तौर-तरीके इस तरह बदलें कि संसाधनों का कम-से-कम इस्‍तेमाल हो और उससे अवशि‍ष्‍ट भी कम-से-कम पैदा हों। धरती पर जयादा बोझ डालना ही हमारा आदर्श होना चाहिए। हमें बदलावों को आत्‍मसात करना होगा। पानी के ही मुद्दे पर गौर करें तो एक तरु पानी का संकट बढ़ता जा रहा है तो दूसरी तरु उपलब्‍ध जल दुषित होता जा रहा है। इसका जवाब इन पंक्तियों में निहित है पहला पानी की हरेक बूंद बचाकर हमें अपने जल संसाधनों को बढ़ाना है। हम वर्षा-जल का इस तरह सचय करें कि हरेक छत ओर सतह जल संकलन के काम आए।

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