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शिक्षा टायपिंग इंस्टीट्यूट कैयर पैथालाजी छिन्दवाड़ा CPCT और Typing की सम्पूर्ण तैयारी जाती हैै पिछले 3 वर्षो का अनुभव (कम्प्यूटर,गणित रीजिनिंग सहित) संचालक:- जयंत भलावी मो0नं. 9300463575,7354777233
created Dec 13th 2019, 04:15 by jayant bhalavi
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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में अपने भाषण में दावा किया था कि ऐसे लाखों-करोड़ों लोग हैं जिन्हें इस कानून से फायदा मिलेगा. नए कानून के मुताबिक, ये सभी शरणार्थियों पर लागू होगा चाहे वो किसी भी तारीख से आए हों.यानी जिस तारीख को वह भारत में आए, तभी से उन्हें भारत का नागरिक मान लिया जाएगा. अभी सरकार की ओर से एक कटऑफ तारीख भी जारी की गई है, 31 दिसंबर 2014 से पहले आए सभी हिंदू-जैन-बौद्ध-सिख-ईसाई-पारसी शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी.मोदी सरकार के इस कानून का पूर्वोत्तर में जबरदस्त विरोध हो रहा है. असम, मेघालय समेत कई राज्यों में लोग सड़कों पर उतरे हुए हैं और लगातार बिल को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. हालांकि, सरकार ने कानून लागू करते वक्त ये भी ऐलान किया है कि मेघालय, असम, अरुणाचल, मणिपुर के कुछ क्षेत्रों में कानून लागू नहीं होगा.स्थानीय लोगों की मांग के कारण केंद्र सरकार ने यहां इनर लाइन परमिट जारी किया है, इसकी वजह से ये नियम यहां लागू नहीं होंगे. पूर्वोत्तर के राज्यों का कहना है कि अगर शरणार्थियों को यहां पर नागरिकता दी जाएगी तो उनकी अस्मिता, कल्चर पर असर पड़ेगा.इनर लाइन परमिट एक यात्रा दस्तावेज है, जिसे भारत सरकार अपने नागरिकों के लिए जारी करती है, ताकि वो किसी संरक्षित क्षेत्र में निर्धारित अवधि के लिए यात्रा कर सकें.इस कानून का विरोध पुरजोर तरीके से हो रहा है, सड़क से लेकर संसद तक सरकार पर लोग हमलावर हैं. कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियां इस कानून को संविधान का उल्लंघन कह रही हैं और भारत के मूल विचारों के खिलाफ बता रही हैं. कांग्रेस ने संसद में भी इस बिल का विरोध किया था और गिनाया था कि ये बिल आर्टिकल 14 का उल्लंघन करता है, जो कि समान नागरिकता का हल देता है.सिर्फ कांग्रेस नहीं बल्कि कई वकील, विचारकों ने भी इस बिल को कानून का उल्लंघन बताया है. कानूनी जानकारियों की मानें, तो ये बिल ना सिर्फ आर्टिकल 14, बल्कि आर्टिकल 5, आर्टिकल 21 का भी उल्लंघन करता है. इस बिल के विरोध में कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में भी लागू हो गई हैं. विपक्ष का आरोप ये भी है, जो कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ है.क्योंकि इसका असर उनकी अस्मिता पर पड़ रहा है. पूर्वोत्तर के कई छात्र संगठनों का कहना है कि बाहरी लोग अगर असम-अरुणाचल समेत अन्य राज्यों में बसेंगे, तो उनकी भाषा, अस्मिता, संस्कृति पर असर पड़ेगा और ये बड़ा नुकसान होगा.
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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में अपने भाषण में दावा किया था कि ऐसे लाखों-करोड़ों लोग हैं जिन्हें इस कानून से फायदा मिलेगा. नए कानून के मुताबिक, ये सभी शरणार्थियों पर लागू होगा चाहे वो किसी भी तारीख से आए हों.यानी जिस तारीख को वह भारत में आए, तभी से उन्हें भारत का नागरिक मान लिया जाएगा. अभी सरकार की ओर से एक कटऑफ तारीख भी जारी की गई है, 31 दिसंबर 2014 से पहले आए सभी हिंदू-जैन-बौद्ध-सिख-ईसाई-पारसी शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी.मोदी सरकार के इस कानून का पूर्वोत्तर में जबरदस्त विरोध हो रहा है. असम, मेघालय समेत कई राज्यों में लोग सड़कों पर उतरे हुए हैं और लगातार बिल को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. हालांकि, सरकार ने कानून लागू करते वक्त ये भी ऐलान किया है कि मेघालय, असम, अरुणाचल, मणिपुर के कुछ क्षेत्रों में कानून लागू नहीं होगा.स्थानीय लोगों की मांग के कारण केंद्र सरकार ने यहां इनर लाइन परमिट जारी किया है, इसकी वजह से ये नियम यहां लागू नहीं होंगे. पूर्वोत्तर के राज्यों का कहना है कि अगर शरणार्थियों को यहां पर नागरिकता दी जाएगी तो उनकी अस्मिता, कल्चर पर असर पड़ेगा.इनर लाइन परमिट एक यात्रा दस्तावेज है, जिसे भारत सरकार अपने नागरिकों के लिए जारी करती है, ताकि वो किसी संरक्षित क्षेत्र में निर्धारित अवधि के लिए यात्रा कर सकें.इस कानून का विरोध पुरजोर तरीके से हो रहा है, सड़क से लेकर संसद तक सरकार पर लोग हमलावर हैं. कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियां इस कानून को संविधान का उल्लंघन कह रही हैं और भारत के मूल विचारों के खिलाफ बता रही हैं. कांग्रेस ने संसद में भी इस बिल का विरोध किया था और गिनाया था कि ये बिल आर्टिकल 14 का उल्लंघन करता है, जो कि समान नागरिकता का हल देता है.सिर्फ कांग्रेस नहीं बल्कि कई वकील, विचारकों ने भी इस बिल को कानून का उल्लंघन बताया है. कानूनी जानकारियों की मानें, तो ये बिल ना सिर्फ आर्टिकल 14, बल्कि आर्टिकल 5, आर्टिकल 21 का भी उल्लंघन करता है. इस बिल के विरोध में कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में भी लागू हो गई हैं. विपक्ष का आरोप ये भी है, जो कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ है.क्योंकि इसका असर उनकी अस्मिता पर पड़ रहा है. पूर्वोत्तर के कई छात्र संगठनों का कहना है कि बाहरी लोग अगर असम-अरुणाचल समेत अन्य राज्यों में बसेंगे, तो उनकी भाषा, अस्मिता, संस्कृति पर असर पड़ेगा और ये बड़ा नुकसान होगा.
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