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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT_Admission_Open
created Dec 13th 2019, 06:59 by SubodhKhare1340667
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मैं एक ऐसी तस्वीर साझा कर रही हूं जो मेरे जेहन से निकल ही नहीं रही है। हम एक कमरे में कैद हैं और वहां मौजूद छोटी सी खिड़की से देख पा रहे हैा कि बाहर का मौसम बेहद खराब हो चुका है। जंगलों में आग लगी हुई है, गर्म हवाएं चल रही हैं, तेज बारिश हो रही है और तूफान आया हुआ है। यह सबकुछ पहले जताई आशंकाओं के अनुरूप है लेकिन हमारी चीखें नहीं सुनी जा रही हैं। ऐसा लग रहा है मानो यह सब कहीं और चल रहा है, मानो यह हकीकत न हो।
मुझे पता है कि यह बहुत नाटकीय प्रतीत होता है लेकिन यह तथ्य है। तेजी से बदलते मौसमी रुझानों और पृथ्वी पर बढ़ती गर्मी का असर हमारे सामने है। लेकिन हमारा ध्यान व्यापार युद्ध, ब्रेक्सिट, आव्रजन, अर्थव्यवस्था, राष्ट्रवाद, युद्ध जैसी बातों में लगा हुआ है। मानव इतिहास में जलवायु परिवर्तन शायद इससे बुरे वक्त में नहीं हो सकता था। हम इससे निपटने में असमर्थ नजर आ रहे हैं।
यही वह वक्त है जब यह स्पष्ट हो चला है कि चीजें हमारे नियंत्रण से बाहर हैं। हर वर्ष हमें कहा जाता है कि यह सबसे गर्म वर्ष है। अगले वर्ष यही कहानी दोहराई जाती है। इसके बाद एक नया रिकॉर्ड टूटता है। हालात निरंतर बिगड़ते जा रहे हैं। हम सबको यह पता है, हम इसे महसूस कर सकते हैं।
हमें यह समझने की आवश्यकता है कि अपने अस्तित्व की चुनौती से जूझ रहे लोगों के लिए इसका क्या मतलब है। बात चाहे सूखे की हो या बाढ़ की, लोगों को इनकी वजह से मजबूरन काम की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाना होता है। ये लोगों को घर से बाहर निकलने पर मजबूर करते हैं। कई बार यह अस्थायी होता है और कई बार उनका यह प्रावास स्थायी हो जाता है। लेकिन अब जलवायु परिवर्तन का खतरा मुंह बाये हमारे सामने खड़ा है।
अमिताभ घोष अपने नए उपन्यास गन आइलैंड में हमें प्रवासियों की पीढ़ियों से मिलाते हैं। जहां अतीत और वर्तमान में लोगों को नई आजीविका की तलाश में अपना घर बार छोड़कर निकलना पड़ा। प्रवासी हमेशा से बदलाव का मानवीय चेहरा रहे हैं, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। यह भी सच है कि प्रवास केवल मजबूरन नहीं किया जाता बल्कि कई बार लोग दूसरी जगह बेहतर भविष्य की उम्मीद में भी अपना घरबार छोड़ते हैं।
पूरी दुनिया आपस में इस कदर जुड़ी हुई है कि इसके कई तरह के असर हमारे सामने हैं। एक तो यह कि एक देश का कार्बन डाई ऑक्साइड पूरी दुनिया के वातावरण को प्रभावित करता है। दूसरा दुनिया भर के समाचार मोबाइल टेलीफोनी की गति से एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं। इस संदर्भ में देखें तो लोगों का एक जगह से दूसरी जगह आना जाना भी बढ़ेगा।
मुझे पता है कि यह बहुत नाटकीय प्रतीत होता है लेकिन यह तथ्य है। तेजी से बदलते मौसमी रुझानों और पृथ्वी पर बढ़ती गर्मी का असर हमारे सामने है। लेकिन हमारा ध्यान व्यापार युद्ध, ब्रेक्सिट, आव्रजन, अर्थव्यवस्था, राष्ट्रवाद, युद्ध जैसी बातों में लगा हुआ है। मानव इतिहास में जलवायु परिवर्तन शायद इससे बुरे वक्त में नहीं हो सकता था। हम इससे निपटने में असमर्थ नजर आ रहे हैं।
यही वह वक्त है जब यह स्पष्ट हो चला है कि चीजें हमारे नियंत्रण से बाहर हैं। हर वर्ष हमें कहा जाता है कि यह सबसे गर्म वर्ष है। अगले वर्ष यही कहानी दोहराई जाती है। इसके बाद एक नया रिकॉर्ड टूटता है। हालात निरंतर बिगड़ते जा रहे हैं। हम सबको यह पता है, हम इसे महसूस कर सकते हैं।
हमें यह समझने की आवश्यकता है कि अपने अस्तित्व की चुनौती से जूझ रहे लोगों के लिए इसका क्या मतलब है। बात चाहे सूखे की हो या बाढ़ की, लोगों को इनकी वजह से मजबूरन काम की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाना होता है। ये लोगों को घर से बाहर निकलने पर मजबूर करते हैं। कई बार यह अस्थायी होता है और कई बार उनका यह प्रावास स्थायी हो जाता है। लेकिन अब जलवायु परिवर्तन का खतरा मुंह बाये हमारे सामने खड़ा है।
अमिताभ घोष अपने नए उपन्यास गन आइलैंड में हमें प्रवासियों की पीढ़ियों से मिलाते हैं। जहां अतीत और वर्तमान में लोगों को नई आजीविका की तलाश में अपना घर बार छोड़कर निकलना पड़ा। प्रवासी हमेशा से बदलाव का मानवीय चेहरा रहे हैं, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। यह भी सच है कि प्रवास केवल मजबूरन नहीं किया जाता बल्कि कई बार लोग दूसरी जगह बेहतर भविष्य की उम्मीद में भी अपना घरबार छोड़ते हैं।
पूरी दुनिया आपस में इस कदर जुड़ी हुई है कि इसके कई तरह के असर हमारे सामने हैं। एक तो यह कि एक देश का कार्बन डाई ऑक्साइड पूरी दुनिया के वातावरण को प्रभावित करता है। दूसरा दुनिया भर के समाचार मोबाइल टेलीफोनी की गति से एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं। इस संदर्भ में देखें तो लोगों का एक जगह से दूसरी जगह आना जाना भी बढ़ेगा।
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