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साँई टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) सीपीसीटी न्‍यू बैंच प्रारंभ संचालक- लकी श्रीवात्री मोबाईल नम्‍बर- 9098909565

created Dec 14th 2019, 02:23 by Jyotishrivatri


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दिल्‍ली को राजधानी बनाने का ऐलान 12 दिसंबर 1911 को हुआ था। तब भारत के शासक किंग जॉर्ज पंचम ने दिल्‍ली दरवार में इसकी आधारशीला रखी थी। बाद में ब्रिटिश आर्किटेक्‍ट सर हरर्बट बेकर और सर एडविन लुटियंस ने नए शहर की योजना बनाई थी। इस योजना को पूरा करने में दो दशक लग गए। इसके बाद 13 फरवरी 1931 को आधिकारिक रूप से दिल्‍ली देश की राजधानी बनी। इतिहास कारों का मानना हैं दिल्‍ली शब्‍द फारसी के देहलीज से आया है क्‍योंकि दिल्‍ली गंगा के तराई इलाकों के लिए एक देहलीज थी। कुछ लोगों का मानना है कि दिल्‍ली का नाम तोमर राजा ढिल्‍लू के नाम पर पडा। एक अभिशाप को झूठा सिद्ध करने के लिए राजा ढिल्‍लू ने इस शहर की बुनियाद में गडी एक कील को खुदवाने की कोशिश की। इस घटना के बाद उनके राजपाट का तो अंत हो गया लेकिन मशहूर हुई एक कहावत, दिल्‍ली तो ढिल्‍ली भई, तोमर हुए मतीहीन जिससे दिल्‍ली को उसका नाम मिला। 12 दिसंबर 1911 को ब्रिटिश राज के सबसे बडे तमाशे दिल्‍ली दरबार में पहली बार किंग जॉर्ज पंचम अपनी रानी क्‍वीन मैरी के साथ मौजूद थे। उन्‍होंने अस्‍सी हजार लोगों की मौजदूगी में घोषणा की, हमें भारत की जनता को यह बातते हुए बेहद हर्ष हो रहा है कि सरकार और उसके मंत्रियों की सलाह पर देश को बेहतर ढंग से प्रशासित करने के लिए ब्रिटिश सरकार भारत की राजधानी को कलकत्‍ता से दिल्‍ली स्‍थानांतरित कर रही है। तब दिल्‍ली बहुत पिछडी थी। बॉम्‍बे, कलकत्‍ता और मद्रास जैसे महानगर हर बात में काफी आगे थे। यहां तक कि लखनऊ और हैदराबाद भी दिल्‍ली से बेहतर माने जाते थे। दिल्‍ली की महज तीन फीसदी आबादी अंग्रेजी पढ पाती थी। यही कारण है कि विदेशी भी बहुत कम आते थे। मेरठ की तुलना में भी दिल्‍ली में काफी कम विदेशी आते थे। हालात इतने खराब थे कि कोई बडा आदमी वहां पैसा लगाने को तैयार नहीं था, लेकिन भौगोलिक आकार से देश के मध्‍य में होने के कारण दिल्‍ली को राजधानी बनाने का ऐलान हुआ। दो दशक तक इसे विकसित किया गया। तब दिल्‍ली में पेट्रोल तीस पैसे लीटर था। लेकिन वाहन तेजी से चलाने पर सौ रूपए तक अर्थदंड वसूला जाता था। यह तेज गति थी 19 किमी प्रति घंटा। दिल्‍ली में बर्मा ऑइल कंपनी पेट्रोल बांटती थी। किंग जॉर्ज पंचम के उस दौर के बाद से पोस्‍ट ऑफिस से फोन कॉल करने की सुविधा मिली थी। हालांकि चुनिंदा रईस लोग ही फोन लगाते थे, लेकिन खास बात यह थी कि तब फोन कॉल्‍स घडी देखकर आते थे। बातचीत का तीसरा मिनट शुरू होने का मतलब था कि अगले 60 सेकंड में बात खत्‍म करके कॉल कट करना होगा। तीन मिनट के कॉल के चार आने यानी 25 पैसे लगते थे।   

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