Text Practice Mode
साई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैंच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created May 18th 2020, 08:59 by rajni shrivatri
2
423 words
0 completed
5
Rating visible after 3 or more votes
00:00
एक महिला एक साधु के पास जाकर बोली- बाबा, मेरा बेटा गुड बहुत खाता है। इस कारण यह अस्वस्थ रहता है। निवेदन है कि आप इसको समझाकर इसकी यह आदत छुडा दे। साधु ने कहा एक सप्ताह बाद आना। महिला अपने पुत्र के साथ एक सप्ताह बाद पहुंची। साधु ने फिर कह दिया एक सप्ताह बाद आना। इस प्रकार चार सप्ताह बीत गए। पांचवी बार जब माता-पुत्र पहुंचे, तो साधु ने पुत्र से पूछा-तुम इतना गुड क्यों खाते हो? गुड खाना छोड़ दो। पुत्र ने अगले दिन से गुड़ खाना बन्द कर दिया। माता ने जाकर साधु के प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त की और प्रश्न किया- बाबा इस बात को कहने के लिए आपने पांच सप्ताह का समय क्यों लिया। बाबा ने हंसकर उत्तर दिया मैं स्वयं गुड खाया करता था। जब तक मैं स्वयं गुड़ खाना नहीं छोड दूं, तब तक बालक से किस मुंह से कहता कि तू गुड़ खाना छोड़ दे। पांच सप्ताह में मैने गुड़ खाना छोड़ दिया था। इस कारण मेरे कथन ने बालक को प्रभाविता किया और उसका वांछित परिणाम सामने आ गया।
हम स्वयं देख सकते है कि हमारे नेताओं द्वारा नित्य उपदेशात्मक बड़े-बड़े व्याख्यान दिए जाते है, परन्तु उनका कोई प्रभाव नही पड़ता है, क्योंकि वक्ता की वाणी के पीछे नैतिक बल नहीं होता है। इसके विपरीत ये ही बातें जब महात्मा गांधी कहते थे तो हजारों व्यक्ति उनकी बात मानकर सर्वस्व बलिदान करने को तैयार हो जाया करते थे। महात्मा जी वही कहते थे, जो वह करते थे। कथनानुसार कार्य करने से व्यक्ति की वाणी में जिस आत्मबल की सृष्टि होती है उसके द्वारा वाणी में बल एवं प्रभावशीलता का समावेश हो जाता है। जो लोग अच्छी-अच्छी बातें करते है और तदानुसार आचरण नहीं करते है। उनके कथन की उपेक्षा लोग यह कहकर कर दिया करते है कि पहले आप खुद करो।
कथनी और करनी के मध्य सामंजस्य का अभाव संकल्प शक्ति को दुर्बल बना देता है, फलत: व्यक्ति के नैतिक बल एवं आत्मविश्वास का क्षरण होता है और वह केवल वाकसर बनकर रह जाता है। ऐसे व्यक्ति सेमल के फूल की भांति आकर्षक तो हो सकते है, परन्तु वे सर्वथा सारहीन है वे समाज के किसी काम के नहीं होते।
वर्तमान काल में सब लोग यह कहते हुए सुने जाते है कि आजकल सच्चाई के दर्शन दुर्लभ हो गए है। झूठ का बोलवाला है, चारित्रिक पतन हो गया है आदि। विचार करने पर सहज ही इन समस्त विषमताओं एवं विसंगतियों का कारण समझ में आ जाता है। प्रत्येक व्यक्ति दूसरों से सत्य की आशा करता है और स्वयं सत्य नहीं बोलता है।
हम स्वयं देख सकते है कि हमारे नेताओं द्वारा नित्य उपदेशात्मक बड़े-बड़े व्याख्यान दिए जाते है, परन्तु उनका कोई प्रभाव नही पड़ता है, क्योंकि वक्ता की वाणी के पीछे नैतिक बल नहीं होता है। इसके विपरीत ये ही बातें जब महात्मा गांधी कहते थे तो हजारों व्यक्ति उनकी बात मानकर सर्वस्व बलिदान करने को तैयार हो जाया करते थे। महात्मा जी वही कहते थे, जो वह करते थे। कथनानुसार कार्य करने से व्यक्ति की वाणी में जिस आत्मबल की सृष्टि होती है उसके द्वारा वाणी में बल एवं प्रभावशीलता का समावेश हो जाता है। जो लोग अच्छी-अच्छी बातें करते है और तदानुसार आचरण नहीं करते है। उनके कथन की उपेक्षा लोग यह कहकर कर दिया करते है कि पहले आप खुद करो।
कथनी और करनी के मध्य सामंजस्य का अभाव संकल्प शक्ति को दुर्बल बना देता है, फलत: व्यक्ति के नैतिक बल एवं आत्मविश्वास का क्षरण होता है और वह केवल वाकसर बनकर रह जाता है। ऐसे व्यक्ति सेमल के फूल की भांति आकर्षक तो हो सकते है, परन्तु वे सर्वथा सारहीन है वे समाज के किसी काम के नहीं होते।
वर्तमान काल में सब लोग यह कहते हुए सुने जाते है कि आजकल सच्चाई के दर्शन दुर्लभ हो गए है। झूठ का बोलवाला है, चारित्रिक पतन हो गया है आदि। विचार करने पर सहज ही इन समस्त विषमताओं एवं विसंगतियों का कारण समझ में आ जाता है। प्रत्येक व्यक्ति दूसरों से सत्य की आशा करता है और स्वयं सत्य नहीं बोलता है।
saving score / loading statistics ...