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सॉंई टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

created May 25th 2020, 15:10 by Shankar D.


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कई बार हम अपने जीवन मे दूसरो को सही तरीके से समझे बिना उनके बारे मे निर्णय लेते हैं, और अपने रिश्‍ते को खराब करने लगते हैं किसी भी रिश्‍ते को अच्‍छे से समझने के लिए हमें थोड़ा समय जरूर देना चाहिए। कहते हैं कि किसी भी रिश्‍ते की डोर तब कमजोर हो जाती है, जब इंसान रिश्‍ते मे उठने वाले सवालो के जवाब खुद ही बनाने लग जाता है।  
एक बार एक 4 साल की छोटी बच्‍ची और उसकी मां एक गार्डेन में टहल रहे थे।
 बच्‍ची के हाथो में दो सेब थे। बच्‍ची के पास जाकर पूछा, क्‍या तुम मुझे इन दो सेबो में से सेब दोगी।  
मां की ये बात सुनकर बच्‍ची थोड़े देर के लिए शांत हो गई। फिर उसने जल्‍दी से पहले तो एक सेब का एक टूकड़ा अपने दांतो से काट लिया और फिर दूसरे सेब का एक टूकड़ा भी अपने दांतो से काट लिया।
बच्‍ची को ऐसा करते देख बच्‍ची की मां थोड़ी मायूस सी हो गई।
उसे लगा कि उसकी बेटी में शेयर करके खाने की आदत ही नही है, जब वो मुझे अपनी चीज नहीं देना चाह रही है तो फिर दूसरों को क्‍या देगी।
बच्‍ची की मां मायूस होकर भी मुस्‍करा रही थी, ताकि बच्‍ची को बूरा ना लगे।
तभी अचानक बच्‍ची ने उन दो सेबो में से एक सेब अपनी मां की ओर बढ़ाते हुए कहा कि मम्‍मी, आप ये वाला सेब खाओ, क्‍योंकि ये ज्‍यादा मीठा है।
बच्‍ची की ये बात सुनकर उसकी मां अचम्‍भे में पड़ गई। वो सोचने लगी कि अभी क्षणभर पहले वो अपनी बेटी के लिए कितना बुरा सोच रही थी, कि उसमें शेयर कर के खाने की आदत ही नही है। लेकिन ऐसा नहीं है, उसकी बेटी तो अपनी मां के लिए बहुत ही ज्‍यादा केयरिंग है। तभी तो उसने खुद खा कर फिर ज्‍यादा मीठे वाला सेब अपनी मां को खाने के लिए दिया।
इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि अक्‍सर हम जल्‍दबाजी में दूसरों के प्रति जैसी अवधारणा बना लेते है, वैसा होता नही है।
कई बार लोग हमारे सोचने के बिल्‍कुल विपरीत होते है। इसलिए हमें कभी भी जल्‍दबाजी में आकर किसी के लिए कोई धारणा नहीं बनानी चाहिए, क्‍योंकि कभी-कभी जाे दिखाई देता है वो सच्‍चाई नहीं होती।  
 
 

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