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साँई टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Jul 10th 2020, 09:52 by lovelesh shrivatri


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आक्रमण उतना हानिकारक नहीं जितना उसका आतंक हिंसा उतनी विघातक नहीं होता, जितनी भय ग्रस्‍तता। यदि साहस का सम्‍बल साथ लेकर चला जाय तो वह जटिल स्थिति भी सामान्‍य जैसी बन जाती है, जिसकी कि चर्चा सुनते ही डरपोक मनुष्‍यों के रोंगटे खडे हो जाते हैं। आदिवासी, वनवासी घने जंगलों में एक-एक झोंपड़ी अलग-अलग बना कर रहते हैं। उन जंगलों हिस्‍त्र व्‍यार्घ भरे होते हैं। किन्‍तु इन वनवासियों पर उनका कोई आतंक नहीं होता रात को गहरी नींद सोते हैं। दिन में आहार की तालाश के लिए उन्‍हीं झाडियों में ढूंढते रहते है, जिनमें किये हिंस्‍त्र पशुशयन करते हैं। जबकि उनके परिवार में मुद्दतों वाद ऐसी घटनाएं घटित होती हैं, जिनमें किसी व्‍याघ्र ने आदिवासी की जान ली हो। अफ्रीका के रायल नेशनल पार्क, नेशनल पार्क, लकमनआरने पार्क, क्कीन एलजावेथ नेशलन पार्क जैसे सुविस्‍तृत वन विकार बनाये गये है। जिन्‍हें देखने के लिए दुनिया भर के लोग जाते हैं। इनमें वन्‍य पशु स्‍वच्‍छन्‍दता और सुविधापूर्वक घूमने और अपना प्राकृतिक जीवन जीते है। इनमें सिंहो की संख्‍या भी काफी है। स्‍वच्‍छन्‍द घूमते हैं, साथ ही जहां वे रहते है, वहीं जेबरा, जिराफ, हिरन आदि भी निर्भयतापूर्वक विचरण करते हैं। वे सिंहों को देखकर सतर्क तो हो जाते हैं पर तो भागते हैं और चरना छोड़ते हैं। मिल जुलकर आक्रमण का मुकाबला करते हैं और कोई चपेट में भी जाये तो मौत और जिन्‍दगी के मिले-जुले क्रम के बीच निर्भयतापूर्वक रहते हुए उन्‍हें कोई संकोच नहीं होता। अफ्रीका मसार्क जाति के वनवासी प्राय उन्‍हीं क्षेत्रों में रहते है, जिनमें सिंहों का बाहुल्‍य है। केवल वे स्‍वयं रहते हैं वरन अपने पालतू पशूओं को भी रखते हें। भूखे और भरे पेट सिंहों की स्थिति को वे भली प्रकार जानते हैं और तदनुसार अपनी सुरक्षात्‍मक व्‍यस्‍था को भी ठीक कर लेते हैं। मौत और जिन्‍दगी ने जिस तरह आपस में समझौता किया हुआ है। उसी तरह वनवासी और हिंस्‍त्र पशु भी अपने ढेर से अपना समय गुजारते हैं। भय और आतंक को वेताक पर उठाकर रख देते हैं। सरकस साहसी प्रशिक्षक, किस प्रकार जानवरों को घाते ओर उनसे तरह-तरह के खेल कराते है यह सभी को विदित हैं। हिंस्‍त्र पशुओं को पालने और उन्‍हें सामान्‍य पशुओं की तरह रहने के लिए अभ्‍यस्‍त करने में अधिक सफलता मिलती जा रही हैं। ऐसे एक नहीं अनेक प्रयास सामने आते रहते हैं, जिनमें सिद्ध होता है कि हिंसात्‍मक प्रकृति को बदलकर उसे सौम्‍य स्‍तर का बनाया जा सकता है। अहमदाबाद के प्राणी संग्रहालय की अफसर ज्‍योति वेन मेहता ने व्‍यक्तिगत रूप से आक्रमणकारी पशुओं में दिलचस्‍पी ली है और उन्‍हें अधिक मृदुल, वफादार एवं सहयोगी बनाने में सफलता प्राप्‍त की है। उनका कहना है, आत्‍म-विश्‍वास, निर्भरता, प्रेम एवं सहानुभूति की समुचित मात्रा यदि अपने पास हो तो हिंस्‍त्र जन्‍तुओं को आसानी से मृदल एवं वफादार बनाया जा सकता है। हमें देर-सबेर में इस निष्‍कर्ष पर पहुंचना ही होगा कि अनगढक्रूरता को सदाशयतापूर्ण सत्‍प्रयत्रों से बदला और सुधारा जा सकता है। इसमें कितना श्रम और समय लगेगा, कितने साहस और धैर्य  का परिचय देना पडेगा, यह बात दूसरी हैं।  

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