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बंसोड टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा, छिन्दवाड़ा मो.न.8982805777 सीपीसीटी न्यू बैच प्रांरभ
created Nov 26th 2020, 12:52 by sachinbansod1609336
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समाज को देखकर बहुत चिंता होती थी, लोग किधर जा रहे हैं। अच्छाइयों का उपदेश सुनते हैं, लेकिन बुराई की ओर बढ़े चले जाते हैं। सब कुछ समझते हैं, लेकिन नासमझ बने रहते हैं। कितना मुश्किल है, समाज को समझा-बुझाकर रास्ते पर रखना। अपने आनंद की बात आती है, तो लोग नियम-कायदों की ओर से मुंह फेर लेते हैं। क्या दो कान इसीलिए हैं कि एक से ग्रहण करो और दूसरे से बाहर निकाल दो? वह ऐसा दौर था, जब लोगों के पास पैसा आने लगा था, शिल्प क्रांति के साये में नए समाज की रचना होने लगी थी। ऐसे समय में समाज को सही राह पर रखने की चुनौती उस दौर के अच्छे लोगों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और धर्म उपदेशकों पर थी। कई बुराइयां समाज में जडे़ं जमाने लगी थीं, लेकिन उनमें से एक बड़ी बुराई थी शराबखोरी। आज से करीब 200 साल पहले ही समाज के प्रति चिंतित लोगों ने शराब-विरोधी अभियान शुरू कर दिया था। लकड़ी का काम करने वाले थॉमस भी 25 की उम्र में नशा विरोधी आंदोलन में शामिल हो गए थे। अपने इलाके में वह नशाखोरी के खिलाफ रैली निकालते थे, बैठक करते थे, सभाएं करते थे। लोगों को जुटाना तब आसान नहीं था। सभा के लिए दूर-दूर जाना पड़ता था, गाडि़यों का दौर नहीं था। रेल शुरू हो गई थी, लेकिन अभी इलाके में नहीं आई थी। ऐसे में, थॉमस को कई-कई किलोमीटर दूर सभा के लिए पैदल जाना पड़ता था। इससे काम में भी नुकसान होता था। एक दिन हार्बरो मार्केट से लीसेस्टर जाना था, जहां नशा विरोधी सभा थी। सिवाय पैदल जाने के कोई दूसरा उपाय न था। थॉमस ने लोगों को साथ लेकर चलना शुरू किया। करीब 20 किलोमीटर दूर चलकर सभा वाली जगह पर पहुंचना था और फिर लौटते हुए भी उतना ही सफर तय करना था। लोग चलते जाते थे, रास्ता खत्म नहीं होता था। रास्ते में भूख लग आती थी, तो लोगों की न केवल जेब ढीली होती थी, लोग आगे के दिनों के लिए भी थक जाते थे। लोग कुछ बोलते तो नहीं थे, लेकिन थॉमस को एहसास हो जाता था कि लोग मन में तकलीफ लिए साथ जा रहे हैं। यह भी सोचते हुए चल रहे हैं कि क्या जरूरी है इतनी दूर पैदल चलना? कोई फायदा नहीं, बस एक सभा है, शामिल होकर लौट आना है। तन-मन-धन सब अपना ही खर्च होना है और साथ में समय भी। थॉमस सोचते जा रहे थे कि समाजसेवा भी कितनी मुश्किल है। मैं तो चल रहा हूं, लेकिन इस बार जा रहे लोग, शायद अगली बार जाना न चाहें, हर बार ऐसा ही होता है।
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