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साँई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Nov 26th 2020, 15:47 by lovelesh shrivatri
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एक पर्वत पर शिवजी का एक सुन्दर मंदिर था। वहां बहुत से लोग शिवजी की पूजा के लिए आते थे। इनमें दो भक्त थे- एक ब्राह्मण और दूसरा भील। ब्राह्मण प्रतिदिन शिवजी का अभिषेक करता, उन पर फूल पक्तियां चढ़ाता, गूगल जलाता और चन्दन का लेप करता। भील के पास ये सब वस्तुए न थी इसलिए वह बेचारा हाथी के मद-जल से शिवाजी का अभिषेक करता, उन पर जंगल की फूल पत्तियां चढ़ाता और भक्ति भाव से उनके सामने नृत्य करा।
एक दिन ब्राह्मण जब मंदिर में गया तो उसने देखा कि शिवजी भील से वार्तालाप कर रहे है। ब्राह्मण को यह अच्छा न लगा। उसने सोचा- में ब्राह्मण हूं, भांति-भांति के बहुमूल्य पदार्थो से भगवान की पूजा करता हूं, फिर भी भगवान मुझे छोड़कर इस भील से वार्तालाप करते हैं। उसने शिवजी से पूछा भगवान क्या आप मुझसे असंतुष्ट है? में ऊंचे कूल में पैदा हुआ हूं तथा बहुमूल्य पदार्थो से आपकी पूजा करता हूं जब की यह भील निकृष्ट और अपवित्र पदार्थो से आपकी उपासना करता है, फिर भी आप इसे चाहते है। शिवजी ने उत्तर दिया- ब्राह्मण तुम ठीक कहते हो, परन्तु भील का जितना स्नेह मुझ पर है उतना तुम्हारा नहीं।
एक दिन शिवजी ने अपनी एक आंख फोड़ ली। ब्राह्मण नियत समय पर पूजा करने आया। उसने देखा शिवजी की एक आंख नहीं है। पूजा करके वह अपने घर लौट आया। उसके बाद भील आया। जब उसने देखा की शिवजी की एक आंख नहीं है तो उसने झट से अपनी आंख निकालकर उनको लगा दी। दूसरे दिन ब्राह्मण फिर उपासना करने आया। शिवजी की दोनों आंखे देखकर उसे अत्यंत आश्चर्य हुआ। शिवजी ने कहा- ब्राह्मण इस आंख को गौर से देखो, ये उस भील की आंख है जो उसने मुझे प्रेमपूर्वक समर्पित की है। तुमने तो ऐसा सोचा भी नहीं। इसलिए में कहता हूं वह भील ही मेरा सच्चा भक्त है। शिव की कृपा से भील की आंख भी ठीक हो गई और उसके दिव्य चक्षु भी खुल गए।
एक दिन ब्राह्मण जब मंदिर में गया तो उसने देखा कि शिवजी भील से वार्तालाप कर रहे है। ब्राह्मण को यह अच्छा न लगा। उसने सोचा- में ब्राह्मण हूं, भांति-भांति के बहुमूल्य पदार्थो से भगवान की पूजा करता हूं, फिर भी भगवान मुझे छोड़कर इस भील से वार्तालाप करते हैं। उसने शिवजी से पूछा भगवान क्या आप मुझसे असंतुष्ट है? में ऊंचे कूल में पैदा हुआ हूं तथा बहुमूल्य पदार्थो से आपकी पूजा करता हूं जब की यह भील निकृष्ट और अपवित्र पदार्थो से आपकी उपासना करता है, फिर भी आप इसे चाहते है। शिवजी ने उत्तर दिया- ब्राह्मण तुम ठीक कहते हो, परन्तु भील का जितना स्नेह मुझ पर है उतना तुम्हारा नहीं।
एक दिन शिवजी ने अपनी एक आंख फोड़ ली। ब्राह्मण नियत समय पर पूजा करने आया। उसने देखा शिवजी की एक आंख नहीं है। पूजा करके वह अपने घर लौट आया। उसके बाद भील आया। जब उसने देखा की शिवजी की एक आंख नहीं है तो उसने झट से अपनी आंख निकालकर उनको लगा दी। दूसरे दिन ब्राह्मण फिर उपासना करने आया। शिवजी की दोनों आंखे देखकर उसे अत्यंत आश्चर्य हुआ। शिवजी ने कहा- ब्राह्मण इस आंख को गौर से देखो, ये उस भील की आंख है जो उसने मुझे प्रेमपूर्वक समर्पित की है। तुमने तो ऐसा सोचा भी नहीं। इसलिए में कहता हूं वह भील ही मेरा सच्चा भक्त है। शिव की कृपा से भील की आंख भी ठीक हो गई और उसके दिव्य चक्षु भी खुल गए।
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