eng
competition

Text Practice Mode

बंसोड टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट शॉप नं. 42 आनंद हॉस्टिपटल के सामने, संचालक- सचिन बंसोड मो.नं.

created Nov 27th 2020, 02:03 by shilpa ghorke


1


Rating

336 words
75 completed
00:00
15 थिंग्‍स यू शुल्‍ड गीव अप टू बी हैपी नामक चर्चित किताब की लेखिका ल्‍यूमिनिटा डी. सेवियुक कहती हैं कि हम जीवन में कई ऐसे लोगों से मिलते हैं, जो हमें बताते हैं कि हमें अपने में कुछ बदलाव करने चाहिए। ज्‍यादातर लोगों को इस तरह के सुझाव या दखलअंदाजी अखरती है। इनकी वजह से हम खुद के प्रति रक्षात्‍मक हो जाते हैं और ऐसा व्‍यवहार करने लगते हैं, जैसे हम कुछ गलत काम कर रहे हों और हमें अपना रवैया या तौर-तरीका सुधारने की बहुत आवश्‍यकता है। यहां पर यह कहना सही नहीं होगा कि दूसरों के नजरिये या सुझाव में सत्‍य की मौजूदगी बिल्‍कुल नहीं होती। पर, दूसरों के द्वारा अपना विश्‍लेषण किए जाने पर कैसा लगता है, यह जानना भी जरूरी है। एक क्षण के लिए सोचें कि हम जीवन को लेकर अलग तरीके से व्‍यवहार करते हैं, हमारी शुरुआत अलग होती है और हमारे जीवन के अनुभव भी अलग ही होते हैं। लोगों को बदलाव की सलाह देना आजकल का चलन बनता जा रहा है। जरूरत से ज्‍यादा भावनाएं दर्शाने पर आप पर ठप्‍पा लग सकता है, ज्‍यादा गुस्‍सा करने पर गुस्‍सैल का ठप्‍पा, ज्‍यादा हंसमुख होने पर जोकर या हंसोड़ का ठप्‍पा। और मेरे मामले में दुखी व्‍यक्ति का ठप्‍पा।  
खुद को बदलना रातोंरात संभव नहीं होता, ना तो यह नए हेयर स्‍टाइल से संभव है और ही वजन घटाने से या मस्‍तमौला दिखने से। बेशक इन बातों से हमें अच्‍छा महसूस हो सकता है, लेकिन हमारी आदतें और जीवनशैली वही रहेंगी और रह-रह कर तब तक उभर कर सामने आती रहेंगी, जब तक हम उन पर पूरी तरह से काबू नहीं पा लेते। दूसरे हमें स्‍वीकार करें, इस दिशा में प्रयास करते हुए कई बार हम यही नहीं समझ पाते कि ऐसा करके हम तनाव में रहे हैं या राहत महसूस करते हैं? हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि अपनी बेहतरी के लिए कोई प्रयास ही नहीं करें। हम जिस तरह से अनूठे हैं, वह एक तरह से ईश्‍वर का हमें दिया उपहार है। इसे भी संजोएं।  
 

saving score / loading statistics ...