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सॉंई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

created Feb 25th 2021, 06:03 by lovelesh shrivatri


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यद्यपि मनुष्‍य परमात्‍मा का ही अंश है, तथापि जीवन की श्रेष्‍ठता-शुभता और सामर्थ्‍य सत्‍संग स्‍वाध्‍याय से ही उजागर होती है। अत: आत्‍मबोध के लिए प्रयत्‍नशील रहें। ज्ञान दो प्रकार का होता है। एक स्‍वत: स्‍फूर्त ज्ञान, जो आंतरिक रूप से उद्भूत होता है। दूसरा ज्ञान बाहृा रूप से प्राप्‍त होता है। इस बाहृा रूप से प्राप्‍त ज्ञान का मुख्‍य साधन है- स्‍वाध्‍याय और सत्‍यंग। जो जितना स्‍वाध्‍याय करता है, उसे उतने ही अधिक ज्ञान की प्राप्ति होती है। सत्‍संग से ज्ञान का परिमार्जन होता है। स्‍वाध्‍याय और सत्‍संग से ज्ञान की वृद्धि होती है। ज्ञान का लाभ आत्‍म विकास में होता है। इससे व्‍यक्ति, परिस्थिति और परिवेश को परखने क्षमता का विकास होता है। अच्‍छे और बुरे की पहचान की पहचान की क्षमता बढ़ती है। इससे धर्म और अधर्म का बोध होता है, तन और मन का अंतर पता चलता है, अपने और पराए का भेद समाप्‍त होता है। स्‍वाध्‍याय और सत्‍संग से सूक्ष्‍म के अंदर झांकने का और विशाल की ओर बढ़ने का अवसर मिलता है। ऐसी स्थिति आती है कि पूरी धरती अपना परिवार लगने लगती है। इसलिए शुद्ध, पवित्र और सुखी जीवन जीने के लिए सत्‍संग और स्‍वाध्‍याय दोनों आधार स्‍तंभ है। सत्‍संग से ही मनुष्‍य के अंदर स्‍वाध्‍याय की भावना जागती है। सवाल यह है कि सत्‍यंग क्‍या है? इस संसार में तीन पदार्थ है ईश्‍वर, जीव और प्रकृति-सत। इन तीनों के बारे में जहां अच्‍छी तरह से बताया जाए, उसे सत्‍संग कहते है। श्रेष्‍ठ और सात्विक जनों का संग करना, उत्तम पुस्‍तको का अध्‍ययन करना, नित्‍य पवित्र और धार्मिक वातावरण का संग करना, यह सब सत्‍संग के अंतर्गत आता है। सत्‍संग हमारे जीवन के लिए उतना ही आवश्‍यक है, जितना कि शरीर के लिए भोजन। भोजनादि से हम शरीर की आवश्‍यकताओं की पूर्ति कर लेते है, किंतु आत्‍मा जो इस शरीर की मालिक है, उसकी संतुष्टि के लिए कुछ नहीं करते। आत्‍मा का भोजन सत्‍संग, स्‍वाध्‍याय और संध्‍योपासना है।  

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