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created Sep 20th 2021, 04:59 by sachin bansod


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केंद्रीय जांच ब्‍यूरो को लेकर राज्‍यों और खासकर गैर भाजपा शासित राज्‍यों के रवैये पर केंद्र सरकार का असहाय महसूस करना स्‍वाभाविक है, लेकिन उसकी ओर से अपनी विवशता प्रकट करना समस्‍या का हल नहीं है। केंद्र सरकार को उन कारणों पर गौर करना होगा, जिनके चलते एक के बाद एक राज्‍य सरकारें सीबीआइ को अपने यहां के मामलों की जांच करने से रोक रही हैं। यह ठीक नहीं कि ऐसे राज्‍यों की संख्‍या बढ़ती जा रही है जो सीबीआइ को अपने यहां प्रवेश करने और किसी मामले की जांच करने की अनुमति नहीं दे रहे हैं। ज्‍यादातर राज्‍य सरकारें यह कहकर सीबीआइ को बिना अनुमति अपने यहां प्रवेश पर पाबंदी लगा रही हैं कि उसका दुरुपयोग भी होता है और राजनीतिक इस्‍तेमाल भी। आम तौर पर ऐसे आरोपों पर केंद्र सरकार का यह तर्क होता है कि सीबीआइ एक स्‍वायत्‍त जांच एजेंसी है और उसके काम में उसका कोई राजनीतिक दखल नहीं होता, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इस जांच एजेंसी को सुप्रीम कोर्ट ने पिंजरे में बंद तोता करार दिया था। इसके अलावा यह भी एक तथ्‍य है कि अतीत मे इस एजेंसी के कामकाज में राजनीतिक दखल होता रहा है। कई बार तो यह दखल नजर भी आया है। इसके चलते सीबीआइ की  प्रतिष्‍ठा पर आंच आई है और उसकी वैसी विश्‍वसनीयता नहीं कायम हो सकी जैसी होनी चाहिए।
विभिन्‍न मामलों की जांच में सीबीआइ का रिकार्ड भी कोई बहुत अच्‍छा नहीं है और शायद इसी कारण पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह उसके कामकाज की समीक्षा करेगा। पता नहीं ऐसा कब होगा और उससे हालात सुधरेंगे या नहीं। उचित यह होगा कि केंद्र सरकार यह महसूस करे कि एक बड़ी खामी सीबीआइ के गठन के तरीके में है। इस एजेंसी का गठन दिल्‍ली स्‍पेशल पुलिस एस्‍टेब्लिशमेंट एक्‍ट के तहत एक प्रशासनिक आदेश से किया गया था। इस विसंगति को दूर किया जाना चाहिए।
 

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