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सॉंई कम्‍प्‍युटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

created Jan 18th 2022, 03:25 by lucky shrivatri


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संविधान द्वारा भारतीय नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किये गए है जो कि अच्‍छे जीवन जीने के लिए परम आवश्‍यक है। ये मौलिक अधिकार भारतीय संविधान में निहित किये गए है। आपको बता दें कि इन मौलिक अधिकारों की रक्षा सर्वोच्‍च कानून के द्वारा की जाती है, जबकि सामान्‍य अधिकारों की रक्षा सामान्‍य कानून के द्वारा की जाती है। यहां यह भी जानने योग्‍य बात है कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता।  
संविधान के भाग-3 में अनुच्‍छेद 12-35 के बीच मौलिक अधिकार का प्रावधान किया गया हैं, मौलिक अधिकारों की प्रकृति नकारात्‍मक है ये राज्‍य राष्‍ट्र पर निषेध अधिरोपित करते हैं, रोकते हैं, जिससे नागरिकों की स्‍वतंत्रता सुनिश्चित होती है मौलिक अधिकार दो प्रकार के है- कुछ केवल नागरिकों को प्रदत्त अधिकार और कुछ व्‍यक्ति को प्रदत्त अधिकार।  
अनुच्‍छेद 21, भाग- (12-35) के बीच में एक मौलिक अधिकार है जिसमें जीवन और स्‍वतंत्रता का मौलिक अधिकार सुनिश्चित किया गया है।  
स्‍वतंत्रता का अधिकार सभी अधिकारों में सर्वोच्‍च स्‍थान रखता है क्‍योंकि स्‍वन्‍त्रता के बिना व्‍यक्तित्‍व का विकास नहीं हो सकता है। लेकिन यहां यह ध्‍यान देने वाली बात है कि कोई भी अधिकार आत्‍यंतिक नहीं हो सकता है क्‍योंकि व्‍यक्तिगत स्‍वतंत्रता का अस्तित्‍व एक सुव्‍यवस्थित समाज में ही संभव है इसीलिए व्‍यक्ति के अधिकारों पर यथा संभव रोक भी आवश्‍यक होती है जिससे दूसरों के अधिकारों का हनन ना हो। इसी कारण कि प्राण और दैहिक स्‍वतंत्रता के अधिकार को विधि द्वारा स्‍थापित प्रक्रिया के अधीन रखा गया है। ये अकेला अनुच्‍छेद ही सभी मौलिक अधिकारों को समाहित किए है। माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा समय-समय पर अलग मामलों में निर्वचन द्वारा बहुत से अधिकारों को अनुच्‍छेद 21 में अंतर्निहित माना है।  

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