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SHREE BAGESHWAR ACADEMY TIKAMGARH (M.P.) Contact- 8103237478

created May 12th 2022, 03:16 by Shreebageshwar Academy


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एक रौनक नाम का व्‍यक्ति था। जैसा नाम वैसा रूप, अकल में भी उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता था। एक दिन उसने घर के बाहर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा यहां अकल बिकती है। उसका घर बीच बाजार में था। हर आने-जाने वाला वहां से जरूर गुजरता था। हर कोई बोर्ड देखता, हंसना और आगे बढ़ जाता। रौनक को विश्‍वास था कि उसकी दूकान एक दिन जरूर चलेगी। एक दिन एक अमीर महाजन का बेटा वहां से गुजरा, दुकान देखकर उससे रहा नहीं गया। उसने अंदर जाकर रौनक से पूछा यहां कैसी अकल मिलती है और उसकी कीमत क्‍या है। उसने कहा यहा इस बात पर निर्भर करता है कि तुम इस पर कितना पैसा खर्च कर सकते हो।  
    गंपू ने जेब से एक रुपया निकालकर पूछा इस रुपए के बदले कौन सी अकल मिलेगी और कितनी। रौनक ने कहा भई एक रुपए की अकल से तुम एक लाख रुपया बचा सकते हो। गंपू ने एक रुपया दे दिया। बदले में रौनक ने एक कागज पर लिखकर दिया जहां दो आदमी लड़-झगड़ रहे हो वहां खड़े रहना बेबकूफी है। गंपू घर पहुंचा और उसने अपने पिता को कागज दिखाया। कंजूस पिता ने कागज पढ़ा तो वह गुस्‍से से आगबबूला हो गया। गंपू को कोसते हुए वह पहुंचा अकल की दुकान। कागज की पर्ची रौनक के सामने फेंकते हुए चिल्‍लाया वह रुपया लौटा दो, जो मेरे बेटे ने तुम्‍हें दिया था। रौनक ने कहा ठीक है, लौटा देता हूं। लेकिन शर्त यह है कि तुम्‍हारा बेटा मेरी सलाह पर कभी अमल नहीं करेगा। कंजूस महाजन के वादा करने पर रौनक ने रुपया वापस कर दिया। उस नगर के राजा की दो रानियां थीं। एक दिन राजा अपनी रानियों के साथ जौहरी बाजार से गुजरा। दोनों रानियाें को हीरों का एक हार पसंद गया। दोनों ने सोचा महल पहुंचकर अपनी दासी को भेजकर हार मंगवा लेंगी। संयोग से दोनों दासियां एक ही समय पर हार लेने पहुंचीं।  

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