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SHREE BAGESHWAR ACADEMY TIKAMGARH (M.P.) \\ CPCT MATTER

created May 13th 2022, 03:29 by Shreebageshwar Academy


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संपूर्ण विश्‍व मनुष्‍य शरीर की तरह ही एक स्‍वतंत्र पिण्‍ड जैसा है उसमें जीवों की गति उसी प्रकार संभव हैं, जिस तरह शरीर में अन्‍नकणों की गति होती हैं। अब इस मान्‍यता का खण्‍डन करना संभव हो गया हैं कि ग्रहों के तापमान की  स्थिति में प्राणी का रहना संभव नहीं यह ठीक है कि शरीर का जो स्‍वरूप पृथ्‍वी पर है, वह अन्‍यत्र हों। इस दृष्टि से बृहस्‍पति, शनि, युरेनस, नेप्‍च्‍यून, आदि ग्रहों को देखें तो लगता है कि वहां जीवन नहीं हैं, वहां मीथेन गैस की अधिकता है। बृहस्‍पति ग्रह पर घने बादल छाये रहते हैं। बादलों का विश्‍लेषण करने पर वैज्ञानिकों ने पाया, उनमें हाइड्रोजन का संमिश्रण रहता हैं। अमोनिया और मीथेन गैसें भी अधिकता से पाई जाती हैं। बादलों में सोडियम धातु के कण भी पाये जाते है, इससे प्रहस्‍पति के बादल चमकते हैं। इस परिस्थितियों में हालांकि जीवाणुओं की शक्ति नष्‍ट हो जाती हैं। पर जिस तरह पृथ्‍वी पर ही विभिन्‍न तापमान और जलऊष्‍मा की विभिन्‍न स्थितियों में मछली, सांप, कीट, वनस्‍पति, फलपौधे, स्‍तनधारी गोलकृमि जैसे जीव पाये जाते हैं तो अन्‍य ग्रहों पर इस तरह की स्थिति संभाव्‍य है और इस तरह चंद्रमा आदि पर भी जीवन संभव हो सकता है भले ही शरीर की आकृति और आकार कुछ भी क्‍यों हो। इस तथ्‍य की पुष्टि में अमरीकी वैज्ञानिक मिलर का प्रयाेग प्रस्‍तुत किया जाना आवश्‍यक है। मिलर ने एक विशेष प्रकार के उपकरण में अमोनिया, मीथेन, पानी और हाइड्रोजन भर कर उसमें बिजली गुजारी। फिर उस पात्र को सुरक्षित रख दिया गया लगभग दस दिन बाद उन्‍होंने पाया कि कई विचित्र जीवअणु उसमें उपस गए हैं। कुछ तो एमीनो एसिड थे। इससे यह साबित होता है, वातावरण की विभिन्‍न परिस्थितियों में विभिन्‍न प्राणियों का जीवन होना संभव है। यह संभव है कि उनमें से कुछ इतने शक्तिशाली हों कि दूर ग्रहों पर बैठे हुए अन्‍य ग्रहों जिन में पृथ्‍वी भी सम्मिलित है के लोगों पर शासन कर सकते हैं। उन्‍हे दण्‍ड दे सकते है अथवा उन्‍हें अच्‍छी और उच्‍च स्थिति प्रदान कर सकते हैं लोकोत्‍तर निवासी, पृथ्‍वी के लोगों को अदृश्‍य प्रेरणायें और सहायतायें भी दे सकते हैं। इस दृष्टि से यदि हम आर्य ग्रन्‍थों में दिये गये विवरण और अनुसन्‍धानों को कसौटी पर उतारें, तो यह मानना होगा कि वे सत्‍य है। आधारभूत हैं। अच्‍छेबुरे कर्म के अनुसार जीवात्‍मा को अन्‍य लोको में जाना होता है।  

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