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created Jun 29th 2022, 04:07 by royyy


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पिटीशनर की ओर से हाजिर होने वाले विद्वान कारन्‍सेल, श्री एस.के. सक्‍सेना ने यह दलील दी कि पिटीशनर ने अपना शोधप्रबन्‍ध वर्ष 1981 के अगस्‍त मास में प्रस्‍तुत किया था और वर्ष 1981 से नवंबर मास में परीक्षा में बैठने के लिए भी अनुज्ञात किया गया था, अत: प्रत्‍यर्थी संख्‍या 1 को उसका परिणाम घोषित करने के लिए प्रत्‍यर्थी संख्‍या 1 ने परीक्षा के लिए उसका शोधप्रबन्‍ध अवैध रूप से अस्‍वीकार कर दिया था और अतिरिक्‍त यह भी कि पिटीशनर को परीक्षा में बैठने के लिए अनुचित रूप से अनुज्ञात किया गया था, काउन्‍सेल ने यह निवेदन किया कि इस न्‍यायालय द्वारा दिए गए निदेश द्वारा जिसे ऊपर उद्धृत किया गया है, मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य को पिटीशनर की एम.एस. कोर्स में जो तारीख 1 जनवरी, 1980 को शुरू हो गया था, प्रवेश देने का निदेश दिया गया था। इस निदेश के परिणाम-स्‍वरूप पिटीशनर वर्ष 1981 के अगस्‍त मास में मेडिकल कॉलेज द्वारा नियुक्‍त परीक्षकों द्वारा परीक्षा के लिए अपना शोधप्रबन्‍ध प्रस्‍तुत करने के लिए और वर्ष 1981 में की जाने वाली लिखित परीक्षा में बैठने के लिए भी हकदार था। प्रत्‍यर्थी संख्‍या 1 की ओर से हाजिर होने वाले विद्वान काउन्‍सेल, श्री पी.के. मिश्र ने पिटीशनर की ओर से दी गई दलील का खंडन किया और यह निवेदन किया कि पिटीशनर तो अपना शोधप्रबन्‍ध प्रसतुत करने के लिए हकदार था और उसे परीक्षा में बैठने के लिए अनुज्ञात किया जा सकता था। अत: प्रत्‍यर्थी के विद्वान काउंसेल ने एम.डी. और एम.एस. परीक्षाओं के खण्‍ड 4 से 11 के प्रति निर्देश किया और इस बात पर जोर दिया कि पिटीशनर को अपना शोधप्रबन्‍ध प्रस्‍तुत करने के लिए तब तक अनुज्ञात नहीं किया जा सकता, जब तक कि वह मेडिकल कालेज में कम से कम 12 मास तक कार्य कर चुका हो कि और चूंकि पिटीशनर ने 12 मास तक कार्य नहीं किया है, अत: वह अपना शोधप्रबन्‍ध प्रस्‍तुत नहीं कर सकता था। काउंसेल ने यह दलील भी दी कि पूर्वोक्‍त खण्‍उ 9 के अधीन शोधप्रबन्‍ध का नवम्‍बर वाली परीक्षा से, जिसमें पिटीशनर बैठना चाहता था, पूर्ववर्ती दिसम्‍बर मास के 15वें दिन तक प्रस्‍तुत किया जाना अपेक्षित था। प्रत्‍यर्थी संख्‍या 1 के अनुसार, चूंकि शोधप्रबन्‍ध 15 दिसम्‍बर से पूर्व प्रस्‍तुत नहीं किया गया था, अत: पिटीशनर नवम्‍बर 1981 में की गई परीक्षा में नहीं बैठ सकता था।  

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